वियतनाम के ‘चाम हिन्दू’ व ईसा पूर्व काल से मध्य 19वीं सदी तक वहां पर रहा चम्पा का हिन्दू साम्राज्य आज इतिहास में विस्मृत होता जा रहा है। शैव एवं सनातन मत प्रधान प्राचीन चम्पा अर्थात् अन्नम प्रदेश, जो आज का वियतनाम है, राजा ‘श्रीमार’ के दूसरी सदी (137-192 ईस्वी) के हिन्दू राजवंश से लेकर उन्नीसवीं सदी में पाण्डुरंग साम्राज्य (1471-1832) के 1832 में हुए अवसान तक के विवरण वहां मिल रहे शिलालेखों व अभिलेखों में प्रचुरता में हैं। यूनेस्को के विश्व विरासत संबंधी ‘मी सान’ के अध्याय में भी चम्पापुर को चाम हिन्दुओं की, संस्कृत भाषा प्रधान राजधानी बताते हुए उसे 192 ईस्वी से तेरहवीं सदी तक हिन्दू अध्यात्मवाद के सशक्त केन्द्र के रूप में वर्णित किया गया है।
पुरावशेषों का अध्ययन आवश्यक
आज के वियतनाम और प्राचीन चम्पा अर्थात् अन्नम प्रदेश में 137 ईस्वी से 1832 तक सिंहपुर, इन्द्रपुर, अमरावती, विजय, कौठार व पाण्डुरंग आदि कई हिन्दू रियासतों व उनके प्राचीन समृद्ध इतिहास के संस्कृत शिलालेख व पाण्डुलिपियां प्रचुरता में मिलती रही हैं। इन सभी का पृथक-पृथक विवेचन किया जाता रहा है। लेकिन इनका समेकित अध्ययन अभी तक नहीं हुआ है। ईसा पूर्व काल से वहां प्रचलित शैवमत और विविध पौराणिक हिन्दू देवी-देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं व मन्दिरों के पुरावशेष आज भी बड़ी मात्रा में मिल रहे हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक उत्खनन में हाल ही में पिछले वर्ष भी ‘मी सान’ क्षेत्र में 9वीं सदी का जलधारी युक्त शिवलिंग प्राप्त हुआ है। (चित्र 1)
प्राचीन पौराणिक मूर्तियां व मन्दिर
चम्पा के प्राचीन हिन्दू साम्राज्य व चाम हिन्दुओं में प्रचलित पौराणिक व वैदिक देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ वियतनाम में सनातन हिन्दू मंदिरों के अवशेष भी बड़ी संख्या में फैले हैं। वियतनामी चाम हिन्दू मुख्यत: शिव उपासक रहे हैं। इसलिए कई प्राचीन शिवलिंग व विविध प्रकार के प्राचीन शिव विग्रह बड़ी संख्या में मध्य वियतनाम व वियतनाम के अन्य भागों में मिले हैं। इनमें नृत्य मुद्रा में व पद्मासनस्थ ध्यान मुद्रा में भी शिव विग्रह मिले हैं। (चित्र 2-4)
चित्र संख्या 2 से 4 के जैसे शिव विग्रह व अन्य पौराणिक हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां प्राचीन वियतनाम में शैव एवं सनातन हिन्दू मत की प्रधानता का संकेत करती हैं। शैव मत की प्राचीन प्रतिमाओं के साथ वहां विविध पौराणिक देवी-देवताओं के साथ ही नृत्य मुद्रा में सरस्वती की प्रतिमा (चित्र 5) व वातायन में बैठे बांसुरी वादक श्री कृष्ण (चित्र 6) की भी अत्यन्त दुर्लभ प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। वियतनाम में प्रो. नगर, मी. सोन आदि अनेक स्थानों पर प्राचीन मन्दिरों के अवशेष विद्यमान हैं। चित्र 7 में प्रो. नगर का गणेश मन्दिर व चित्र 8 में महिषासुर मर्दिनी का मन्दिर व चित्र 9 में महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा की प्रतिमा देखी जा सकती है।
प्राचीन इतिहास व हिन्दू राजवंशों की परम्परा
वियतमान में चम्पा की हिन्दू सभ्यता व संस्कृति के प्रमाण ईसा पूर्व 1000 वर्ष से मिलते रहे हैं। ईसा पूर्व शताब्दियों के उस काल में बोर्निओ व मलय द्वीपों से बड़ी संख्या में वहां के व्यापारिक समूहों ने चम्पा में बसना प्रारम्भ किया था। नृवंशीय अध्ययनों के अनुसार हिन्दू प्रवासी भारतीय न हो कर वहीं के मूल निवासी हैं। पहली सदी से ही बोर्निओ में व्यापारिक बन्दरगाह के चीन से व्यापार के कई प्राचीन चीनी अभिलेखों में वर्णन हैं। बोर्निओ के कलिमन्थन साम्राज्य के प्राचीन नगर कुटाई में भारतीय पल्लव लिपि में चौथी सदी के कई शिलालेख मिले हैं। ब्रुनेई एशिया का सबसे बड़ा द्वीप है जिसमें आज तीन देशों मलेशिया, ब्रुनेई व इण्डोनेशिया की सीमाएं लगती हैं। ब्रुनेई में आज चाहे 80 प्रतिशत मतान्तरित मुस्लिम हैं लेकिन, वहां चौथी से ग्यारहवीं सदी तक हिन्दू व बौद्ध समुदाय ही रहे हैं।
आज भी लगभग 62,000 चाम हिन्दू वियतनाम में एवं 6-8 लाख सम्पूर्ण दक्षिण पूर्व एशिया में, अपनी दो हजार वर्ष प्राचीन हिन्दू परम्पराओं, जीवनशैली व उपासना पद्धतियों का ढृढ़तापूर्वक पालन कर रहे हैं।
अभिलेखों के अनुसार वियतनाम के चम्पा साम्राज्य के आरम्भिक हिन्दू मतावलम्बी राजाओं में ‘श्री मार’ का शासन 137-192 ईस्वी के बीच रहा है। वियतनाम के ‘न्हा ट्रांग’ नगर के ‘वो कान्ह’ गांव में 1885 में मिले दूसरी सदी के संस्कृत शिलालेख में राजा ‘श्री मार’ का उल्लेख है। कुछ विद्वान इस शिलालेख को चौथी सदी का मानते हैं। ‘श्री मार’ के बाद भद्र्रवर्मन के काल (380-413 ईस्वी) में चम्पा राज्य का बहुत विस्तार हुआ और उस काल के कई मन्दिरों के अवशेष व शिलालेख भी मिले हैं। राजा भद्र्रवर्मन शैव मतावलम्बी थे। उन्होंने ‘मी सान’ में भद्रेश्वर के शिव मन्दिर सहित कई हिन्दू मन्दिरों का निर्माण किया था। आगे चल कर 529 ईस्वी में रुद्र्रवर्मन ने 529 में राज्यारोहण के बाद सशक्त नौसेना का भी विकास किया और उनके पुत्र शम्भूवर्मन (572-629) ने भद्र्रेश्वर शिव मन्दिर का पुनर्निर्माण कराया। इसके बाद इस शिव मंदिर का नाम शम्भू-भद्र्रेश्वर हो गया। इनके पुत्र कन्दर्प धर्म व पौत्र प्रभासधर्म के काल में चम्पा की नौसेना के विस्तार सहित वियतनाम के बन्दरगाह उस क्षेत्र के सबसे बड़े व्यापारिक केन्द्र बन गए थे। प्रभासधर्म के पुत्र एवं राजा ‘प्रभासधर्म विक्रमवर्मन’ के काल 657 ईस्वी का भी एक संस्कृत शिलालेख और 70 से अधिक हिन्दू मन्दिरों के पुरावशेष अब तक मिले हैं। इनमें प्राचीन विविध हिन्दू राजवंशों का इतिहास, वंशावली, देव मन्दिरों के निर्माण की पृष्ठभूमि व इतिहास और राजाओं के दान आदि के विवरण आदि अभिलिखित हैं।
इतिहास
वायु पुराण में वर्णित अंगद्वीपम् का ही अपभ्रंश उपनिवेशवादी यूरोपियनों के लिए उच्चारण की सहजता के साथ ‘अन्नम’ हो गया। वियतनाम के चम्पा क्षेत्र को फ्रेंच संरक्षित राज्य बनाए जाने के बाद पाश्चात्य देशों में वियतनाम का नाम अन्नम ही चलता रहा। अंगद्वीप में यह चम्पा का हिन्दू साम्राज्य, यूनेस्को के अनुसार भी दूसरी सदी से चौदहवीं सदी तक रहा है। रावण की दिग्विजय के विवरणों में बाली द्वीप (इण्डोनेशियाई बाली), अंग द्वीप (वियतनाम), मलय द्वीप (मलेशिया), वाराह द्वीप (मेडागास्कर), शंख द्वीप (बोर्निओ), कुश द्वीप, यव द्वीप (जावा) आदि के भी वर्णन आते हैं। नृवंशीय अध्ययनों के अनुसार मेडागास्कर से बोर्निओ में व बोर्निओ से हिन्दचीन अर्थात् वियतनाम में बड़ी संख्या में जनसमूहों के आप्रावासन के भी अनेक शोध निष्कर्ष मिलते रहे हैं।
वस्तुत: वियतनाम में अब तक मिले अनेक शिलालेखों व पाण्डुलिपियों में मन्दिरों के पुरावशेषों आदि के पृथक-पृथक एवं एकाकी वर्णन प्रचुर विस्तार के साथ मिलते हैं। लेकिन, उनमें परस्पर संबंध व क्रमबद्धता स्थापित करने का प्रयास कर उन पर कोई शृंखलाबद्ध अध्ययन नहीं हुआ है। चम्पा की सात हिन्दू रियासतों व राजवंशों के काल में भी उत्तरोत्तर क्रमबद्धता है। इनमें काण्डपुरपुरा (192-605 ईस्वी), सिंहपुर रियासत (605-757), वीरपुर रियासत (757-1471), कौठार रियासत (757-1653) व पाण्डुरंग रियासत (1471-1832) प्रमुख हैं। आज इन सभी के उपलब्ध अभिलेखों, पाण्डुलिपियों व शिलालेखों और पुरावशेषों के विस्तृत, क्रमिक एवं पारस्परिकता के अनुसार व्यवस्थित अध्ययन आवश्यक है।
आज भी लगभग 62,000 चाम हिन्दू वियतनाम में एवं 6-8 लाख सम्पूर्ण दक्षिण पूर्व एशिया में, अपनी दो हजार वर्ष प्राचीन हिन्दू परम्पराओं, जीवनशैली व उपासना पद्धतियों का ढृढ़तापूर्वक पालन कर रहे हैं।
इस पूरे क्षेत्र में हुए कन्वर्जन व अन्य सभी प्रकार के उतार-चढ़ावों के बाद भी वे अपने पूर्वजों की उपासना पद्धति व जीवन शैली को सुरक्षित रखे हुए हैं।
(लेखक गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कुलपति रहे हैं)
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