हितेश शंकर
अटलजी की तबियत बिगड़ी..। शाम होते-होते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अटलजी के स्वास्थ्य का हाल लेने एम्स पहुंच गए। देश के पूर्व प्रधानमंत्री, पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक और सर्वप्रिय जननेता अटल बिहारी वाजपेयी 11 जून, 2018 से सांस लेने में दिक्कत और गुर्दे के संक्रमण के उपचार के लिए एम्स में भर्ती थे। अगले दिन दोपहर तक आशंकाओं के बादलों ने पूरे देश, खासकर दिल्ली को ढक लिया। भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी बैठक स्थगित कर दी गई। दिल्ली में अटलजी के घर के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मियों की संख्या बढ़ा दी गई। किसी औपचारिक घोषणा से पहले एक टीवी चैनल ने अटलजी के निधन की घोषणा कर दी। सोशल मीडिया पर अपुष्ट खबरों की पहले से जारी बाढ़ के बीच व्हाट्सएप पर चैनल का स्क्रीनशॉट तेजी से घूमने लगा। एकाएक जिस तरह हड़बड़ी में खबर चली, उससे दोगुनी तेजी से उसे रोका गया। ‘अटलजी हैं, खबरदार! कोई गैरजरूरी फुर्ती नहीं’! न्यूजरूम में संपादकों की तगड़ी झाड़ उन रिपोर्टरों के लिए सबक थी जो औपचारिक घोषणा से पूर्व सीमा लांघने की हद तक चले गए थे। इस क्षणभर की ‘ब्रेकिंग’ में करोड़ों दिलों के टूटने की तीखी समवेत गड़गड़ाहट सुनी जा सकती थी।
क्या है अटल बिहारी वाजपेयी होने का अर्थ! और उनके न होने से क्या अंतर पड़ता है! अरसे से निश्चेष्ट अटलजी कुछ भी तो नहीं कर रहे थे! फिर उन्हें लेकर ऐसी संवेदनशीलता… पिछले लोकसभा चुनाव में मतदान कर चुकी और 2019 के आम चुनाव में मतदान के लिए कमर कसती युवा भारत की नई खेप ने शायद पहली बार यह महसूस किया। इस संवेदनशीलता में ही किसी के ‘अटलजी’ होने का अर्थ छिपा है। यदि क्षेत्र, भाषा, कुनबे पर पलता और सामाजिक दरारों को गहरा करने वाला राजनैतिक फलक क्रूरता, कपट और हल्केपन की ऊंची लहरों में मदमत्त होता दिखे तो अटलजी के सदन-संदर्भ दिए जाते हैं। सियासत के समुद्र में राह दिखाने वाला अविचल प्रकाश स्तंभ।
भारत की मिट्टी में जन्म लेने वाले सौभाग्यशाली राजनेताओं में ऐसे विरले ही हैं जो अपनी कला, संस्कृति और साहित्य से निरंतर जुड़े रहकर राजनीति के चक्रव्यूहों के बीच भी अपनी लेखनी को विराम नहीं देते। उदारमना एवं कर्मठ राजनेता के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी की छवि एक कुशल राजनेता, दूरद्रष्टा तथा कालजयी कवि की रही। उनकी अद्भुत वक्तृत्व शैली की धूम पूरे देश में है तो इसमें रंच मात्र अतिशयोक्ति नहीं है। साथ ही वैश्विक मुद्दों पर भारत की कूटनीतिक दृढ़ता को रेखांकित करने वाले पहले भारतीय राजनेता भी अटलजी ही थे। स्वतंत्रता के बाद भारत के इतिहास में शायद ही कोई राजनेता होगा जो इतने लंबे समय तक राजनीति के केन्द्र में सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ कायम है। लेखन कर्म से अपनी जीवन यात्रा शुरू करने वाले अटलजी के जीवन के हर पड़ाव पर संघर्षशीलता एवं उतार-चढ़ाव दिखता है। अटलजी को कुशल वक्ता का गुण एवं काव्य कला अपने पिता पं. कृष्णबिहारी वाजपेयी से विरासत में मिली। उनके पिता ग्वालियर राज्य के विख्यात कवि तथा कुशल वक्ता थे। अटलजी के बाबा भी संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान थे, परन्तु अटलजी की वाणी पर जिस प्रकार साक्षात् सरस्वती विराजती रहीं, वह अध्यवसाय से अर्जित उपलब्धि से इतर ईश्वरप्रदत्त कृपा अनुभव होती है।
क्या थे अटलजी? एक बार किसी पत्रकार ने कौतुकवश पूछ लिया था-अटलजी, ये शब्द आपकी जिह्वा पर आते कैसे हैं? क्या कोई दिव्य प्रेरणा? उत्तर में अटलजी किसी बच्चे की तरह शरमा गए, सकुचा गए और विषय बदलने का इंतजार करने लगे।
क्या थे अटलजी? उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड के निर्माता अटलजी। ऑपरेशन शक्ति (पोकरण-2) परमाणु परीक्षण करवाकर दुनिया में भारत को नए सिरे से प्रतिष्ठा दिलाने वाले अटलजी। चंद्रयान-1 परियोजना की मंजूरी देने वाले अटलजी। देश को जमीन पर, हवा में, तरंगों में, नदियों में, सड़कों में, जुड़ाव और एकजुटता देने वाले अटलजी। राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना शुरू करने वाले अटलजी। ‘सागरमाला परियोजना’ की शुरुआत करने वाले अटलजी। देश को स्वर्ण चतुर्भुज देने वाले अटलजी। उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम गलियारे को साकार करने वाले अटलजी। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना वाले अटलजी। दिल्ली मेट्रो परियोजना लाने वाले अटलजी। डॉ. भूपेन हजारिका सेतु निर्माण कराने वाले अटलजी। जम्मू और बारामूला रेल लिंक और ‘चेनाब ब्रिज’ देने वाले अटलजी। रक्षा खुफिया इकाई, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसी संस्थाओं का सृजन करने वाले अटलजी। सूचना प्रौद्योगिकी में भारत को उत्कर्ष पर ले जाने वाले अटलजी। सर्वशिक्षा अभियान देने वाले अटलजी। प्रवासी भारतीय सम्मान शुरू करने वाले अटलजी। कारगिल युद्ध के समय देश को विजयी नेतृत्व देने वाले अटलजी…कहां तक याद करें।
और उससे भी पहले कितनों को याद है अटलजी का विदेशमंत्रित्व काल? कार्टर की भारत यात्रा कई लोगों को याद होगी। लेकिन मोशे दायन का भारत आना शायद पहली बार इस्रायल के किसी शीर्ष नेता का भारत दौरा था। भारत ईरान का भी मित्र था और इस्रायल का भी। चीनी हेकड़ी तब भी थी, और यह अटलजी ही थे, जो वियतनाम पर चीनी हमले के विरोध में यात्रा अधूरी छोड़ कर लौट आए थे। अटलजी का व्यक्तित्व अत्यंत व्यापक है, परन्तु उनमें विद्यमान कालजयी कवि की चर्चा न करना, उनके व्यक्तित्व के साथ अन्याय होगा। उनकी कविताओं में राष्ट्रप्रेम, जीवन संघर्ष, विश्वशांति एवं राजनेता के रूप में उनके मन के अंदर की उथल-पुथल का बखूबी वर्णन है। जब उन्होंने लिखा
‘खड़े देहली पर हो किसने पौरुष को ललकारा
किसने पापी हाथ बढ़ाकर मां का मुकुट उतारा?’
उनकी एक दूसरी कविता में लंबे संघर्ष से मिली आजादी की सुरक्षा की नसीहत थी—
‘उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जायें, जो खोया उसका ध्यान करें।’
संस्कारित व्यक्ति ऊंचे पद पर पहुंच कर भी अपने सद्गुण कभी नहीं छोड़ता।
अंत्योदय को लागू करने में उन्होंने किसानों को उच्च प्राथमिकता दी। किसानों के कल्याण का मुद्दा उनके दिल का करीब था और उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि क्रेडिट कार्ड एक अमीर आदमी का स्टेटस सिंबल नहीं, बल्कि एक गरीब किसान की मूल आवश्यकता थी। किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड भी मिला। अटल जी के युग उनकी नीतियों के चलते भारत शिखर पर चढ़ता गया। भारत का सकल घरेलू उत्पाद 8 प्रतिशत तक बढ़ गया। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ। उनका दृष्टिकोण सर्वव्यापी था, राय में अंतर हो सकता था लेकिन दृष्टिकोण में सर्वसम्मति थी। अपने लंबे राजनीतिक जीवन में अटलजी ने अधिकांश समय विपक्ष में बिताया। उस समय एक ही पार्टी और एक ही परिवार का दबदबा रहता था। इसके बावजूद वह दृढ़ता से राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे उठाते थे। वह ऐेसे मुद्दे सदन में उठाते थे, जो आमतौर पर उपेक्षित, लेकिन बहुत महत्वपूर्ण होते थे।
अटलजी लोगों से बहुत ही सहज भाव से जुड़ते थे। वर्ष 1977 से 1979 तक वह विदेश मंत्री भी रहे। इस दौरान उन्होंने भारत की विदेश नीति में नया अध्याय लिखा। भारत को ज्यादा से ज्यादा रणनीतिक लाभ मिले, इसलिए उन्होंने कुछ देशों के बजाय पूरे विश्व से तालमेल किया। इसी भावना के साथ वह 1999 में बस से लाहौर भी गए। लोगों को जोड़ने की विशेषता के चलते वह गठबंधन की सफल राजनीति के शिल्पकार बने। अटलजी स्वभाव से बहुत विनम्र, लेकिन चट्टान की तरह दृढ़ भी थे। 11 मई 1998 को भारत आधिकारिक रूप से न्यूक्लियर देश बना था। अटलजी ने इस बात की जैसे ही घोषणा की, देश को कड़े आर्थिक प्रतिबंध और अंतरराष्ट्रीय दबाव झेलना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने 13 मई को दूसरे दौर के परीक्षण का आदेश दे दिया।
भारत के विभाजन से वह व्यथित थे। संपूर्ण भारत के बिना वह भारत की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। अटलजी अपने भाषणों में केवल पाकिस्तान की ही बात नहीं करते थे, बल्कि गिलगित से गारो की बात करते थे। उन्होंने संपूर्ण दुनिया को कुशल राजनीतिज्ञ होने का परिचय दिया। हिंदू समाज की, भारतीयता की छोटी से छोटी चीजों के प्रति उनके मन में प्रेम था। इन सबके प्रति उनके मन में श्रेष्ठ भाव था। उन्होंने लिखा था-
हिन्दू तन मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय।
अपने शब्दों की ही तरह अटलजी भी शाश्वत हैं, वे साक्षात् शब्द थे। कवित्व का शब्द, हुंकार का शब्द, राष्ट्र का शब्द, आशा का शब्द, भारतीयता का शब्द, विश्वास का शब्द, प्रेम का शब्द…। कहते हैं शब्द ब्रह्म है। वह शब्द ही ब्रह्मलीन हो गया उस दिन। लेकिन उस महामानव की अमिट-अटल स्मृति तो यहीं, हम सबके मानस में अंकित है।
(संपादक, पाञ्चजन्य)
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