हिन्दी फिल्मों के माध्यम से हिन्दू देवी-देवताओं और हिन्दुओं की धार्मिक आस्थाओं से खिलवाड़ का सिलसिला जारी है। इस बार लोकप्रिय सितारे अक्षय कुमार ने लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कार्य किया है। बीते दिनों क्रिसमस पर प्रदर्शित अक्षय और सारा अली खान की फिल्म ‘अतरंगी रे’ में भगवान शिव और बजरंगबली के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया गया है। फिल्म में ऐसे कई विवादित दृश्य और संवाद हैं, जो हिन्दू आस्थाओं पर कुठाराघात करते दिखते हैं। फिल्म में धार्मिक भावनाओं को आहत करते हुए हिन्दू देवी-देवताओं का जमकर मजाक उड़ाया गया है। फिल्म में कुछ किरदारों के जरिए हिन्दुओं की छवि का गलत चित्रण करते हुए उन्हें हिंसक और अमानवीय दिखाया गया है। यही नहीं, फिल्म में ‘लव जिहाद’ को भी बढ़ावा दिया गया है। बढ़ते विरोध के बीच इस फिल्म के बॉयकाट की मुहिम तेज होने लगी है। सोशल मीडिया पर फिल्म का जमकर विरोध हो रहा है।
क्या यह देवताओं का अपमान नहीं है?
पहली नजर में ऐसा लगता है कि आनंद एल़ राय निर्देशित ‘अतरंगी रे’ में यह सब जान-बूझकर किया गया है। फिल्म में अक्षय और सारा अली खान ने जो संवाद बोले हैं, उनसे बहुत आसानी से बचा जा सकता था। उदाहरण के लिए, एक संवाद, जिसमें फिल्म की नायिका सारा कहती है, ‘‘हनुमान जी का प्रसाद समझे हैं, जो कोई भी हाथ फैलाएगा और हम मिल जाएंगे। शिव जी का धतूरा हैं हम, मम्मी कसम मुंह से जाएंगे तो पिछवाड़े से निकलेंगे।’’
अब इस संवाद को फिल्म के किरदार के रूप में समझिए, जिसका नाम है रिंकू सूर्यवंशी (सारा अली खान)। भगवान श्रीराम में आस्था रखने वाले समझ सकते हैं कि अगर कोई मुस्लिम सूर्यवंशी नाम वाले हिन्दू किरदार के रूप में ऐसी बात करेगा तो इसके पीछे उसकी मंशा क्या हो सकती है। वैसे भी हनुमान जी का प्रसाद तो समस्त सृष्टि के प्राणियों के लिए है, बिना किसी भेदभाव के और ईश्वर का प्रसाद हाथ फैलाकर सिर-माथे लगाते हुए, जिसे पूरी आस्था के साथ ग्रहण किया जाता है। प्रसाद के लिए हाथ फैलाने से कोई छोटा या बड़ा नहीं हो जाता। तो फिर सारा अली खान और आनंद एल़ राय ही बेहतर तरीके से बता सकते हैं कि एक भक्त द्वारा अपने आराध्य का प्रसाद ग्रहण करने का इससे भी बेहतर कोई तरीका हो सकता है?
यह बात सही है कि पिछले कुछ वर्षों में फिल्म उद्योग और सिने प्रेमियों के बीच अक्षय की छवि एक राष्टवादी अभिनेता के तौर पर उभरी है। इसलिए एक उम्मीद बरकरार रहती है कि अक्षय की फिल्म होगी, तो कम से कम उसमें ऐसा कुछ नहीं देखने को मिलेगा जिससे देश या धर्म का अपमान न हो। लेकिन ‘अतरंगी रे’ से अक्षय ने करोड़ों सिने प्रेमियों को निराश किया है।
शायद सारा को लगता होगा कि हनुमान जी का प्रसाद मुफ्त में बंटने वाली कोई सस्ती-सी चीज है, जिसे कोई भी ले सकता है। इसलिए वे अपनी तुलना हनुमान जी प्रसाद से नहीं करना चाहतीं। वे खास हैं, इसलिए उन्हें पाने के लिए सामने वाले को विशेष प्रयास करने होंगे। यहां प्रसाद की तुलना में धतूरे की व्याख्या में ‘पिछवाड़ा’ शब्द जोड़कर देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने की कोशिश साफतौर पर दिखती है। बेशक, रिंकू सूर्यवंशी (सारा खान) ऐसा इसलिए कह सकती हैं, क्योंकि उसका मानना है कि वह ठाकुर परिवार की एक हिन्दू लड़की है और लड़का एक मुस्लिम है।
दरअसल, रिंकू सूर्यवंशी के रूप में सारा खान ऐसी भूमिका में हैं, जो अपने नाम के साथ अपना धर्म, जाति, परिवार तो बड़े गर्व के साथ जोड़े रखना चाहती है, लेकिन अपनी सुविधानुसार उसे ठेंगा दिखाने या अपमानित करने से भी नहीं चूकती। क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़के से जोड़ी बनाने को ही असल प्रेम कहानी मानती है। यही नहीं, रिंकू नाम के साथ सूर्यवंशी लगाकर यह दिखाया गया है कि वह अपने घर में हो रहे हवन कुंड के सामने ठीक वैसे ही खुद को पीट रही है, जैसे वह मुहर्रम में देखती है। यह हवन उसकी नानी (सीमा बिस्वास) कर रही है, जबकि रिंकू ऐसा सज्जाद (अक्षय कुमार) को देखने के बाद करती है।
फिल्म में सारा को सूर्यवंशी परिवार की लड़की के रूप में दिखाया गया है। एक ऐसा परिवार जिसका संबंध सीधे भगवान राम के वंश से जुड़ा है। बावजूद इसके फिल्म में इस परिवार को आदर्श की बजाय क्रूर और प्यार का दुश्मन दिखाया गया है। घर में जब एक बुजुर्ग सदस्य धार्मिक हो और अपने धर्म के प्रति आस्थावान हो तो युवा पीढ़ी में से किसी को अपने ही धर्म का विरोधी दिखाने का चलन इधर काफी जोर पकड़ता दिख रहा है। इस फिल्म को लेकर हो रहे विवाद को बेबुनियाद बताने वाले मुट्ठी भर लोगों से एक ही सवाल है कि बस एक पल के लिए वे आंख बंद करके शांति से सोचें कि क्या वे ऐसी किसी स्थिति की कल्पना तक कर सकते हैं? अपने घर में खासतौर से, जब हवन हो रहा हो और उनकी कोई संतान बाहर से आए और मुहर्रम से प्रेरणा पाकर वैसी ही देखा-देखी अपने घर में करने लगे। क्या मुस्लिम समाज भी इसे सहजता से स्वीकार कर सकता है?
रामायण की गलत व्याख्या
यह बात सही है कि पिछले कुछ वर्षों में फिल्म उद्योग और सिने प्रेमियों के बीच अक्षय की छवि एक राष्टÑवादी अभिनेता के तौर पर उभरी है। कारण यह है कि उन्होंने राष्टप्रथम के मूल मंत्र पर चलते हुए अधिकतर ऐसी फिल्मों में काम किया है या उनके निर्माण से जुड़े रहे हैं, जिनमें भारत की बात की जाती रही है। फिर वह चाहे देशभक्ति से जुड़ी फिल्म हो या किसी महान हस्ती का चित्रण, किसी खेल से संबद्ध खिलाड़ी से जुड़ी हो या इससे मिलते-जुलते किसी विषय से।
इसलिए एक उम्मीद बरकरार रहती है कि अक्षय की फिल्म होगी, तो कम से कम उसमें ऐसा कुछ नहीं देखने को मिलेगा जिससे देश या धर्म का अपमान न हो। लेकिन ‘अतरंगी रे’ से अक्षय ने करोड़ों सिने प्रेमियों को निराश किया है। वह भी ऐसी सूरत में, जब वह ‘राम सेतु’ नामक एक बेहद महत्वपूर्ण विषय पर आधारित फिल्म में काम कर रहे हैं। खैर, उस फिल्म पर बात फिर कभी। हैरानी तो इस बात को लेकर भी है कि इस फिल्म में रामायण की भी आपत्तिजनक व्याख्या की गई है। अक्षय ने जो मुस्लिम किरदार सज्जाद की भूमिका में हैं, खुद को श्रीराम बताया है, जबकि उसकी नजर में विशु नामक एक अन्य किरदार रावण के समान है। विशु की भूमिका दक्षिण भारतीय फिल्मों के अभिनेता धनुष ने निभाई है। फिल्म में उनकी पृष्ठभूमि वही है। पृष्ठभूमि से याद आया, आनंद एल़ राय ने अपनी फिल्म ‘रांझणा’ में भी दक्षिण भारत का जिक्र किया था। उसमें उन्होंने दिखाया था कि दक्षिण से आए ब्राह्मण परिवार काशी में बस गए थे और तब से वही यहां के मंदिरों में पूजा-पाठ करते आ रहे हैं। राय यह बताना नहीं भूले कि ये ब्राह्मण परिवार मांस-मछली का सेवन करते थे। खैर, इन्हीं में से एक ब्राह्मण परिवार के पुत्र यानी कुंदन (धनुष) को एक मुस्लिम लड़की जोया (सोनम कपूर) से प्यार हो जाता है। बाद में वह बागी हो जाता है और फिर मारा जाता है।
ओटीटी मंचों पर दिखाई जाने वाली वेब शृंखला, फिल्म या अन्य प्रकार की मनोरंजक सामग्री को लेकर विवाद अब आम बात हो गई है। अलग-अलग ओटीटी मंचों पर परोसी जा रहे ज्यादातर सामग्रियों में अश्लील दृश्य, हिंसा और गालियों की भरमार तो होती ही है, ऐसी भी तमाम बातें कई बार देखने में आई हैं, जब किसी पात्र के नाम पर तो कभी किसी रीति-रिवाज या धर्म के नाम पर हिन्दू देवी-देवताओं और भारतीय संस्कृति का धड़ल्ले से अपमान किया जाता है।
अब की बार फिल्मकार ने खुद को राम बताने वाले सज्जाद को मैदान में उतारा है, जबकि वह एक हिन्दू को रावण बताने लगता है और फिर इस पूरी कहानी जो फिल्मी होकर भी फिल्मी नहीं लगती, के जरिये हिन्दुओं के महान और सबसे पवित्र ग्रंथ रामायण के संदर्भ से व्याख्या की गई है। फिल्म देखकर आप सूर्यवंशी यानी भगवान राम के वंशज होने का एक अर्थ यह भी निकाल सकते हैं कि मौजूदा दौर में उनके किसी वंशज ने सज्जाद को इसलिए जलाकर मार डाला था, क्योंकि वह एक हिन्दू लड़की से प्यार करता था। एक निर्देशक के रूप में आनंद एल़ राय और लेखक के रूप में हिमांशु शर्मा को इस तथ्य पर प्रकाश डालना चाहिए कि ऐसा रूपक गढ़कर वे क्या संदेश देना चाहते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि राय और शर्मा की जोड़ी ने हमेशा अपने सहज अंदाज से लोगों के दिलों में जगह बनाई है और वह भी बड़ी गहराई तक। फिर बात चाहे कंगना रनोट की मेहनत से सजी ‘तनु वेड्स मनु’ के दोनों भाग हों या फिर धनुष की फिल्म ‘रांझणा।’ वे जितने बेबस और निष्प्रभावी शाहरुख खान की फिल्म ‘जीरो’ में दिखे थे, उससे कहीं अधिक निराश ‘अतरंगी रे’ में करते दिखते हैं। राय और शर्मा को सोचना चाहिए कि हिन्दी फिल्मों में दक्षिण भारतीय भाषाई पात्रों को कॉमेडी की चाशनी में डुबोकर दिखाना अब किसी भी रूप में प्रासंगिक नहीं रह गया है। इसी तरह से फिल्मकार बेशक बिहार की भाषा और वहां के सीधे-साधे लोगों का चित्रण बचकाने या फूहड़ अंदाज में कितना ही करते रहें, पर सच यह है कि बिहार की प्रतिभाएं हर क्षेत्र में पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रही हैं। बेशक, ‘अतरंगी रे’ की टीम के सदस्यों की नजरों में वह न आ पाए हों। शायद इसलिए राय और शर्मा को अपनी इस फिल्म में जबरिया शादी का ही इनपुट डालना ज्यादा आसान लगा?
ओटीटी मंच फिर बेलगाम
ओटीटी मंचों पर दिखाई जाने वाली वेब शृंखला, फिल्म या अन्य प्रकार की मनोरंजक सामग्री को लेकर विवाद अब आम बात हो गई है। अलग-अलग ओटीटी मंचों पर परोसी जा रहे ज्यादातर सामग्रियों में अश्लील दृश्य, हिंसा और गालियों की भरमार तो होती ही है, ऐसी भी तमाम बातें कई बार देखने में आई हैं, जब किसी पात्र के नाम पर तो कभी किसी रीति-रिवाज या धर्म के नाम पर हिन्दू देवी-देवताओं और भारतीय संस्कृति का धड़ल्ले से अपमान किया जाता है। अक्षय की फिल्म ‘अतरंगी रे’ ओटीटी मंच डिज्नी हॉटस्टार पर दिखाई जा रही है। मीडिया का एक वर्ग ऐसा दर्शा रहा है कि लोगों को यह फिल्म बहुत पसंद आ रही है और फिल्म समीक्षकों ने भी हिन्दुओं की आस्था और देवी-देवताओं के हुए अपमान पर मानो आंखें मूंद ली हैं।
दरअसल, जब इस फिल्म की घोषणा हुई थी और पहला पोस्टर जारी किया गया था तो एकबारगी यही लगा था कि राय और शर्मा ने अक्षय के साथ मिलकर एक पारिवारिक फिल्म बनाने का एलान किया है। लगा था कि इसमें दिल को छू लेने वाली कोई कहानी होगी और रिश्तों के साथ भारतीय परिवार का चित्रण होगा। यहां चित्रण तो भारतीय परिवार का ही है, लेकिन उसकी तस्वीर उजली न होकर स्याह दिखाई गई है। आहत तो यह भी करने वाला है कि अक्षय की सरपरस्ती में इस फिल्म के जरिये लोगों के घर-घर तक यह संदेश पहुंचा है। बता दें कि देश के 80 लाख परिवार ओटीटी पर स्ट्रीमिंग के जरिये इस फिल्म को देख चुके हैं।
गौरतलब है कि बीते साल नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित मीरा नायर की वेब सीरीज ‘ए सूटेबल बॉय’ को लेकर भी खासा विवाद हुआ था। इसमें एक मंदिर के प्रांगण में एक दिन्दू लड़की का एक मुस्लिम युवक द्वारा चुम्बन लेते हुए दिखाया गया था।
सैफ अली खान की वेब सीरीज ‘सेक्रेड गेम्स’ में हिंदू और मुस्लिम के बीच विवाद और तनाव बढ़ाने वाले घटनाक्रम दिखाए गए थे। इसमें हिन्दुओं और सिखों की भावनाओं को आहत करने वाली तमाम बातें भी शामिल थीं। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष एवं शिरोमणि अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा जो कि अब भाजपा नेता हैं, ने इसका प्रदर्शन रोकने की मांग की थी। इसके अलावा, प्रकाश झा की वेब सीरीज आश्रम में एक काल्पनिक बाबा निराला काशीपुर वाले की कहानी को दिखाया गया था, जो छल और प्रपंच करता है। बाबा के आश्रम में कई महिला सेविकाएं, राजनेताओं का आना-जाना और अपार धन-दौलत दिखाई गई थी। इसी तरह, नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित वेब सीरिज ‘लैला’ में एक काल्पनिक दुनिया का चिणत्र किया गया, जिसमें हिन्दुओं को कट्टर दिखाया गया है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे एक हिन्दू राष्ट की संकल्पना में बाकी मजहब और मतों पर अत्याचार हो रहा है।
महिलाओं और बच्चियों का शोषण हो रहा है। इसी तरह वेब सीरीज ‘पाताल लोक’ में भी हिन्दुओं, सिखों और गोरखाओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई गई थी। आरोप तो यह भी लगा था कि इस वेब सीरीज के जरिये सांप्रदायिक और जातीय सद्भाव को बिगाड़ने का कुत्सित प्रयास किया गया था।
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