13 दिसंबर, 2021… सदियों की थकन, टूटन को झटककर काशी तैयार थी।
काशी विश्वनाथ मंदिर के नवनिर्मित गलियारे का लोकार्पण होने वाला था। उत्साह की, उल्लास और स्वाभिमान की संकल्प यात्रा …. हिन्दू संस्कृति के गर्वीले उद्घोष के साथ चलने को तैयार थी काशी।
उधर, एक दिन पहले, राजस्थान में महंगाई, कानून-व्यवस्था जैसे विभिन्न मुद्दे होने के बाद भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी इसी हिंदुत्व पर हमलावर थे। हिंदू और हिंदुत्व की फांके गढ़ रहे थे, हिंदू और हिंदुत्व को एक-दूसरे के विपरीत बता रहे थे। हिंदुओं को लांछित करने के लिए हिंदुत्व को ही हथियार बना रहे थे। एक ही दिन बाद काशी ने अंगड़ाई ली और पता चला कि हिंदुत्व को पोसने वाले क्या हैं और हिंदुत्व क्या है, उसकी प्रखरता कैसी है?
हिंदुत्व हो या सांस्कृतिक, राष्ट्रीय महत्व का कोई अन्य विषय, यह देखना होगा कि यदि राहुल कोई बात कह रहे हैं, तो उसे कितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
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जो परिवार पति-पत्नी, मां-बेटे, भाई-बहन के स्नेहिल सम्बन्धों को और मजबूत बनाने वाले त्योहारों से लापता दिखता है
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जिन्हें यह नहीं पता कि जनेऊ कपड़ों के ऊपर पहना जाता है या नीचे। दाएं से पहना जाता है या बाएं से
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जो अपना गोत्र दूसरों से पूछकर बताते हों, तिसपर भी वह गोत्र कहीं पाया न जाता हो,
जो हिंदुत्व की आधारभूत चीजों को ही नहीं जानते क्या वे हिंदू और हिंदुत्व पर टिप्पणी करने योग्य हैं?
ध्यान दीजिए, हिंदुत्व से पहले राहुल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर अपनी अल्प समझ के साथ प्रहार करते रहे हैं। 7 जुलाई, 2014 को राहुल ने भिवंडी में एक सभा में महात्मा गांधी की हत्या में संघ का हाथ बताया। इस मामले में जब उन्हें न्यायालय में चुनौती मिली तो उनके पास कोई तथ्य नहीं था। और छोड़िए, उनके वकीलों की बड़ी फौज में किसी को कांग्रेसी ‘युवराज’ के विचारों की पुष्टि करने वाला कोई तथ्य नहीं मिला।
राहुल के रूप में कांग्रेस के पास झूठ बुलवाने के लिए एक मोहरा, मर्यादा लांघने वाला एक चेहरा और इस दुस्साहस को निर्भीकता का नाम देने वाला मीडिया तंत्र हो सकता है, परंतु सत्य यह है कि इस देश की आधारभूत सोच से दूर कांग्रेस ‘हिन्दूफोबिया’ से ग्रस्त हो गई है।
हिंदुत्व पर प्रहार का सिलसिला
कांग्रेस के हिंदूद्वेषी होने की बात आरोप नहीं, बल्कि तथ्य आधारित है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदुत्व पर प्रहार करने का सिलसिला हाल-फिलहाल में निरंतर चल रहा है।
न्यायालय में प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को नकारने की बात हो, हिंदू ‘आतंकवाद’ की अवधारणा को फैलाने की बात हो, या अब हिंदू और हिंदुत्व को अलग बताने की बात हो, अंतरराष्ट्रीय पहचान और विदेशी मीडिया से घनिष्ठ संबंध रखने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्रियों का एक पूरा तंत्र हिंदुत्व पर हमलावर बने रहने के लिए मानो पार्टी द्वारा तैनात किया गया है।
ध्यान दीजिएगा, 2018 में प्रकाशित अपनी पिछली पुस्तक ‘व्हाई आई एम ए हिन्दू’ के माध्यम से वरिष्ठ कांग्रेस नेता (पूर्व विदेश राज्यमंत्री) शशि थरूर ने हिंदू धर्म और हिंदुत्व में विभेद पैदा करने वाली राजनीति की शुरुआत की थी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने अपनी नई पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या’ के ‘द सैफ्रन स्काई’ अध्याय में हिंदुत्व की तुलना कुख्यात आतंकवादी इस्लामी संगठन आईएसआईएस और बोको हराम से की है। खुर्शीद ने लिखा है, ‘‘हिंदुत्व का मौजूदा स्वरूप उसे साधु-संतों के सनातन और प्राचीन हिंदू धर्म से अलग कर रहा है।’’ स्पष्ट है कि खुर्शीद हिंदुत्व को छैनी की तरह प्रयोग कर हिंदू धर्म में ही दरार डालने की कोशिश कर रहे थे और इस धूर्तता के पकड़े जाने पर आएं-बाएं करने लगे।
हिंदुत्व में फांस पैदा करने की चेष्टा कांग्रेस के ताबूत की आखिरी कील साबित हो सकती है।
खुर्शीद की इस बात के एक दिन बाद राहुल गांधी ने भी तब हिंदू धर्म और हिंदुत्व में अंतर बताते हुए बयान दिया था। उन्होंने भी कहा था कि हिंदू और हिंदुत्व में फर्क है, यदि फर्क नहीं होता तो दूसरे नाम की आवश्यकता नहीं होती।
शशि थरूर ने खुर्शीद की पुस्तक के विमोचन के एक हफ्ते बाद अपनी पुस्तक ‘प्राइड, प्रिजुडिस एंड पंडिटरी : द असेंशियल शशि थरूर’ के विमोचन पर हिंदू धर्म और हिंदुत्व के बीच अंतर बताया।
यह अकारण नहीं है कि हिंदू धर्म और हिंदुत्व को अलग-अलग बताने की इस मुहिम में राहुल से पहले पी. चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, पवन खेड़ा, मणिशंकर अय्यर (पूर्व केन्द्रीय मंत्री) जैसे तमाम नेता एक-एक कर कूदे हैं।
हिंदू-हिंदुत्व में विभाजन की मंशा
अब जब इस मुद्दे के राजनैतिक सूत्रधार खुलकर ताल ठोक रहे हैं तो उनकी मंशा क्या है, यानी कांग्रेस हिंदू धर्म और हिंदुत्व के बीच विभाजन की हिमायती क्यों है, इसे जानना चाहिए।
वस्तुत: अंग्रेजों की नीति थी-बांटो और राज करो। स्वतंत्रता के बाद भी कांग्रेस एक परिवार के राज को पोसते हुए औपनिवेशिक दास मानसिकता की पालकी ढोती रही है, बांटो और राज करो की वही सोच, राजनीति में -समाज में अमल में लाती रही है।
हिंदू समाज में फांक पैदा करना, आस्थाओं पर आघात करना, यह सब आक्रांताओं के आजमाए हुए पैंतरे हैं जिनका प्रयोग कांग्रेस का एक वर्ग भारतीय समाज पर अब भी कर रहा है।
सत्ता प्राप्त करने और राज करने के लिए विभाजनकारी बिंदुओं की राजनीति करना सत्ता के लालची लोगों का हथियार होता है। विभाजन उस शक्ति या समीकरण का किया जाता है जो सत्ता में प्रभावी है। उस शक्ति को तोड़ने से ताना-बाना टूटता है और निश्चित ही उसके सामाजिक और दीर्घकालिक दुष्प्रभाव भी होते हैं। यही चेष्टा लोकतंत्र के आंगन से बुहारी जा रही कांग्रेस भी कर रही है।
कांग्रेस को आत्ममंथन की जरूरत
कांग्रेस को समझना चाहिए कि इस सबने इस देश से उसका आधार बुरी तरह से उखाड़ दिया है। राहुल बोलते हैं तो जनता उससे चौगुनी नहीं सौ गुनी प्रतिक्रिया देती है। बाल गंगाधर तिलक, महामना मालवीय और के.एम. मुंशी भी तो इसी पार्टी के थे। जिस पार्टी के नेता अपने नाम के आगे सगर्व 'पंडित' लगाते थे, जिस पार्टी का निशान गाय और बछड़ा हुआ करता था, वह पार्टी हिंदुत्व पर कीचड़ उछालने, सड़कों पर बीफ पार्टी करने की दुर्गति तक
आई कैसे?
कांग्रेस को हिंदुत्व पर आक्षेप करने की बजाय आत्ममंथन करना चाहिए। दल में पलती हिन्दूफोबिया की सड़ांध और परिवारवाद के दलदल का इलाज कांग्रेस के लिए जरूरी है। देश के सबसे पुराने राजनैतिक दल को यह सोचना पड़ेगा कि यह किसी परिवार की पार्टी नहीं है, यह केवल औपनिवेशिक मानसिकता को पोसने वालों की पिट्ठू पार्टी नहीं है।
इस मंथन के वक्त इतिहास स्मरण रखना होगा कि कांग्रेस की स्थापना जरूर अंग्रेजों ने की थी, परंतु उसमें भारतीय आग्रह को जब पुष्ट किया गया, तब पार्टी को आधार मिला था, वरना यह अपने अधिवेशनों में रानी विक्टोरिया की जय बोलने-बुलवाने वाले अंग्रेजों के एजेंटों की पार्टी थी।
तय है कि यदि भारतीय आग्रह नहीं होगा तो कांग्रेस (या कोई भी अन्य दल) मुंह की खाएगा। और यह कहने में कोई हिचक भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि देश में रह कर देश की संस्कृति और संस्कार के विरुद्ध बात करना- कांग्रेस के लिए घातक सिद्ध होने वाला है। हिंदुत्व में फांस पैदा करने की चेष्टा कांग्रेस के ताबूत की आखिरी कील साबित हो सकती है।
@hiteshshankar
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