‘‘जब मैं एक कार खरीदता हूं तो उसे ड्राइवर के रूप में चलाने के लिए खरीदता हूं न कि मैकेनिक के रूप में।’’ 1986 में स्व. एसएस गोयनका के श्रीमुख से निकला यह प्रसिद्ध वाक्य भारत के सर्वाधिक सफल सॉफ्टवेयर उत्पादों में से एक के जन्म का कारण बना। वे अपनी नई-नई सॉफ्टवेयर कंपनी प्यूट्रॉनिक्स के लिए बिजनेस सॉफ्टवेयर ढूंढ रहे थे। कई देशी-विदेशी उत्पाद आजमाने के बाद उन्हें निराशा हाथ लगी थी। हर सॉफ्टवेयर यह अपेक्षा करता था कि वे अपने कारोबार के तौर-तरीके उसके हिसाब से बदल लें। हर सॉफ्टवेयर में यह या वह कमी थी और कई महीनों तक जरूरी संशोधनों के बाद ही वह संतोषजनक ढंग से इस्तेमाल करने लायक बन सकता था।
निराश पिता ने अपने सॉफ्टवेयर इंजीनियर पुत्र भारत गोयनका से कहा कि इनमें से कोई भी मेरे मतलब का नहीं है। क्या तुम मेरे लायक बिजनेस सॉफ्टवेयर (फाइनेंस, अकाउंटिंग आदि) विकसित कर सकते हो? भारत गोयनका ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और छह महीने में ऐसा सॉफ्टवेयर बना दिया जो उनके पिता की अपेक्षाओं पर खरा उतरता था। दिखने में सरल, प्रयोग में आसान और क्षमताओं के लिहाज से उपयोगी। इतना अच्छा कि जो सॉफ्टवेयर प्यूट्रॉनिक्स के कारोबार में मदद भर करने वाला था, वही कंपनी का मूल कारोबार बन गया। गोयनका पिता-पुत्र ने बाकी सब छोड़-छाड़ सारा ध्यान इसी उत्पाद पर केंद्रित कर दिया और देखते-देखते टैली (ळं’’८) नाम का यह सॉफ्टवेयर हर छोटे-बड़े व्यापार-उद्योग की जरूरत बन गया। वहीं कंपनी का नाम बदलकर टैली सॉल्यूशन्स हो गया।
भारत के हर सॉफ्टवेयर उत्पाद के नवाचार और निर्माण की ऐसी ही कोई न कोई कहानी है। दिलचस्प, लेकिन संघर्ष और चुनौती से भरी हुई। टैली, क्विक हील, सम्मिट, ईएक्स, फ्लैक्सक्यूब, टैलिस्मा, इनचार्ज, स्लाइडशेयर, जोहो जैसे ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों ने बाजार की प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद कामयाब उत्पाद विकसित किए और उन्हें विश्व बाजार में स्थापित किया। यूं तो माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम, गूगल, एचपी, सन, ओरेकल, एडोबी और क्वार्क जैसी शीर्ष कंपनियों के सफलतम उत्पादों में भारतीय इंजीनियरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, लेकिन खुद भारत में भी दर्जनों दमदार सॉफ्टवेयर तैयार किए जाते रहे हैं।
अमूमन सूचना प्रौद्योगिकी में भारत के ‘महाशक्ति’ के दर्जे पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। सबसे बड़ी आपत्ति इस पर उठाई जाती है कि भारत ने न तो विंडोज तैयार किया है और न ही मैकिन्टोश। न ही कोई जबरदस्त डेटाबेस और न ही कोई बड़ा आॅफिस एप्लीकेशन। आलोचकों का कहना है कि टीसीएस, विप्रो और इन्फोसिस जैसी दिग्गज भारतीय कंपनियों ने खुद कोई क्रांतिकारी उत्पाद बनाने के बजाय दूसरों के बनाए उत्पादों पर अमल और इस्तेमाल में ज्यादा महारत हासिल की है। आरोप लगते हैं कि हमारा कौशल महज बहुराष्ट्रीय कंपनियों को स्टाफ मुहैया कराने, उनके सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन्स का कस्टमाइजेशन करने, उनके लिए दूसरों को प्रशिक्षित करने, उनके छोटे-छोटे हिस्से तैयार करने और उनका एडमिनिस्ट्रेशन करने में निहित है। भारतीय आईटी कंपनियां सचमुच ये सब करती रही हैं। लेकिन भारत में बने विश्वस्तरीय सॉफ्टवेयर उत्पादों की भी कमी नहीं है। हां, शायद वे उतने नहीं हैं जितने हो सकते थे और उसके लिए हमारी आर्थिक, सामाजिक परिस्थितियां, अवसंरचना संबंधी सीमाएं, भौगोलिक स्थिति जैसे कई कारण जिम्मेदार हैं।
सूचना प्रौद्योगिकी में कामयाबी के लिए सिर्फ कंप्यूटर के आॅपरेटिंग सिस्टम या आम लोगों के इस्तेमाल में आने वाले सॉफ्टवेयर बनाना जरूरी नहीं है। यह एक विशाल क्षेत्र है, जो अनेक दिशाओं में अवसर उपलब्ध कराता है जैसे- आईटी सर्विसेज, आउटसोर्सिंग, परीक्षण, प्रशिक्षण, इम्प्लीमेन्टेशन (सॉफ्टवेयरों को सफलतापूर्वक स्थापित करना), आईटी प्रशासन, डिजाइन, इंटरनेट इनेबल्ड सर्विसेज, क्लाउड आधारित विकास और सेवाएं, नेटवर्क प्रबंधन, कंप्यूटर सुरक्षा, आॅडिट और न जाने क्या-क्या। सॉफ्टवेयर निर्माण की हर बड़ी शक्ति आईटी सुपरपावर हो, यह आवश्यक नहीं और आईटी सर्विसेज में अरबों डॉलर कमाने वाला सिर्फ इसलिए आईटी का छोटा खिलाड़ी नहीं माना जा सकता, क्योंकि उसकी वरीयता सॉफ्टवेयर निर्माण नहीं बल्कि आईटी का ही कोई दूसरा, अधिक लाभदायक क्षेत्र है। भारतीय कंपनियों ने सेवाओं के क्षेत्र में उभरते अवसरों का लाभ उठाकर देश को वैश्विक आईटी बाजार में शीर्ष पर पहुंचाया है।
लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं कि देश में सॉफ्टवेयर निर्माण के क्षेत्र में प्रतिभाओं की कमी है। बेहद साधारण शुरुआत करने वाले भारतीय उद्यमियों ने बाजार की विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने संकल्प और प्रतिभा के बल पर समय-समय पर विलक्षण सॉफ्टवेयर उत्पाद तैयार किए हैं। अगले कुछ अंकों में हम इन पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
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