मनीष खेमका
कोरोना की दो लहरों से दो-दो हाथ करने के बाद भारत विजयी होकर उभरा है। जीडीपी की विकास दर जो -24 प्रतिशत तक गिर गई थी, अब 8.4 प्रतिशत पर है। इस ऐतिहासिक गिरावट के बाद अभूतपूर्व छलांग लगाकर भारत अब दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन चुका है। बैंक आॅफ अमेरिका ने कहा है कि भारत अगर 9 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर ले तो वह 2031 में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। अर्थव्यवस्था से जुड़ी बौद्धिक बहस प्राय: आम जनता के लिए उबाऊ होती है। समर्थक और विरोधी विद्वान अपनी-अपनी तरह से तस्वीर देखते और दिखाते हैं। लेकिन मोदी सरकार की ऐसी अनेक उपलब्धियां हैं, जिन्हें अभूतपूर्व माना जा सकता है। विरोधी भी जिसे नकार नहीं सकते। सरकार ने जो नवोन्मेष योजनाएं शुरू की हैं, वे न केवल भारत के इतिहास में पहली बार हैं, बल्कि निकट भविष्य में इसके सुखद परिणाम भी देखने को मिलेंगे। कारोबार से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और रोजगार के क्षेत्र में शुरू की जाने वाली ये योजनाएं निश्चित ही बड़ा बदलाव लाएंगी।
उत्पादन को प्रोत्साहन देती योजना
भारत को उत्पादन का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनाने के लिए केंद्र सरकार ने प्रोडक्शन लिंक इंसेंटिव (पीएलआई) योजना शुरू की है। सरकार की यह सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना है, जिसे साल 2021 में प्रमुखता से लागू किया गया। इसके तहत अधिक उत्पादन करने वाली चुनिंदा देशी व विदेशी कंपनियों को प्रोत्साहन स्वरूप भारी-भरकम सरकारी अनुदान देने की व्यवस्था की गई है। इससे न केवल भारत का आयात बिल घटेगा, बल्कि देश में उत्पादन बढ़ने से जीडीपी, कर राजस्व और रोजगार में भी बढ़ोतरी होगी। इस योजना को सबसे पहले मार्च 2020 में केवल तीन प्रकार के उद्योगों के लिए शुरू किया गया था। नवंबर 2020 में दूसरे चरण में दस उद्योगों को इसमें शामिल किया गया। इसके तहत, उन्नत रासायनिक बैटरी निर्माण के लिए 18,100 करोड़, इलेक्ट्रॉनिक और टेक्नोलॉजी के लिए 5,000 करोड़, आॅटोमोबाइल सेक्टर को 57,042 करोड़, फार्मा को 15,000 करोड़, टेलीकॉम 12,195 करोड़, टेक्सटाइल उत्पादों के लिए 10,683 करोड़, खाद्य प्रसंस्करण 10,900 करोड़, उच्च क्षमता वाले सोलर फोटोवॉल्टिक मॉड्यूल के लिए 4,500 करोड़, घरेलू उपकरणों के लिए 6,238 करोड़ और विशिष्ट इस्पात उत्पादन के लिए 6,322 करोड़ रुपये अनुदान की घोषणा की गई थी। इस योजना में अब तक कुल 13 उद्योग शामिल किए जा चुके हैं। 2021 के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आगामी पांच वर्ष में पीएलआई योजना के तहत 1.97 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा की थी। इस योजना के जरिए सरकार का उद्देश्य भारतीय उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है। अंतरराष्ट्रीय संस्था अर्नस्ट एंड यंग के मुताबिक, पीएलआई योजना में आवेदन की आॅनलाइन प्रक्रिया सरल और पारदर्शी है, जिसके अनुमोदन के बाद तय शर्तों के पूरा होते ही अनुदान की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत के मुताबिक, इस योजना के माध्यम से आगामी वर्षों में देश में 38 लाख करोड़ रुपये का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। इस योजना से आज भारत की सैकड़ों बड़ी व छोटी कंपनियां लाभान्वित हो रही हैं। उनके माध्यम से यह लाभ देश और आम जनता तक भी पहुंच रहा है। सरकार के इसी प्रोत्साहन का नतीजा है कि आज दुनिया में सबसे ज्यादा मोबाइल फोन बनाने वाली सैमसंग की फैक्टरी चीन, जापान या अमेरिका जैसे देशों में नहीं, बल्कि नोएडा (उत्तर प्रदेश) में स्थित है।
रक्षा निर्माण एवं निर्यात में शून्य से शिखर पर
भारत के पास 14.4 लाख सैन्यकर्मियों के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। सेना पर सरकार जीडीपी का 2.3 प्रतिशत खर्च करती है। 2020 में सेना पर खर्च के मामले में अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश था। 2020 में अमेरिका ने अपनी सेना पर 58 लाख करोड़, चीन ने 19 लाख करोड़ और भारत ने 5.4 लाख करोड़ रुपये खर्च किए। इस तथ्य के बावजूद भारत 2014 से 2018 के बीच सऊदी अरब के बाद दुनिया में हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक था। विश्व के कुल हथियार आयात का 9.2 प्रतिशत अकेले भारत आयात करता है। भारत अपनी रक्षा जरूरतों का 50 प्रतिशत हिस्सा ही बना पाता है। रक्षा उद्योग का 80 प्रतिशत स्वामित्व सरकार के पास है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रक्षा खर्च और हथियारों के कारोबार पर नजर रखने वाली संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुल रक्षा खर्च में अमेरिका का हिस्सा 39 प्रतिशत, चीन का 13 प्रतिशत और भारत का 3.7 प्रतिशत है। इस संस्था के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण सभी देशों की जीडीपी में गिरावट के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रक्षा खर्च बढ़ा है। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों से घिरे होने के कारण भारत के लिए भी यह तथ्य चिंताजनक हैं। पिछली सरकारों ने रक्षा मामलों में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रभावी प्रयास नहीं किए। यही कारण है कि चीन और पाकिस्तान जैसे देश हमें आंख दिखाते रहे और हम चुपचाप सहते रहे। मोदी सरकार ने इस स्थिति से निबटने के लिए केवल घोषणाएं ही नहीं कीं, बल्कि असरदार नीतियां बनार्इं और यह सुनिश्चित किया कि नतीजे भी अनुमान के अनुरूप तेजी से धरातल पर दिखाई दें। यह इन उपायों से बढ़ा आत्मविश्वास ही है, जिसके कारण भारत न केवल जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक करता है बल्कि चीन के साथ सीमा विवाद की स्थिति में तन कर डटा भी रहता है।
दो रक्षा गलियारे से उम्मीदें
रक्षा मामलों में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मोदी सरकार ने देश में दो रक्षा गलियारों की घोषणा की है, जहां रक्षा सामग्रियों का निर्माण सुगमता से किया जा सकेगा। 2018 में लखनऊ में आयोजित निवेशक सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में 20,000 करोड़ रु. की लागत से पहला रक्षा गलियारा स्थापित करने की घोषणा की। दूसरे रक्षा कॉरिडोर की स्थापना की घोषणा 2019 में तमिलनाडु में की गई। उत्तर प्रदेश रक्षा गलियारे की ताजा उपलब्धि यह है कि यहां ब्रह्मोस मिसाइल उत्पादन के लिए एक समझौता हुआ है, जिसमें करीब 200 एकड़ जमीन पर 300 करोड़ रुपये का निवेश होगा। इससे करीब 15,000 लोगों को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। पिछले दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तर प्रदेश में इसका शिलान्यास भी किया। प्रदेश सरकार ने रक्षा गलियारे के लिए लखनऊ में मात्र एक रुपये के पट्टे पर 80 हेक्टयर भूमि उपलब्ध कराई है। प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना के मुताबिक, रक्षा गलियारे के तहत उद्यमियों को देश में सबसे सस्ती जमीन उपलब्ध कराई जा रही है। यहां विकास कार्य पर आने वाले खर्च को भूखंडों की दर में नहीं जोड़ा गया है। इससे उद्यमी कम लागत में कारोबार शुरू कर सकते हैं। साथ ही, कारोबार में सुगमता के मामले में भी उत्तर प्रदेश देश में दूसरे स्थान पहुंच गया है।
केंद्र सरकार ने 2018 में रक्षा उत्पादन नीति बनाई थी, जिसका लक्ष्य 2025 तक पांच अरब डॉलर के रक्षा निर्यात के साथ भारत को दुनिया के शीर्ष पांच रक्षा उत्पादक देशों की श्रेणी में खड़ा करना है। 2014-15 में भारत का रक्षा निर्यात 1,941 करोड़ रुपये था, जो 2015-16 में बढ़कर 2,049 करोड़ रुपये हो गया। 2017-18 में यह 4,682 करोड़ और 2018-19 में 10,746 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। बीते सात वर्षों के दौरान भारत कुल 38,500 करोड़ रुपये के रक्षा उत्पादों का निर्यात कर चुका है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अगस्त 2014 तक भारत में रक्षा निर्यात के लिए कोई विशेष नीति नहीं थी। रक्षा मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण लेकर सामान्य विदेश नीति के तहत ही रक्षा सामग्रियों का निर्यात किया जाता था। आज रक्षा निर्यात में 700 प्रतिशत से अधिक की अभूतपूर्व वृद्धि के बावजूद विश्व रक्षा निर्यात में भारत का योगदान अभी भी मात्र 0.17 प्रतिशत है। जाहिर है, भारत के लिए इस क्षेत्र में अभी काफी संभावनाएं हैं, जिनके समुचित दोहन से न केवल देश पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना साकार कर सकता है, बल्कि रक्षा मामलों में आत्मनिर्भर बन कर विश्व में महाशक्ति के रूप में भी उभर सकता है।
बिना कर बढ़ाए बुनियादी ढांचे में सुधार
2025 तक देश के बुनियादी ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन के लिए सरकार ने 102 लाख करोड़ रुपये की भारी-भरकम योजना बनाई है। इससे पहले इतनी बड़ी योजना कभी नहीं बनी। 15 अगस्त, 2019 को प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार इसकी घोषणा की थी। बाद में इसके बजट को बढ़ाकर 111 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया।?इसके तहत पांच वर्षों में 7,000 से अधिक विनिर्माण परियोजनाओं पर काम होना है। इसमें से 44 लाख करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजनाओं पर काम चालू है। कोरोना के कारण इसकी गति धीमी जरूर हुई, लेकिन भारी बजट घाटे और चुनौतियों के बावजूद इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए धन जुटाने हेतु मोदी सरकार एक और नवोन्मेषी योजना लेकर आई। अगस्त 2021 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 6 लाख करोड़ रुपये जुटाने के लिए नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन योजना की घोषणा की। विरोधियों ने इसे लेकर हल्ला मचाया कि देश को बेचा जा रहा है। ये वही लोग थे, जिन्होंने पहले भी लालकिला बेचे जाने का झूठ फैलाया था, जबकि करदाताओं की जेब पर कर का भार बढ़ाए बिना देश के ढांचे में तेजी से सुधार लाने के लिए धन जुटाने वाली इस योजना की जितनी सराहना की जाए, कम है। इसके तहत 400 रेलवे स्टेशनों समेत बीएसएनएल और एमटीएनएल के मोबाइल टावरों, गैस पाइपलाइन और अन्य कई निष्प्रयोज्य या कम प्रयोग की जा रही संपत्तियों को निजी क्षेत्र को किराये पर दिया जाएगा। सरकार ने साफ कहा है कि इसमें किसी भी सूरत में मालिकाना हक नहीं दिया जा रहा और निर्धारित अवधि के बाद प्रयोगकर्ता को इसे सरकार को वापस करना होगा। सरकार के इस नवोन्मेषी कदम से न केवल कारोबार और रोजगार बढ़ेगा, बल्कि आम जनता को बेहतर सुविधाएं भी हासिल होंगी।
प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना देगी विकास को गति
इस योजना को भी प्रधानमंत्री मोदी की नवोन्मेषी सोच का परिणाम कहा जा सकता है। स्थानीय स्तर पर हम सभी देखते हैं कि सरकार के विकास कार्यों में संबंधित विभागों के बीच तालमेल का अभाव रहता है। नतीजा यह होता है कि एक विभाग सड़क बनाता है और उसके बाद दूसरा विभाग पानी या बिजली की पाइपलाइन डालने के लिए उस नई बनी सड़क को खोद डालता है। सरकार में विभागीय स्तर पर तालमेल के अभाव में देश भर में तमाम स्थानों पर पुल, रेल मार्ग या सड़क जैसी अनेक परियोजनाएं अटकी पड़ी हैं। यह स्थिति न केवल हास्यास्पद है, बल्कि करदाताओं की गाढ़ी कमाई के पैसों की बर्बादी भी है। मोदी सरकार ने इस आवश्यकता को समझा और केंद्र व राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों के बीच तालमेल के लिए एक प्रभावी खाका तैयार किया। गति शक्ति योजना के तहत केंद्र सरकार के 16 जरूरी मंत्रालयों को आपस में जोड़ने के लिए एक डिजिटल मंच तैयार किया गया है ताकि सभी योजनाएं समय से पूरी हो सकें और देश का धन भी बचाया जा सके। प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2021 को इस योजना की घोषणा की थी। इसे 13 अक्तूबर, 2021 को लागू किया गया। प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना की पहली बैठक गुजरात और दूसरी बैठक 3 दिसंबर, 2021 को लखनऊ में आयोजित की गई। इस योजना के तहत 16 मंत्रालयों की सभी योजनाओं की निगरानी उपग्रह और डिजिटल माध्यम से पारदर्शी तरीके से हो सकेगी, जिससे भ्रष्टाचार रुकेगा। इसके माध्यम से करीब 100 लाख करोड़ रुपये के निवेश की संभावना है।
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप केंद्र
28 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने आईआईटी कानपुर के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि भारत स्टार्टअप के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र बन कर उभरा है। उन्होंने कहा कि आजादी के इस 75वें साल में हमारे पास 75 से अधिक यूनिकॉर्न्स हैं, 50,000 से अधिक स्टार्टअप हैं। इनमें से 10,000 तो केवल पिछले 6 महीनों में आए हैं। वास्तव में इस उपलब्धि के पीछे प्रधानमंत्री मोदी का युवाओं को नैतिक समर्थन और उनकी सरकार की अनेक योजनाएं भी हैं। केंद्र सरकार ने कई ऐसे निर्णय लिए हैं, जिनके कारण आज स्टार्टअप की दुनिया में भारत का दबदबा बढ़ रहा है। भारत के चुनिंदा आईआईटी संस्थानों में स्टार्टअप इनक्यूबेशन सेंटर की स्थापना उनमें एक प्रमुख कारण है। आईआईटी कानपुर उन संस्थानों में एक है, जहां आज 150 से ज्यादा स्टार्टअप्स को सहायता और मार्गदर्शन दिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश भारत का पहला प्रदेश है, जहां के कौशल विकास विभाग में शिक्षा के स्तर को सुधारने में आईआईटी कानपुर जैसी विश्व स्तरीय संस्था अपना योगदान दे रही है। हाल ही में केंद्र सरकार की अनेक योजनाओं के तहत यहां 40 लाख रुपये तक के अनुदान के लिए विभिन्न उल्लेखनीय स्टार्टअप का चयन किया गया था। ऐसी अनेक योजनाएं पूरे देश में विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से चलाई जा रही हैं। निश्चित ही इससे निकट भविष्य में युवाओं में उद्यमिता की मानसिकता का विकास किया जा सकेगा, जिससे उनकी रुचि बजाए नौकरी पाने के नौकरी देने में ज्यादा होगी।
कृषि निर्यात में नौवें स्थान परभारत से कृषि उत्पादों का निर्यात अप्रैल-अगस्त 2020-21 के 6,485 मिलियन डॉलर के मुकाबले चालू वित्त वर्ष 2021-22 के पहले पांच माह में बढ़कर 7,902 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। वाणिज्यिक सूचना तथा सांख्यिकी महानिदेशालय (डीजीसीआईएस) द्वारा जारी त्वरित अनुमानों के अनुसार, कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के उत्पादों के समग्र निर्यात में अप्रैल-अगस्त 2021 के दौरान पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 21.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विश्व व्यापार संगठन के व्यापार मानचित्र के अनुसार, 2019 में 37 बिलियन डॉलर के कुल कृषि-निर्यात के साथ विश्व रैकिंग में भारत नौवें स्थान पर है। इसी तरह, चावल निर्यात में 13.7 प्रतिशत की सकारात्मक वृद्धि हुई और यह अप्रैल-अगस्त 2020 के 3,359 मिलियन डॉलर की तुलना में अप्रैल-अगस्त 2021 में 3,820 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया। ताजे फलों व सब्जियों सब्जियों के निर्यात में 6.1 प्रतिशत, जबकि प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों और विविध प्रसंस्कृत मदों के निर्यात में 41.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। अप्रैल-अगस्त 2020-21 में ताजे फलों तथा सब्जियों का निर्यात 1,013 मिलियन डॉलर के बराबर था, जो अप्रैल-अगस्त 2021-22 में 1,075 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया। |
वास्तव में उक्त सभी योजनाएं पूर्ववर्ती सरकारों की पारंपरिक सोच व पुराने ढर्रे से बेहद अलग हैं। इन सभी योजनाओं को सस्ते राजनीतिक प्रचार के लिए आंकड़ों की बाजीगरी से अलग माना जा सकता है। ये योजनाएं सिर्फ़ घोषणा भर नहीं हैं, बल्कि इनमें कार्य के प्रति ईमानदार नेतृत्व की सोच प्रदर्शित होती है। अर्थशास्त्रियों की नीरस बहस से इतर इन योजनाओं में वह सब कुछ है, जिसके जरिए भारत बैंक आॅफ अमेरिका के अनुमानों से भी कहीं बहुत आगे और बहुत जल्दी पहुंच सकता है।
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