पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नकल कर रहे हैं। ठेके पर नियुक्त 36,000 कर्मचारियों को नियमित करने के मुद्दे पर राज्यपाल से टकराव पर आमादा हैं। चन्नी का आरोप है कि कर्मचारियों की नियमित करने संबंधी विधेयक को राज्यपाल जानबूझ कर मंजूरी नहीं दे रहे हैं।
पंजाब के मुख्यमंंत्री चरणजीत सिंह चन्नी राज्य में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नक्शेकदम पर चलते हुए राज्यपाल से टकराव की मुद्रा में आते दिखाई दे रहे हैं। चन्नी का कहना है कि राज्य में ठेके पर रखे गए 36,000 कर्मचारियों को नियमित करने संबंधी विधानसभा में पारित होने के बाद मंजूरी के लिए राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के पास भेजा गया। लेकिन लंबे समय से उन्होंने इसे लटका रखा है। उन्होंने आरोप लगाया कि इसके पीछे भाजपा की साजिश है, जिसके दबाव के कारण राज्यपाल ऐसा नहीं कर रहे हैं।
चन्नी ने कहा कि मुख्य सचिव अनिरुद्ध तिवारी दो बार और वह खुद मंत्रियों के साथ राज्यपाल के पास जाकर कह चुके हैं कि इस विधेयक को जल्द से जल्द मंजूर कर दें, ताकि राज्यभर में अनुबंध के आधार पर रखे गए कर्मचारियों को नियमित करने का रास्ता साफ हो जाए। इस मुद्दे पर चन्नी ने राजभवन के सम्मुख धरने की भी चेतावनी दे रखी है। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को सवालों के जवाब देने की सलाह दी है। साथ ही, कहा है कि सरकार के जवाब का अध्ययन करने के बाद वे फिर से विधेयक का अध्ययन करेंगे। लेकिन मुख्यमंत्री चन्नी जिद पर अड़े हुए हैं कि राज्यपाल विधेयक को मंजूरी दे दें। उन्होंने धरने की धमकी भी दी है। चन्नी द्वारा विधेयक को मंजूरी नहीं मिलने के पीछे भाजपा का हाथ बताने की जल्दबाजी इशारा करती है कि वे संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने की बजाय इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं।
दूसरी ओर, राज्यपाल ने स्पष्ट किया है कि विधेयक को लेकर छह सवाल उठाए गए हैं, जिनके जवाब मुख्यमंत्री कार्यालय को देने हैं। विधेयक की फाइल लौटा दी गई है और 31 दिसम्बर, 2021 को मुख्यमंत्री कार्यालय को यह मिल भी चुकी है। बता दें कि पंजाब विधानसभा में पिछले साल 11 नवम्बर को अनुबंध कर्मचारियों को नियमित करने का प्रस्ताव पारित कर 1 दिसम्बर को राज्यपाल के पास भेजा था। दिसंबर में राज्यपाल राज्य के जिलों के दौरे पर थे। 23 दिसंबर को मुख्यमंत्री ने इस संबंध में राज्यपाल से भेंट की। इसके बाद विधेयक का अध्ययन करने के बाद राज्यपाल ने 1 दिसंबर को यह फाइल सरकार को वापस भेज दी।
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