श्री गुरु ग्रंथथ साहिब इस देश के प्राण हैं और इनकी शिक्षाएं तो पंजाब निवासियों के गुणसूत्रों में रची बसी हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि इतना सम्मान होने के बावजूद इनके अपमान की घटनाएं भी पंजाब में ही अधिक होती आई हैं। अक्तूबर 2015 में तो इस तरह की घटनाओं की मानो बाढ़ सी ही आ गई थी। इसके लगभग छह साल बाद सिखों के सर्वोच्च धर्मस्थल श्री हरिमंदिर साहिब व कपूरथला में हुई इस तरह की घटनाओं ने सभी के मन को झकझोर कर रख दिया है। ये घटनाएं किसी मनोरोगियों की करतूत हैं या किसी का षड्यंत्र, यह अभी राज है। लेकिन इन घटनाओं के बाद जिस तरह आरोपियों की तालिबानी शैली में हत्या कर दी जाती है, उससे हर किसी के मन में एक सवाल पैदा हो रहा है कि आरोपियों की हत्या लोगों का आक्रोश है या किसी की पर्दादारी? आखिर कौन है जो नहीं चाहता कि सच्चाई सामने आए? आरोपियों की तत्काल हत्या कर जांच के सबसे महत्वपूर्ण सूत्र माने जाने वाले व्यक्ति को क्यों खत्म कर दिया जाता है? इन घटनाओं के बाद हर तरफ से निष्पक्ष जांच की मांग उठती है, पर जब आरोपी को ही खत्म कर दिया जाए तो इन घटनाओं को लेकर दूध का दूध और पानी का पानी कैसे हो? क्या भीड़ तंत्र द्वारा न्याय हमारे लोकतंंत्र के मुख को मलिन नहीं करता? इस घटना पर लोगों की चुप्पी भी समझ से परे हे।
पंजाब में हाल ही में हुई बेअदबी की दोनों घटनाओं में आरोपियों की हत्या कर दी गई। दो महीने पहले सिंघु बॉर्डर पर कथित किसान आंदोलन के दौरान भी निहंगों ने इसी तरह के आरोप लगा कर वंचित वर्ग के व्यक्ति को काट कर बैरिकेड पर लटका दिया था। आरोपियों की इस तरह की जाने वाली हत्याएं संदेह पैदा करती हैं कि आखिर इनके पीछे का रहस्य क्या है? आखिर सबूत क्यों मिटा दिए जाते हैं? पूरी बात जानने के लिए पंजाब की सामाजिक परिस्थितियों के बारे जानना आवश्यक है। राज्य में होने वाली बेअदबी की घटनाएं केवल राजनीति को ही प्रभावित नहीं करतीं, बल्कि राज्य में आतंकवाद के दौर से ही सक्रिय अलगाववादी तत्व इसे अवसर के रूप में लेते हैं। इन समाज विरोधी तत्वों द्वारा इन्हीं घटनाओं को आधार बना कर युवाओं के कोमल दिल-दिमाग में साम्प्रदायिक विष भरा जाता है। उन्हें देश के खिलाफ उकसाया जाता है। पंजाब देश का वह सीमान्त राज्य है जो देश विभाजन के समय सर्वाधिक प्रभावित हुआ। बंटवारे से पहले देखने में आता था कि समाज को तोड़ने के लिए पाकिस्तान की मांग करने वाले मुस्लिम लीग के लोग इसी तरह की शरारतें किया करते थे। लीग के लोग सूअर मार कर मस्जिदों के बाहर फिंकवा देते और इसकी आड़ में खूब साम्प्रदायिक विषवमन होता जो अन्तत: न केवल देश के विभाजन का, बल्कि इतिहास में हुए सबसे बड़े नरसंहारों में एक का कारण बना।
बेअदबी की घटनाओं से लोगों के मन में संदेह पैदा होने लगा है कि पंजाब की अलगाववादी शक्तियां कहीं मुस्लिम लीग का खेल तो नहीं खेल रहीं ? समाज में दरार पैदा करने के लिए ये घटनाएं अलगाववादियों की ही तो करतूत नहीं हैं? कहीं इसीलिए तो बेअदबी के आरोपियों की हत्याएं नहीं हो रहीं कि सच्चाई सामने न आ पाए? कल्पना करें कि अगर मुम्बई पर हुए आतंकी हमले के अन्य आरोपियों की तरह कसाब को भी मार दिया जाता तो क्या पाकिस्तान की सच्चाई से पर्दा हट पाता? क्या इसकी अलग-अलग व्याख्याएं व मनमाफिक विश्लेषण नहीं होते?
दूसरी ओर गुस्साई हुई जुनूनी भीड़ से जिम्मेवार व्यवहार की क्या अपेक्षा की जाए, जब सवैधानिक पदों पर बैठे लोग ही तालिबानी मानसिकता की पीठ थपथपाना शुरू कर दें। श्री हरिमन्दिर साहिब व कपूरथला में हुई बेअदबी की घटनाओं के बाद कांग्रेस के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष व पार्टी के मुंहफट नवरत्नों में सर्वश्रेष्ठ नवजोत सिंह सिद्धू ने बेअदबी के आरोपियों को सरेआम चौक पर फांसी देने की वकालत की है। एक समारोह में उन्होंने यह बात कही। यही नहीं, राज्य के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी तो गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार में सिद्धू से भी आगे निकल गए हैं। उन्होंने तो बिना जांच के ही घोषित कर दिया कि इन घटनाओं के पीछे केंद्रीय एजेंसियों का हाथ है। ऐसा बोलते समय लगा कि मुख्यमंत्री या तो मामले की गम्भीरता से अनभिज्ञ थे या अपने शब्दों के महत्त्व को नहीं पहचानते। उन्हें मालूम होना चाहिए कि वे किसी गली-मोहल्ला स्तर के नेता नहीं, बल्कि संवैधानिक पद पर बैठे राज्य के मुखिया हैं। उन्हें मालूम होना चाहिए कि उनकी यह गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी राज्य का साम्प्रदायिक वातावरण बिगाड़ सकती है और ऐसा करके वे देशविरोधी शक्तियों के हाथों में ही खेलते दिखाई दे रहे हैं।
देश में कानून का शासन है। किसी को अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वह कानून अपने हाथों में ले। धार्मिक आस्था आहत होने से आक्रोश पैदा होना स्वभाविक है, परन्तु जोश में होश का होना जरूरी है। कानून की दृष्टि में किसी धर्म या धर्मग्रंथथ का अपमान करना और इसके आरोपियों की हत्या करना दोनो संगीन अपराध है। आरोपियों की हत्या करने वालों को भी समझना चाहिए कि अपनी हरकतों से वे आखिर किसकी मदद कर रहे हैं?
बता दें कि पंजाब में बीते 24 घंटे के अंदर गुरुद्वारे में बेअदबी को लेकर दो लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। पहली घटना 18 दिसंबर को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में घटित हुई, जबकि दूसरी घटना कपूरथला के निजामपुर गांव स्थित एक गुरुद्वारा में 19 दिसंबर की है।
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