डॉ. आनंद पाटील
भारतीय संस्कृति के संरक्षक आदि शंकराचार्य की जन्मभूमि (केरल) अब प्राय: हिंसा तथा रक्तरंजित घटनाओं के कारण चर्चा में रहती है। राज्य में 18-19 दिसंबर को केवल 12 घंटे के अंतराल में हुई दो ‘राजनीतिक’ हत्याओं ने देशभर में खलबली मचा दी है। 18 दिसंबर को अल्लेपी (अलापुझा) में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया (एसडीपीआई) के सचिव केएस शान को स्कूटर से घर लौटते समय, कथित रूप से एक कार ने उन्हें टक्कर मारकर गिराया। फिर, कार सवार ने उन्हें घटनास्थल पर ही पीटा और उनकी मृत्यु हो गई।
उल्लेखनीय है कि एसडीपीआई इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) का राजनीतिक संगठन है। केएस शान की मृत्यु के 12 घंटे के भीतर ही 12 हत्यारों ने अल्लेपी में ही भाजपा ओबीसी मोर्चा के राज्य सचिव रंजीत श्रीनिवासन की उनके निवास पर परिजनों के सामने बर्बरतापूर्ण हत्या कर दी। इसमें भाजपा ने ‘इस्लामिक आतंकवादी समूह’ का हाथ बताया है। केरल भाजपा के अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने सीधे-सीधे श्रीनिवासन की हत्या का आरोप पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) पर लगाया। रंजीत अत्यंत सामाजिक एवं शांतिप्रिय नेता और पेशे से वकील थे। वे 2016 के विधानसभा चुनाव में अलापुझा से भाजपा प्रत्याशी थे।
जनसांख्यिक परिवर्तन से निरंकुशता
हिंसा तथा रक्तपात किसी भी देश और समाज को पतन की ओर ही ले जाता है। उल्लेखनीय है कि भारत में जैसे-जैसे हिन्दुओं में स्वाभिमान का भाव प्रगाढ़ हो रहा है, संघ-भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्याएं बढ़ रही हैं। इसी वर्ष फरवरी में अलेप्पी के ही वायलार में एसडीपीआई के एक गुट ने उन्मुक्त प्रदर्शन का ‘प्रतिरोध’ करने पर संघ कार्यकर्ता नंदू कृष्णा की हत्या कर दी थी। केरल में इस्लामिक संगठनों की निरंकुशता के अनेकानेक उदाहरण हैं।
इसी वर्ष सितंबर में, असम में पुलिसकर्मियों पर हुए हमले के बाद मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने पीएफआई को प्रतिबंधित करने की बात कही थी। उन्होंने भूमि अतिक्रमण मामले में ‘जनसांख्यिक परिवर्तन’ को रेखांकित किया था। विदेशों में जहां ‘आॅसम विदाउट इस्लाम’ का दौर है, वहीं भारत में अल्लाह के नाम पर हिंसा, अराजकता और हत्या का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। अगस्त 2020 में बंगलुरु (कर्नाटक) में पैगम्बर मुहम्मद संबंधी फेसबुक पोस्ट ने हड़कम्प मचा दिया था। केरल निवासी हिन्दू इसे तुष्टीकरण की राजनीति और सरकार से उन्हें मिली खुली छूट का प्रतिफलन बताते हैं। राज्य में अनेक जिलों में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, फिर भी, उन्हें ‘अल्पसंख्यक’ का दर्जा हासिल है।
भाजपा नेता रंजीत श्रीनिवासन की हत्या के बाद केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन ने इसे ‘इस्लामिक आतंकवादी समूहों का काम' बताते हुए उनके प्रति राज्य सरकार के ‘नरम रुख’ की आलोचना की है। केरल में इस्लामिक आतंकवाद के विभिन्न प्रकारों और कार्यपद्धति से संबंधित समाचार समय-समय पर आते हैं। इस संदर्भ में सिरो-मालाबार चर्च का बयान भी स्मरणीय है कि ईसाई महिलाओं को भी आईएसआईएस की भेंट चढ़ाया जा रहा है। वे 'लव जिहाद' की शिकार हो रही हैं।
माकपा की दोहरी चाल!
अलापुझा के स्थानीय एसडीपीआई नेताओं ने माकपा को शान की हत्या में शामिल बताया। परंतु बाद में राज्य और उच्च स्तरीय नेताओं ने माकपा की जगह बेवजह और बिना तथ्यों के भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर दोष लगाने का असफल प्रयास किया। इसके बाद शान की हत्या को संघ कार्यकर्ता नंदू कृष्णा की एसडीपीआई के गुंडों द्वारा की गई हत्या से जोड़कर ‘प्रतिशोध’ बताने का राग शुरू किया गया। एक बात और निकल कर आ रही है कि स्थानीय स्तर पर माकपा और एसडीपीआई में ठनी हुई थी। पिछले दिनों एसडीपीआई वालों ने माकपा के एक सदस्य को जख्मी कर दिया था। यह भी कहा जा रहा है कि माकपा दोहरी चाल चल रही है।
भाजपा नेता रंजीत श्रीनिवासन की हत्या में एक बात और देखने वाली है। उनके घर से पुलिस स्टेशन मात्र 200 मीटर की दूरी पर है। हत्यारे श्रीनिवास के घर 17 मिनट तक हिंसा का बर्बर प्रदर्शन करते रहे परंतु थाने से कोई नहीं आया। वह भी तब, जब 12 घंटे पहले एसडीपीआई नेता शान की हत्या हो चुकी थी। ऐसी स्थिति में पुलिस अतिरिक्त सतर्क होती है। परंतु श्रीनिवासन की हत्या के समय पुलिस जानबूझकर लापरवाह बनी रही।
कार्यकर्ताओं की हत्या को दृष्टिगत रखते हुए भाजपा ने पीएफआई समर्थित आतंकवाद पर राज्य की विफलता तथा ‘नरम रुख’ की ओर संकेत करते हुए राज्य में ‘सीरिया की सी स्थितियों’ का जिÞक्र किया है और हत्याओं की निष्पक्ष जांच की मांग की है। लेकिन राज्य सरकार राज्य एजेंसी से ही जांच कराने पर अड़ी है। खुफिया रिपोर्ट कहती है कि स्थिति तनावपूर्ण है। खबरें आ रही हैं कि पीएफआई ने संघ और भाजपा से जुड़े 100 नेताओं की सूची तैयार की है।
संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की लगातार होती हत्याएं
उल्लेखनीय है कि संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या का आरोप वामपंथियों पर लगता रहा है। ये आरोप सत्य प्रमाणित होते रहे हैं। उल्लेखनीय है कि 24 फरवरी को केरल के वालयार (अलेप्पी) में एसडीपीआई के एक गुट ने योगी आदित्यनाथ के विरोध-प्रदर्शन में आपत्तिजनक नारे लगाए थे, अत: नंदू कृष्णा ने आपत्ति जताई थी। परिणामत: उनकी हत्या कर दी गई थी। ऐसे ही, 15 नवंबर को पलक्कड़ निवासी संघ प्रचारक संजीत की दिनदहाड़े उनकी पत्नी के सामने ही हत्या कर दी गई थी। संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं का यह एक तरीका ही बनता गया है। कुछ लोग समूह में आते हैं। जिसकी हत्या करनी है, उसे उसके परिजनों के सामने बर्बरतापूर्वक मार देते हैं। अब आरोपों के घेरे में कम्युनिस्ट सरकार समर्थित आतंकी समूह हैं। यहां यह भी स्मरण रहना चाहिए कि केरल के कन्नूर में पहली राजनीतिक हत्या 1969 में संघ के वडिक्कल रामाकृष्णन की हुई थी। इस हत्याकांड के एक आरोपी का नाम पिनाराई विजयन था जो आज राज्य के मुख्यमंत्री हैं।
पीएफआई की गतिविधियां
वैसे, पीएफआई की गतिविधियों से सभी भलीभांति परिचित हैं। 2014 में केरल सरकार ने केरल उच्च न्यायालय में दिए एक हलफनामे में बताया गया था कि पीएफआई और उससे जुड़े एक और संगठन एनडीएफ के कार्यकर्ताओं को 27 हत्या, 86 हत्या की कोशिश के मामलों और सांप्रदायिक हिंसा के 106 दूसरे मामलों में शामिल पाया गया। फरवरी 2021 में, उत्तर प्रदेश में पीएफआई के दो सदस्यों को भारी मात्रा में विस्फोटक के साथ गिरफ्तार किया गया था। अप्रैल में, हाथरस मामले में पीएफआई के आठ सदस्यों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल हुआ। देशद्रोह के साथ-साथ कई अन्य आपराधिक मामले दर्ज हैं ही। जून में आयकर विभाग ने नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए पीएफआई को 80जी के अंतर्गत प्रदत्त लाभ रद्द कर दिए। एनआईए, ईडी और राज्य पुलिस इसके विरुद्ध सैकड़ों मामलों की जांच कर रही है। उल्लेखनीय है कि एसडीपीआई ने सीएए का विरोध करते हुए पूरे भारत में प्रदर्शन किए थे।
पीएफआई और मुख्यमंत्री की वैचारिक निकटता
इसमें दो राय नहीं कि पीएफआई और मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन में वैचारिक निकटता है। यह भी कि उनकी बेटी वीना ने डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन आॅफ इंडिया (डीवाईएफआई) के अध्यक्ष पीए मोहम्मद रियाज से निकाह किया है। कम्युनिस्ट और इस्लामिक संगठनों की एकता अन्य राज्यों में भी देखी जा सकती है। यह भी कि भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन और लेखन के प्रणेता मुस्लिम समुदाय से ही रहे हैं। वहीं, यह देखना-सोचना-समझना चाहिए कि इस्लामिक देशों में कम्युनिज्म का नामोनिशान तक नहीं है। स्वतंत्रता के बाद कम्युनिस्ट पार्टी आफ पाकिस्तान (सीपीपी) का गठन किया गया था। और ‘रावलपिंडी षड्यंत्र’ के मामले में उन नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। इन कैदियों में सज्जाद जहीर और फैज अहमद फैज चर्चित नाम थे। इस घटना के साथ ही पाकिस्तान में कम्युनिस्ट आंदोलन का सूपड़ा साफ हो गया था। दुर्भाग्यवश कम्युनिस्टों के लिए भारत उर्वर भूमि बना रहा। इसके अनेकानेक कारण हैं।
अस्तु, यद्यपि इन हत्याओं को ‘राजनीतिक हत्याएं’ करार दिया जा रहा है। तथापि ‘सांप्रदायिक’ पक्ष को अनदेखा नहीं किया जा सकता। जहां-जहां कम्युनिस्ट विचारधारा हावी रही है, वहां किसी-न-किसी रूप में रक्तपात होता रहा है। केरल में वर्तमान में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) की सरकार है। हालांकि 2021 चुनाव परिणामों के बाद विजयन ने ‘केरल के लोग सांप्रदायिक और विभाजनकारी राजनीति पसंद नहीं करते’ कहा था। सत्य यह है कि हिन्दुओं की चुन-चुनकर हत्याएं की जा रही हैं।
‘पिछड़ी हिन्दू जातियां और मुस्लिम एकता’ का मिथ समय-समय पर टूटता रहता है। रंजीत की हत्या से भी यह मिथ पुन: एक बार टूटा है। सरकार के रुख और रवैये को देखते हुए ऐसा लगता है कि वह हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं की इन हत्याओं पर ज्यादा गंभीरता न दिखाकर वामपंथी एजंडे में जुटी रहना चाहती है।
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