श्रीलंका कंगाली की कगार पर खड़ा है। उसकी अर्थव्यवस्था की चूलें हिली हुई हैं। वहां इस स्थिति को लाने में चीन का बड़ा हाथ माना जा रहा है। लेकिन इपने पड़ोसी देश श्रीलंका की इस हालत को देखकर भारत ने राहत का हाथ बढ़ाया है।
भारत की ओर से श्रीलंका को 6,670 करोड़ रुपये की मदद देने का वादा किया गया है। इस राशि में से 2,965 करोड़ रु. की मुद्रा की अदला-बदली होगी तो 3,705 करोड़ रु. के विलंबित भुगतान की बात की गई है। श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त गोपाल बागले ने यह भरोसा श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के गवर्नर अजित निवार्ड कबराल की उनसे हुई बातचीत में दिया है। बागले ने श्रीलंका को भरोसा दिलाया है कि संकट की इस घड़ी में भारत श्रीलंका के साथ पूरी दमदारी से खड़ा है।
कोलंबो स्थित भारतीय उच्च न्यायालय ने इस संदर्भ में किए ट्वीट में लिखा है कि राहत के तौर पर 6,670 करोड़ रुपये में 3,705 करोड़ रुपये के ‘एशियन क्लियरिंग यूनियन’ करार को स्थगित करना तथा 2,965 करोड़ की मुद्रा की अदला-बदली शामिल है। उच्चायुक्त बागले का कहना है कि श्रीलंका में आर्थिक सुधार और विकास के लिए भारत का ये कदम हमारी ठोस प्रतिबद्धता के अनुरूप ही हैं।
उल्लेखनीय है कि श्रीलंका के वित्तमंत्री बासिल राजपक्षे दिसंबर 2021 में नई दिल्ली आए थे। तब उन्होंने भारत से आर्थिक दिक्कतों से गुजर रहे श्रीलंका की सहायता करने की अपील की थी। अनेक वित्त विशेषज्ञों को लगता है कि श्रीलंका के सिर पर जो करोड़ों रुपए के कर्ज हैं उनकी वजह से वह देश आर्थिक समस्याओं से गुजर रहा है। बहुत संभव है श्रीलंका नए कर्जों के जाल में फंस जाए।
जैसा पहले बताया, श्रीलंका ने चीन से करोड़ों रुपए का कर्ज लिया हुआ है। यही वजह है कि श्रीलंका ने चीन से भी कर्ज में राहत देने की अपील की थी। गत सप्ताह चीन के विदेश मंत्री वांग यी मालदीव का दौरा पूरा करके श्रीलंका गए थे, तब इस बारे में श्रीलंका सरकार की उनसे बात भी हुई थी। हालांकि मीडिया में आए समाचारों के अनुसार अनेक छोटे देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाने में माहिर चीन के विदेश मंत्री की कोलंबो यात्रा असफल रही है। संभवत: चीन की कुछ ‘शर्तें’ श्रीलंका को कर्ज में और गहरे उतारने की बात करती थीं, जिनकी वजह से इस संबंध में द्विपक्षीय वार्ता कामयाब न हो सकी।
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