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वृहत्तर भारत का स्याम देश अर्थात् थाईलैंड

by प्रो. भगवती प्रकाश
Dec 17, 2021, 11:27 am IST
in भारत, दिल्ली
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थाईलैंड यानी पहले के स्याम देश में 95 प्रतिशत जनसंख्या बौद्ध धर्मावलंबियों की है परंतु रीति-रिवाज आज भी हिंदू धर्म जैसे ही हैं। राजा को संबोधन से लेकर राजचचिह्न तक हिंदू प्रतीकों से लिये गए हैं। थाई भाषा में 40 प्रतिशत शब्द भी संस्कृत से लिये गए हैं। वहां के बौद्ध विहारों में भी हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं

वृहत्तर भारत का अंग रहे ‘स्याम देश’ अर्थात् थाईलैंड की सीमाएं 1937 तक भारत का ही प्रदेश रहे ब्रह्मदेश अर्थात् बर्मा या म्यांमार से लगती हैं। थाईलैंड का अधिकृत नाम भी 11 मई, 1948 तक पौराणिक सन्दर्भों से ‘स्याम देश’ रहा है। थाईलैंड के लोग अपने राजा को भगवान राम का वंशज मान, उसे राम ही सम्बोधित करते हैं और राजपरिवार ‘‘अयुथ्या’’ अर्थात् अयोध्या नामक नगर में ही रहता है जो थाईलैंड की वर्तमान राजधानी बैंकाक से 50 किमी दूर है। थाईलैंड की 95 प्रतिशत जनसंख्या अब थेरवाद बौद्ध मतावलम्बी है पर थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है, जिसे वहां रामकिएन अर्थात् रामकीर्ति कहा जाता है और वह वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। उसमें दशरथ को तोसरोत एवं माता सीता को सौदा लिखा गया है।

इतिहास
थाईलैंड अलग देश बनने के पूर्व हिन्दू-बौद्ध ‘खमेर’ साम्राज्य का भाग रहा है। थाई, मलय व खमेर साम्राज्यों के बाद 1238 में सुखोभोई साम्राज्य की स्थापना हुई। सुखोठाई या सुखोथाई अर्थात सुखदायी या सुखोदया राजशाही की स्थापना के पूर्व यह कम्बुज अर्थात् कम्बोडियाई खमेर राजशाही का राज्य रहा है। सुखोदायी साम्राज्य द्वारा 14वीं सदी में जो भव्य विष्णु मन्दिर (चित्र 1) व 26 अन्य मन्दिर बनाए गए, उनके भव्य पुरावशेष सुखोथाई ऐतिहासिक पार्क में स्थित हैं। सुखोथाई का अर्थ है सुखों का सुप्रभात या ‘खुशी की सुबह’। प्राचीन सुखोथाई साम्राज्य के पुरावशेष 70 वर्ग किमी में प्राचीन वैदिक दुर्ग के रूप में हैं। थाईलैंड 24 जून, 1932 को एक संवैधानिक राजशाही में रूपान्तरित हुआ और 24 अगस्त, 2007 को पुन: एक नवीन संविधान द्वारा संचालित राष्ट्र के रूप में है। आज के थाईलैंड के भूक्षेत्र में मानव सभ्यता का 10,000 वर्षोें का इतिहास है। सुखोदया के महाभारत काल एवं वेदोत्तर काल में भारत के लिए प्रवेश स्थल माने जाने से इसे सुखोदया नगरी के रूप में भी सम्बोधित किए जाने की जनश्रुति है।

इसके पूर्व सुखोदया खमेर साम्राज्य की चौकी थी। उसके एक सदी बाद ही अयुथ्या राज्य ने अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर ली। इसके बाद 1782 में बैंकाक में चक्री राजवंश की स्थापना हुई। चक्री राजवंश निम्बार्काचार्य का अनुयायी था। निम्बार्काचार्य भगवान सुदर्शन चक्र के अवतार माने गए हैं। चक्री वंश के राजा कुश के वंशज हैं। थाइलैण्ड के वर्तमान राजा वजीरा लेगिंकोर्न को ‘राम एक्स’ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।

संस्कृति
संपूर्ण थाईलैंड में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू देवी-देवताओं के प्राचीन मन्दिर व प्रतीक हैं। वहां का अधिकारिक राजचिन्ह ही भगवान विष्णु का वाहक व अजेय शक्ति गरुड़ है (चित्र 2, 3)। प्राचीन राजधानी ‘अयुथ्या’ भारत स्थित, अयोध्या की प्रतिकृति रही है। यही नहीं, थाईलैंड के बौद्ध मन्दिरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्तियां व चित्र मिल जाते हैं। थाईलैंड में सनातन वैदिक-पौराणिक एवं बौद्ध मत का सुन्दर ऐक्य है। ईस्वीं 488 से थेखाय बौद्धमत के प्रसार के पूर्व सर्वत्र फैले सनातन वैदिक व पौराणिक उपासना मतों का सघन प्रवाह आज भी यहां रचा-बसा है। यहां के सनातन वैदिक हिन्दू मतावलम्बियों और बौद्ध मतावलम्बियों ने मिल कर बैंकाक स्थित शिव मन्दिर, विष्णु मन्दिर, दुर्गा मन्दिर आदि का निर्माण करवाया है। थाईलैंड में बैंकाक के सन् 2006 में नए बने सुवर्णभूमि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पौराणिक समुद्र्र मन्थन की अत्यन्त सुन्दर, मनोरम व सुललित प्रस्तुति की गई है (चित्र 5)। हवाई अड्डे पर भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की मूर्ति भी बनाई गई है जो थाईलैंड का राजचिन्ह है (चित्र 6)। भारत के अशोक चक्र की तरह थाइलैण्ड में गरुड़ का चिन्ह होता है।
 

लगभग 7 करोड़ जनसंख्या वाले थाईलैंड में 95 प्रतिशत लोग बौद्ध हैं। सनातन हिन्दू मतावलम्बी मात्र 0.03 प्रतिशत हैं। तथापि थाई बौद्ध समाज में उनकी प्राचीन परम्पराएं, तीर्थ स्थल, पूजा-उपासना, देवी-देवता, आस्थाएं व जनजीवन उनके हिन्दू अतीत से प्रभावित व अनुप्राणित हैं।

पर्वों की दृष्टि से यहां मकर संक्रान्ति, बैसाखी, होली, दीपावली, बुद्ध पूर्णिमा आदि भारत की तरह ही मनाए जाते हैं। बैंकाक के एक प्राचीन मन्दिर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, दुर्गा माता आदि देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। वहां के संग्रहालय में अनेक पुरातन मूर्तियां व उनके पुरावशेष सुरक्षित हैं। भगवान विष्णु की प्रतिमाओं के प्रति लोगों में अपार श्रद्धा है। भगवान बुद्ध भी विष्णु के नौवें अवतार माने जाते हैं। चौदहवीं सदी तक यहां सभी सनातन-वैदिक हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा होती थी। यहां खुदाई में उन सभी देवी-देवताओं की प्रतिमाएं मिलती रही हैं, जो भारत में प्रमुखता से पूजे जाते हैं। वहां बौद्ध मन्दिरों में भी ब्रह्मा, गणेश, शिव एवं नन्दी की मूर्तियां हैं जिनकी वहां श्रद्धा के साथ विधिपूर्वक पूजा की जाती है। फाईसुवन में खुदाई में भगवान राम की मूर्ति मिली है। वहां के राष्ट्रीय संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर धनुर्धारी श्रीराम और गणेश जी की विशाल प्रतिमा है। कला विभाग के द्वार पर विश्वकर्मा की मूर्ति प्रतिष्ठापित है। कुछ शासकीय विभागों के चिन्ह भी विघ्नहर्ता गणेश जी हैं।

थाई भाषा में 40 प्रतिशत शब्द संस्कृत के हैं। पालि व प्राकृत के शब्द भी बहुत हैं। थाईलैंड का राजधर्म बौद्धमत हैं। यहां के 95 प्रतिशत निवासी बौद्ध मतावलम्बी हैं। थाईलैंड के बौद्ध मन्दिरों में नारायण शिव, विनायक आदि की प्रतिमाएं भी हैं। नर्खान पथोम नगर के राजोद्यान में 12 फुट की विशालकाय गणेश प्रतिमा है (चित्र 7)। यहां आने वाले अधिकांश लोग उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। अयुथ्या (चित्र 8) के क्षेत्र में ही 400 से अधिक हिन्दू मन्दिरों के अवशेष हैं। ब्रह्मा को समर्पित इरावन श्राइन में ब्रह्मा (चित्र 9) की मूर्ति के सम्मुख लोग बड़ी संख्या में गम्भीर संकट के निवारणार्थ आराधना करते हैं।

इस प्रकार लगभग 7 करोड़ जनसंख्या वाले थाईलैंड में 95 प्रतिशत लोग बौद्ध हैं। सनातन हिन्दू मतावलम्बी मात्र 0.03 प्रतिशत हैं। तथापि थाई बौद्ध समाज में उनकी प्राचीन परम्पराएं, तीर्थ स्थल, पूजा-उपासना, देवी-देवता, आस्थाएं व जनजीवन उनके हिन्दू अतीत से प्रभावित व अनुप्राणित हैं।
(लेखक गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कुलपति रहे हैं)

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