सूचना प्रौद्योगिकी के अपेक्षाकृत गैर-पारंपरिक क्षेत्रों (कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्लाउड, एनालिटिक्स, बिग डेटा, मोबाइल, संचार आदि) में उभरते अवसरों की भारत के लिए खासी अहमियत है। कारण, इन क्षेत्रों में बहुत कुछ नया है और शून्य से शुरू हुआ है। सॉफ्टवेयर उत्पादों में हमारे पारंपरिक पिछड़ेपन के दुष्प्रभाव यहां कुछ हद तक गौण हो जाते हैं क्योंकि नए बाजार की रवायतें सबके लिए नई हैं।
हालांकि जिन सॉफ्टवेयर निमार्ताओं को अपने उत्पाद नए माध्यमों में रूपांतरित करने हैं, उनके लिए स्थितियां तुलनात्मक दृष्टि से बेहतर हो सकती हैं लेकिन नए प्रतिद्वंद्वी दौड़ में बहुत पीछे रह जाने को अभिशप्त नहीं हैं। इंटरनेट और दूरसंचार के क्रांतिकारी बदलावों की बदौलत सॉफ्टवेयर क्षेत्र में आया ताजा हवा का झोंका आईटी क्षेत्र की उन शक्तियों को दौड़ में कूदने का मौका दे रहा है, जो किसी न किसी कारण से अतीत में ऐसा अवसर खो चुकी हैं। इसका नमूना हम स्टार्टअप के क्षेत्र में देख रहे हैं जहां भारत में 81 युनिकॉर्न हैं और इनमें से 44 पिछले साल ही युनिकॉर्न की सूची में आए हैं। यूनिकॉर्न वे स्टार्टअप उद्यम हैं जिनका बाजार मूल्य एक अरब डॉलर (7500 करोड़ रुपये से अधिक है)।
आज मोबाइल आधारित स्टार्टअप (जोमैटो, स्विगी, अरबन कंपनी, मंत्रा, कार देखो, फॉर्मईजी आदि), फिनटेक स्टार्टअप (पेटीएम, मोबाइल पे, पॉलिसी बाजार, रेजर पे, इन्स्टा मोजो आदि), ई-कॉमर्स (फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, ओएलएक्स, मेकमाईट्रिप, यात्रा.कॉमआदि-आदि), क्लाउड आधारित सेवा प्रदाता (जोहो.कॉम, स्लाइडशेयर आदि), मोबिलिटी (इंडियागेम्स, बुकमाईशो, सावन, धिनगाना वगैरह-वगैरह) के क्षेत्र में भारतीय उत्पादों की अच्छी खासी संख्या है। सफल उत्पाद अपनी पकड़ मजबूत बनाते जाएंगे और नाकाम उत्पाद दौड़ से बाहर होते जाएंगे। आर्थिक मोर्चे पर दबावों के बावजूद देश में माहौल नवाचार के हक में है और यह सॉफ्टवेयर उद्योग की बड़ी ताकत है।
खुद भारत के भीतर सॉफ्टवेयरों और एप्लीकेशनों की मांग खड़ी होना एक बड़ी घटना है। अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा सॉफ्टवेयर बाजार है और अब तक हमारे सॉफ्टवेयर उत्पाद उसी को लक्ष्य करके तैयार किए जाते रहे हैं। उसके बाद ब्रिटेन, जर्मनी, जापान और सिंगापुर जैसे देशों में भारत-निर्मित सॉफ्टवेयर उत्पादों की खपत होती है। लेकिन सॉफ्टवेयर और सर्विस कंपनियों के राष्ट्रीय संगठन 'नैसकॉम' का कहना है कि भारत के कुल सॉफ्टवेयर राजस्व का एक तिहाई हिस्सा घरेलू बाजार से आ रहा है। देश के भीतर कुछ हजार करोड़ सालाना का सॉफ्टवेयर बाजार तैयार हो रहा है। यह विदेशी बाजारों पर हमारी निर्भरता कम करता है और वहां के उतार-चढ़ाव से सुरक्षित करता है। हमारे सॉफ्टवेयर उत्पाद क्षेत्र की धीमी प्रगति का एक बड़ा कारण अमेरिका से भौगोलिक दूरी भी है क्योंकि सॉफ्टवेयर बाजार में सफलता सिर्फ निर्माण तक सीमित नहीं है। बिक्री पूर्व और बाद की प्रक्रियाएं भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस लिहाज से भौगोलिक दूरी भारतीय कंपनियों की अरुचि में अहम भूमिका निभाती रही है। हालांकि इंटरनेट ने इन दूरियों को काफी अप्रासंगिक किया है। फ्रेशवर्क्स नामक भारतीय तकनीकी स्टार्टअप की पिछले सितंबर में अमेरिकी शेयर बाजार नैस्डैक में शानदार सूचीबद्धता ने हमारे उद्यमों को मिलती वैश्विक मान्यता को रेखांकित किया है। सन 2010 में चेन्नई में गिरीश मातृभूमम और शान कृष्णास्वामी द्वारा शुरू यह कंपनी नैस्डैक से एक अरब डॉलर जुटाने में कामयाब रही है।
आईआईटी, आईआईएम और अनगिनत इंजीनियरिंग कॉलेजों तथा पेशेवर पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले संस्थानों ने हमारे युवाओं को लीक से अलग हटकर सोचने के लिए प्रेरित किया है। बहुत सारी सफलता की गाथाएं भी उन्हें निजी उद्यम और नवाचार के स्तर पर कुछ नया कर दिखाने के लिए उकसा रही हैं। सरकारी प्रयासों से भी देश में प्रौद्योगिकी आधारित उद्यमों के लिए माहौल बना है। यह हमारे स्टार्टअप तंत्र को मजबूत बना रहा है। अतीत में परिस्थितियां इतनी अनुकूल न होने पर भी भारत में लोग बड़ा काम करते रहे हैं, भले ही हमारी सीमाओं के भीतर या फिर बाहर जाकर।
पराग अग्रवाल इसका ताजा उदाहरण हैं, जिन्हें हाल ही में ट्विटर का सीईओ नियुक्त किया गया है। उनसे पहले सत्य नडेला (माइक्रोसॉफ़्ट के चेयरमैन), सुंदर पिचाई (एल्फाबेट- गूगल), शांतनु नारायण (एडोबी), अरविंद कृष्ण (आईबीएम), संजय मेहरोत्रा (माइक्रोन टेक्नॉलॉजी), निकेश अरोड़ा (पॉलो आॅल्टो नेटवर्क्स), अजय पाल सिंह बंगा (मास्टर कार्ड) आदि ने दुनिया की बड़ी और महत्वपूर्ण कंपनियों का नेतृत्व किया है, कर रहे हैं। भारतीय प्रतिभाओं की वैश्विक सफलता का कारण एक दिलचस्प और उपयोगी अध्ययन का विषय हैं, लेकिन उस पर फिर कभी। फिलहाल, भारतीयों ने जो कुछ कर दिखाया उसका उत्सव मनाएं।
(लेखक सुप्रसिद्ध तकनीक विशेषज्ञ हैं)
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