बिहार का सिवान जिला एक बार फिर से कुख्यात अपराधियों के कब्जे में जा रहा है। अब यहां अयूब खान और उसके छोटे भाई रईस खान के कारण लोग दहशत में जी रहे हैं। दो जनवरी को बिहार एसटीएफ ने अयूब को पूर्णिया से गिरफ्तार किया है। पूछताछ में पता चला है कि उसने नवंबर, 2021 में तीन हिंदू युवाओं को मारा और उनके शवों को काट—काट कर नदी में फेंक दिया।
गिरफ्तारी के बाद उसे सिवान लाया गया। पूछताछ करने के बाद उसे जेल में डाल दिया गया है। अयूब का आतंक पूर्वोत्तर से लेकर पूरे बिहार तक फैला हुआ है। अयूब खान और उसके छोटे भाई रईस खान 20 वर्ष से अपराध कर रहे हैं। पहले ये दोनों शहाबुद्दीन की अपराधी दुनिया को संभालते थे। 2005 में इनके अब्बा कमरूल हक ने विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार मिली थी। इसके बाद इन दोनों की शहाबुद्दीन से अनबन हो गई। जब शहाबुद्दीन को सजा हुई, तो इन दोनों ने सिवान में उसकी जगह ले ली। ये दोनों अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए शहाबुद्दीन की तरह ही हत्या करने लगे और रंगदारी वसूलने लगे।
इन लोगों ने सिवान में विवादित जमीन का धंधा और रेलवे की ठेकेदारी में अपने गुर्गों को उतारा था। इसके लिए ये लोग किसी की भी हत्या करने में देर नहीं करते थे। अयूब ने स्वीकारा है कि उसने तीन युवकों की हत्या कर उनके शवों को काट—काट कर नदी में फेंक दिया था।
उल्लेखनीय है कि गत वर्ष 7 नवंबर को विशाल सिंह, अंशु सिंह एवं इनके चालक प्रमेंद्र यादव के अपहरण के प्राथमिकी विशाल सिंह की मां सुनीता सिंह ने दर्ज करायी थी। इसमें विशाल के दोस्त संदीप की संलिप्तता पाने पर पुलिस ने उसे 23 नवंबर को गिरफ्तार किया था। पुलिस के समक्ष संदीप ने स्वीकार किया कि अयूब खान उर्फ बड़े भाई के इशारे पर वह इन तीनों को बड़हरिया लेकर गया था। जहां बड़े भाई ने इन तीनों को ठिकाना लगाने की बात कही थी। पुलिस की पूछताछ में अयूब ने स्वीकार किया कि उसने अपने साथियों के साथ मिलकर तीनों की हत्या कर दी। इन तीनों को उसने चाय में नशीला पदार्थ पिलाकर बेहोश कर दिया। फिर इन तीनों की हत्या गले में गमछा कसकर कर दी और उनके शवों को टुकड़े-टुकड़े कर सिसवन थाना क्षेत्र में सरयू नदी में फेंक दिया।
यह सब सिवान में राजनीतिक वर्चस्व जमाने के लिए किया गया। उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में संपन्न पंचायत और जिला परिषद् के चुनावों में अयूब और रईस खान के अनेक समर्थकों को जीत मिली है। कहा जाता है कि इन्हें जिताने में इन दोनों ने मतदाताओं को डराया था। इसकी पुष्टि एक बात से होती है। सिवान जिला परिषद् की उपाध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद चांद तारा खातून ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया कि उनकी यह विजय रईस खान के आशीर्वाद से हुई है।
यह वही सिवान है, जहां के लोग एक समय शहाबुद्दीन के कारण दहशत मेें रहते थे। अपने अपराध को छिपाने के लिए वह खूनखराबा कर सांसद तक बनता था। इस कारण लोग उसे 'माननीय' कहने के लिए विवश होते थे। लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि एक अपराधी की प्रवृत्ति नहीं बदल सकती है और यही शहाबुद्दीन के साथ भी हुआ। वह अपराध पर अपराध करता रहा। अपराध की दुनिया में वह सारी हदें पार कर गया था। वह लोगों को तेजाब से नहला देता था, ताकि लोग तड़प—तड़प कर मरें। इसकी सजा शहाबुद्दीन को मिली और वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में कई साल तक सजा काटता रहा। पिछले साल दिल्ली में ही उसकी मौत हो गई। घर वाले शव को सिवान ले जाना चाहते थे, लेकिन प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी। दिल्ली में आईटीओ के पास उसके शव को दफनाया गया है। अब जब—तब उसके 'भक्त' उसकी कब्र के पास पहुंच जाते हैं। कब्रिस्तान के संचालक उन्हें आने से मना करते हैं, लेकिन वे मानते नहीं हैं। मामला पुलिस तक पहुंच गया है।
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