बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों 'समाज सुधार अभियान' के अंतर्गत विभिन्न जिलों का दौरा कर रहे हैं। इस अभियान में नीतीश कुमार लोगों से तरह—तरह की अपील कर रहे हैं, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य है राज्य में जारी शराबबंदी को सफल बनाना। इसके बावजूद लोग बेधड़क शराब पी रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार की 59 जेलों में इस समय लगभग 70,000 कैदी बंद हैं, जबकि इन जेलों की क्षमता केवल 47,000 है। यानी इस समय बिहार की जेलों में क्षमता से 23,000 अधिक कैदी रह रहे हैं। 70,000 कैदियों में से लगभग 25,000 कैदी शराब कानून के अंतर्गत गिरफ्तार हुए हैं। पिछले दिनों गोपालगंज और बेतिया में जहरीली शराब से अनेक लोगों की मौत हुई थी। इसे देखते हुए सरकार और पुलिस दोनों शराबियों पर सख्त हो गई है। पुलिस के रिकॉर्ड के अनुसार अप्रैल, 2016 से अक्तूबर, 2021 तक (शराबबंदी लागू होने से अब तक) मद्य निषेध और उत्पाद शुल्क कानून के अंतर्गत 3,48,170 मामले दर्ज हुए हैं और 4,01,855 लोग गिरफ्तार हुए हैं। यह आंकड़ा बता रहा है कि शराबबंदी के बावजूद लोग शराब पी रहे हैं।
बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम 2016 के लागू होने के बाद से न्यायालयों में शराबबंदी से जुड़े मामलों की बाढ़ आ गई है। इसके साथ ही जेलों में कैदियों की संख्या बढ़ गई है।
अदालतों पर मुकदमों का बोझ बढ़ गया है। जेलों में कैदियों की संख्या काफी बढ़ गई है। हालत यह है कि ऐसे मामलों से संबंधित लगभग 20,00 जमानत आवेदनपत्र पटना उच्च न्यायालय और जिला न्यायालयों में लंबित हैं। पटना उच्च न्यायालय में जनवरी, 2020 से नवंबर, 2021 के बीच शराबबंदी के मामलों में 19,842 जमानत याचिकाओं (अग्रिम और नियमित) का निपटारा किया गया। इस दौरान अलग-अलग न्यायालयों में कुल 70,673 जमानत याचिकाओं पर सुनवाई हुई।
पटना स्थित बेऊर जेल की स्थिति यह है कि हर तीसरा या चौथा कैदी शराबबंदी कानून के अंतर्गत आरोपी है। 2017 के बाद से यही चलन रहा है। 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले थोड़ी राहत मिली थी। अधिकांश को जमानत मिल गई थी, लेकिन एक बार फिर से जेलों में शराब कानून का उल्लंघन करने वालों की संख्या बढ़ रही है। शराबबंदी कानून के अंतर्गत सजा पाने वालों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम है।
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