पंकज झा
देशभर में अपने अस्तित्व तक की रक्षा करने में विफल कांग्रेस अपने कम्युनिस्ट मित्रों के साथ छत्तीसगढ़ के एकमात्र बचे अपने गढ़ को बचाने के लिए हर तरह का प्रपंच रचने में मशगूल है। देश के मात्र तीन प्रदेश में बच गयी कांग्रेसी सत्ता में से पंजाब जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस छोड़ने के बाद अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है, वहीं राजस्थान का सर फुटव्वल और उसके कारण कांग्रेस की ख़त्म हो रही संभावना के बारे में सब जानते ही हैं। वैसे भी राजस्थान हर बार सरकार बदल देता है, ये तथ्य कांग्रेस और उनके कम्युनिस्ट मित्रों-सलाहकारों को परेशान किये है। ऐसे में न केवल कांग्रेस बल्कि वाम और अतिवादी वाम भी छत्तीसगढ़ को अपने अंतिम किले के रूप में देख रही है। अपनी आशाओं का एकमात्र बचे केंद्र छत्तीसगढ़ को बचाने वाम-कांग्रेस गठजोड़ किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार बैठे हैं।
कांग्रेस को तो न केवल विचारधारा के लिए, बल्कि रोज की दाल-रोटी तक के लिये छत्तीसगढ़ की ज़रूरत है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह अनेक बार कह चुके हैं कि छत्तीसगढ़ आज कांग्रेस के लिए एटीएम हो गया है। कांग्रेस के दैनिक खर्च से लेकर तमाम चुनावी खर्च तक के लिए कांग्रेस अपने इस प्रदेश पर बुरी तरह आश्रित है, और इसलिए भी इसे बचाए रखने के लिए तमाम साजिशों-षड्यंत्रों का केंद्र बना दिया गया है शान्ति का टापू रहे इस प्रदेश को।
अपने अनाप-शनाप और असंभव चुनावी वादों को पूरा करने में बुरी तरह विफल, किसानों को कर्ज माफी का सब्जबाग दिखा कर सत्ता में आने के बाद उलटे 60 हज़ार करोड़ का क़र्ज़ लेकर समूचे प्रदेश को कर्ज़दार बना देने, शराबबंदी का वादा गंगाजल उठाकर करने के बाद प्रदेश में आधिकारिक तौर पर शराब की शासकीय होम डिलीवरी करने वाली कांग्रेस सरकार अपने कम्युनिस्ट सलाहकारों के साथ प्रदेश में नए-नए प्रपंच रचकर खुद को हिंदूवादी साबित करने की हास्यास्पद कोशिश में जी-जान से जुटी हुई है। ‘चोर से कहो चोरी कर और गृहस्वामी से कहो जागते रह’ की अपनी पुरानी कोशिश में जुटी कांग्रेस पहले तो जान-बूझकर समाज में सद्भावना बिगाड़ती है और बाद में खुद को हिन्दुओं का शुभचिंतक दिखाने में लग जाती है।
इस खेल को देश-समाज को समझने की ज़रुरत है, जिसकी शुरुआत प्रदेश के कबीरधाम जिले से हुई थी। इस शहर को प्रयोगस्थली बनाए जाने के पीछे शायद यही कारण रहा हो क्योंकि यह शहर अपने नाम के अनुरूप ही साम्प्रदायिक सद्भाव की ह्रदयस्थली रहा है। करपात्री जी महाराज की यह कर्मभूमि, रामराज्य परिषद् का गढ़ रहे इस शहर के विधानसभा से इस बार प्रदेश में सबसे अधिक मतों से जीतकर मोहम्मद अकबर विधानसभा पहुंचे हैं और आज वे शासन के सबसे कद्दावर मंत्री हैं। यहां सबसे पहले भगवा झंडे को एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा अपमानित कराया गया। उसका प्रतिकार करने पहुंचे हिन्दू युवा की अमानवीय पिटाई की गयी। रातोंरात युवाओं को घर से उठा लिया गया। भाजपा के सांसद, पूर्व सांसद, और शहर के सभी भाजपा नेताओं और हिन्दू नेताओं के खिलाफ भी तमाम असंगत धाराओं में केस दर्ज कर दिए गए। पार्टी के प्रदेश मंत्री को तो दिवाली के मौके तक पर जेल में रखा गया ताकि डर कायम रहे।
इतना सब कुछ होने के बाद फिर दूसरे पक्ष का रहनुमा दिखने की कोशिश शुरू हुई, जिसने वैसा ही हास्यास्पद रूप ले लिया जैसा राहुल गांधी द्वारा खुद को दत्तात्रेय ब्राम्हण दिखाने की कोशिशों पर होता है। दंगे आदि के बाद कवर्धा में संतों का सम्मलेन प्रायोजित किया गया, जिसके आयोजक स्थानीय विधायक बने। लेकिन संतों ने पूरी स्थिति समझते हुए वहां उल्टे कांग्रेस की ही पोल खोलते हुए उसके हिन्दू विरोधी रवैये की निंदा भी की। ऐसा होने के बाद डैमेज कंट्रोल की कवायद के तहत कांग्रेस ने राजधानी रायपुर में एक ‘धर्म संसद’ आयोजित कर डैमेज कंट्रोल की कोशिश हुई। इस कथित संसद के आयोजकों में भी कांग्रेस के विधायक, पूर्व विधायक, निगम सभापति एवं अन्य नेता शामिल थे। ऐसा कर धर्मप्राण प्रदेश में बन गयी हिन्दू द्रोही छवि को बदलने की कांग्रेसी कोशिशों पर कालीचरण महाराज ने पलीता लगा दिया। हालांकि यहां भी अपने कृत्यों से कांग्रेस बुरी तरह एक्सपोज ही हुई। संत कालीचरण ने महात्मा गांधी के बारे में टिप्पणी की, जिसके बाद तमाम वैधानिक प्रक्रियों को ताक पर रखकर न केवल कालीचरण को जेल भेजा गया, बल्कि उन पर राजद्रोह की धाराएं भी लाद दी गयी। उनके बयान से हालांकि समूचे समाज ने असहमति जताई है। मुख्य विपक्षी भाजपा ने भी कहा कि गांधी जी के बारे में अनुचित शब्द अस्वीकार्य हैं, लेकिन जिस तरह लगातार ऐसे कार्यक्रम प्रायोजित किये गए और पोल खुलने के बाद कांग्रेस जिस तरह एकतरफा और अतार्किक कारवाई पर उतारू है, उसकी सर्वत्र आलोचना हो रही है। अव्वल तो उस राजद्रोह क़ानून के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसे हटाने की घोषणा कांग्रेस ने चुनाव के दौरान की थी। विधानसभा चुनाव में किये इसके ऊपर वर्णित तमाम वादों की तरह ये वादे भी उसकी कथनी और करनी के भेद को बताने के लिए पर्याप्त हैं।
इसके बाद इकतरफा और अनर्गल कार्रवाई से नाराज भाजपा तुरंत फ्रंटफुट पर आयी और पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कांग्रेस को गांधी के विचारों की हत्यारी बताते हुए संत की तुरंत बिना शर्त रिहाई की मांग की। अग्रवाल का कहना था कि गांधी के आराध्य श्रीराम पर लगातार अनर्गल बयानबाजी करने वाले सीएम के पिता पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया गया? क्या क़ानून कांग्रेस के लिए अलग और अन्य के लिए अलग है? उन्होंने आयोजकों पर भी कोई कार्रवाई नहीं करने और संत का उत्पीड़न करने पर भी सवाल उठाये। इससे पहले भाजपा ने कांग्रेस द्वारा दी गयी 50 ऐसी गालियों की सूची जारी करते हुए, खुद मुख्यमंत्री द्वारा विपक्ष भाजपा के बारे में उसी अपशब्द का समानार्थी कहते रहने पर सवाल उठाते हुए शासन से पूछा कि ऐसे में सीएम बघेल के विरुद्ध राजद्रोह की कार्रवाई क्यों नहीं होना चाहिए? देशभर में कहीं भी सोनिया गांधी या राहुल-प्रियंका गांधी के खिलाफ कुछ भी बोलने पर छत्तीसगढ़ में सैकड़ों मुकदमे एक साथ ठोक देने वाली कांग्रेस पर सवाल यह भी उठ रहा है कि गांधी जी को तमाम तरह के अपशब्द कहने, उनकी समाधि पर जेसीबी चला देने की धमकी देने वाले वामन मेश्राम जैसे लोगों पर क्यों राजद्रोह के मुकदमे नहीं किये जा रहे जबकि छत्तीसगढ़ में भाषण देने के मामले में कांग्रेस गठबंधन शासित महाराष्ट्र में भी मुकदमे दर्ज किये गए हैं। ऐसे तमाम सवाल लगातार कांग्रेस से पूछे जा रहे हैं, लेकिन इन तमाम सवालों से बेपरवाह सीएम बघेल छत्तीसगढ़ को अपने हाल पर छोड़ स्वयं प्रदेश का समय और संसाधन उत्तर प्रदेश में झोंककर गांधी परिवार को प्रसन्न करने में अहर्निश जुटे हैं, इधर प्रदेश की जनता को तुष्टिकरण करने का ठेका लिए इनके सिपहसालार प्रदेश में हर बार न केवल मुंह की खा रहे अपितु अपने ऊल-जुलूल हरकतों से उपहास का पात्र भी बन रहे हैं।
देश में एक ही कानून है और वह एक जैसे ही अपराध के लिए अलग-अलग व्यक्तियों पर अलग-अलग लागू नहीं होते। इस कथित धर्म संसद के मुख्य आयोजकों में शामिल रायपुर पश्चिम से कांग्रेस के वर्तमान विधायक विकास उपाध्याय, पूर्व महापौर और सभापति प्रमोद दुबे, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रदेश अध्यक्ष नीलकंठ त्रिपाठी एवं पूर्व कांग्रेस विधायक एवं दूधाधारी मठ के महंत रामसुंदर दास के ऊपर भी राष्ट्रद्रोह के तहत अपराध पंजीकृत कर उनकी गिरफ्तारी सुनिश्चित किये जाने की मांग लगातर उठ रही है। लेकिन राज्य सरकार उक्त सभी व्यक्तियों को केवल इसलिए छोड़ रही है, क्योंकि वे सभी कांग्रेस पार्टी से संबंध रखते हैं?
भाजपा प्रवक्ता के अनुसार – ‘कांग्रेस द्वारा कथित धर्म संसद आयोजन कर गांधी जी को गाली दिलाना और उसके बाद की सुनियोजित प्रतिक्रियाएं-कार्रवाई आदि वास्तव में कांग्रेस के ‘टूल किट’ की ही कड़ी है।’ यह कड़ी कवर्धा में भगवा ध्वज अपमान, दंगे आदि से लेकर रायपुर में मिशनरी द्वारा तिरंगा द्वारा झंडा जलाने की धमकी, सरगुजा में रोहिंग्याओं को बसाए जाने से लेकर सुकमा एसपी द्वारा धर्मांतरण पर चिंता जताए जाने के बावजूद उस पर लीपापोती करना, कमिश्नर द्वारा भी चिंता जताए जाने के बावजूद चुप रहने तक असीमित है।
साम्प्रदायिक तुष्टिकरण की तमाम कोशिशों और कालीचरण प्रकरण की बीच ही कांग्रेस सरकार का एक विज्ञापन भी चर्चा में रहा, जिसमें एक संदिग्ध इस्लामी संगठन ‘दावत ए इस्लामी’ को राजधानी रायपुर में 25 एकड़ ज़मीन आवंटित किये जाने की कारवाई को लेकर थी। इस मामले में भी विभागीय मंत्री वही नेता हैं जिन पर कबीरधाम मामले में शासन के दुरूपयोग समेत अन्य आरोप हैं। विपक्ष समेत सनातन संगठनों के प्रखर और मुखर विरोध से परास्त होकर इस मामले में भी फिलहाल कांग्रेस ने दावत ए इस्लामी को ज़मीन देने की प्रक्रिया को रोक दिया है, लेकिन ऐसी कितनी सहायता भूपेश सरकार ने विधर्मियों की हो रही है, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। वास्तव में प्रदेश की भूपेश सरकार तमाम मामलों में कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व समेत तमाम विधर्मी निहित तत्वों के कठपुतली की तरह काम कर रही है। प्रदेश में सत्ता होने का फ़ायदा उठा कर इसाई-इस्लामी धर्मांतरण की तमाम कोशिशों को परवान चढ़ाया जा रहा है। बहुसंख्यक सनातन वर्ग लांछित, अपमानित और पीड़ित किये जा रहे हैं और ऐसा सोची-समझी साज़िश के तहत होने का संदेह तमाम प्रेक्षक व्यक्त कर रहे हैं।
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