आगामी 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में मुस्लिम वोटर्स बीजेपी के लिए सिरदर्द बनने जा रहे हैं। इन क्षेत्रों में पिछले कुछ सालों में मुस्लिम आबादी और वोट दोनों में वृद्धि होने से बीजेपी में चिंता देखी जा रही है। उत्तराखंड में मैदानी जिले हरिद्वार, उधमसिंहनगर, देहरादून और नैनीताल में 22 सीटें ऐसी हैं, जहां पिछले पांच सालों में मुस्लिम आबादी और वोटर बढ़ गए हैं। उधमसिंहनगर की जनसंख्या में करीब 38 प्रतिशत आबादी मुस्लिम हो गई है। स्वाभाविक है इसके अनुपात में मुस्लिम वोटर्स भी बढ़े होंगे। उत्तराखंड में कुल 70 विधानसभा सीटें हैं, जिनमे से 22 मैदानी जिलों में हैं। उधमसिंहनगर में इस वक्त 9 सीटे हैं, 2017 में यहां 8 सीटें बीजेपी के पास थीं और एक जसपुर की सीट कांग्रेस के खाते में गयी थी। मोदी फैक्टर, कांग्रेस में बगावत और हिंदुत्व मुद्दे पर बीजेपी को यहां 8 सीटें मिली। 2012 में जिले में दंगे होने की वजह से वोटों का ध्रुवीकरण हुआ था तब भी बीजेपी को 9 में 7 सीटें मिली थीं।
मुस्लिम-जनजाति वोट को एक साथ लाने में जुटी कांग्रेस
इस बार जो ताजा जनसंख्या के आंकड़े सामने आए उसमे जसपुर में मुस्लिम वोट 37 प्रतिशत, काशीपुर में 27 फीसदी, बाजपुर में 21 फीसदी, गदरपुर में 21 प्रतिशत, किच्छा में 27 फीसदी, सितारगंज में 20 प्रतिशत रुद्रपुर में 12 फीसदी, नानकमत्ता में 11 और खटीमा में 6 प्रतिशत मुस्लिम वोट हैं। कांग्रेस यहां मुस्लिम और जनजाति वोटों को एक साथ लाने के लिए कोशिश कर रही है। कांग्रेस ने पार्टी छोड़कर गए अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और बीजेपी में कैबिनेट मंत्री रहे यशपाल आर्य को वापस कांग्रेस में शामिल किया है। उनके बेटे संजीव आर्य जो नैनीताल में बीजेपी के विधायक रहे उन्हें भी कांग्रेस ने अपने यहां वापस लेकर, बीजेपी के जनजाति वोट बैंक में सेंधमारी की है। कांग्रेस यहां किसान आंदोलन में जुड़े सिखों को भी अपने साथ करने के लिए रात दिन मेहनत कर रही है।
उत्तराखंड में कुल 70 विधानसभा सीटें22 मैदानी जिलों में हैं
9 सीटे हैं उधमसिंहनगर
2017 में यहां 8 सीटें बीजेपी के पास
2012 में जिले में दंगे होने की वजह से वोटों का ध्रुवीकरण
बीजेपी को 9 में 7 सीटें मिली थीं।
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मुकाबला त्रिकोणीय होने पर बीजेपी को फायदा
हरिद्वार में 10 विधानसभा सीटों पर करीब 36 फीसदी वोट मुस्लिमों के हैं। पिरान कलियर, खानपुर, झबरेड़ा, लक्सर, मंगलोर और ज्वालापुर सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर्स का दबदबा है। हरिद्वार शहर से लगी ज्वालापुर सीट पर तो 52 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं। इसी तरह देहरादून की तीन और नैनीताल जिले की हल्द्वानी और रामनगर सीटों पर मुस्लिम इस वक्त निर्णायक होने के स्थिति में आ गये हैं। स्वाभाविक है कि बीजेपी ने भी इसका आंकलन किया होगा। यही वजह है बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा को ये जिम्मेदारी दी गयी है कि वो मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा सीटों पर हर बूथ पर 100 मुस्लिम वोट बीजेपी की तरफ लेकर आए, बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी को इसकी जिम्मेदारी दी गयी है और खास तौर पर मुस्लिम महिला वोट बैंक को मोदी सरकार के कामकाज के भरोसे में लेने की योजना पर काम हो रहा है। तीन तलाक मामले की लड़ाई लड़ने वाली काशीपुर की शाहबानो को बीजेपी ने राज्यमंत्री का दर्जा देकर इस कार्ययोजना में लगाया गया है। उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों में चार मैदानी जिलों में हुआ जनसंख्या बदलाव से बीजेपी को दो तरह से ही फायदा मिल सकता है या तो यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो यानि बीजेपी के सामने कांग्रेस का मुकाबला न होकर, आम आदमी पार्टी या फिर बसपा के साथ त्रिकोणीय मुकाबला हो, अभी तक हालात भी यही कह रहे है, किंतु कांग्रेस मुस्लिम और जनजातियों के पास जाकर बीजेपी को वो ही हरा सकते हैं कि बात कह रही है। दूसरा मार्ग बीजेपी के पास हिंदुत्व का रह जाता है, जिसके दम पर वो पिछले बार विधानसभा चुनाव जीती थी।
पिछली बार की तरह दबदबा कायम रखने की कोशिश
जानकारी में ये भी आया है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी इन मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है। ये मैदानी जिले या यहां की विधानसभा सीटें यूपी सीमा से लगती हैे, जो यूपी के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है, इन सीमांत सीटों पर योगी फैक्टर भी काम करेगा और बीजेपी मैदानी जिलों में यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जनसभाएं करवाकर अपने पक्ष में माहौल खड़ा कर सकती है। कुल मिलाकर बीजेपी के आगे चुनौती यूपी से लगी, विधानसभा सीटों पर बढ़ गए मुस्लिम वोटों के रहते हुए अपनी सीटें निकालने की है। बीजेपी के रणनीतिकार इस वक्त इसी को लेकर माथापच्ची कर रहे हैं कि कैसे वो अपना दबदबा पिछली बार के विधानसभा चुनावों की तरह कायम रख सकें।
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