महान क्रांतिकारी राजेंद्र लाहिड़ी का आखिरी संदेश, जब जेलर से कहा था - ये मेरे जीवन का सर्वाधिक गौरवशाली क्षण
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महान क्रांतिकारी राजेंद्र लाहिड़ी का आखिरी संदेश, जब जेलर से कहा था – ये मेरे जीवन का सर्वाधिक गौरवशाली क्षण

by WEB DESK
Dec 17, 2021, 08:06 am IST
in भारत, दिल्ली
काकोरी कांड, महान क्रांतिकारी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी

काकोरी कांड, महान क्रांतिकारी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी

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'जेलर साहब, मैं हिंदू हूं और पुनर्जन्म में मेरी अटूट आस्था है, इसलिए अगले जन्म में मैं स्वस्थ शरीर के साथ ही पैदा होना चाहता हूं ताकि अधूरे कार्यों को पूरा कर देश को स्वतंत्र करा सकूं।

महान क्रांतिकारी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को काकोरी एक्शन में संलिप्तता का दोषी करार देते हुए ब्रितानी हुकूमत ने निर्धारित तारीख से भी दो दिन पहले 17 दिसम्बर 1927 को गोंडा के जिला कारागार में फांसी दे दी थी। बंगाल (अब बांग्लादेश) के पबना जिले के मड़यां (मोहनपुर) गांव में 29 जून 1901 को जन्मे राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने देश की स्वतंत्रता के लिए महज 26 साल की उम्र में फांसी का फंदा चूम लिया। उनका आखिरी संदेश था- 'मैं मर नहीं रहा हूं, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं।'
 

  • 17 दिसम्बर 1927 को गोंडा के जिला कारागार में फांसी दे दी
  • 26 साल की उम्र में फांसी का फंदा चूम लिया
  • 9 साल की उम्र में वाराणसी में अपने मामा के घर आ गए जहां उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई
  • 'मैं मर नहीं रहा हूं, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं।'

इस युवा क्रांतिकारी ने कितनी निर्भीकता के साथ देश के लिए अपने प्राण की आहुति दी, उसकी एक और बानगी। 17 दिसम्बर को उन्हें फांसी दी जानी थी। फांसी की तमाम तैयारियां पूरी कर ली गयी, लेकिन उस सुबह भी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को बैरक में व्यायाम करते देख जेलर ने हैरानी से पूछा कि जब कुछ घंटे में प्राण जाने वाले हो तो इंसान के लिए व्यायाम का क्या मतलब रह जाता है।
 

काकोरी कांड में राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को एक साथ फांसी की सजा सुनायी गयी थी।

लाहिड़ी ने कहा कि 'जेलर साहब, मैं हिंदू हूं और पुनर्जन्म में मेरी अटूट आस्था है, इसलिए अगले जन्म में मैं स्वस्थ शरीर के साथ ही पैदा होना चाहता हूं ताकि अधूरे कार्यों को पूरा कर देश को स्वतंत्र करा सकूं। इसलिए मैं रोज सुबह व्यायाम करता हूं। आज मेरे जीवन का सर्वाधिक गौरवशाली दिन है तो यह क्रम मैं कैसे तोड़ सकता हूं।' ये घटनाएं गोंडा जिला जेल के फांसी गृह में लाहिड़ी जीवनवृत्त शिलापट्ट पर अंकित हैं।

देश की आजादी के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा उन्हें अपने पिता और चाचा से विरासत में मिला था। वे महज 9 साल की उम्र में वाराणसी में अपने मामा के घर आ गए जहां उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। जिस समय उन्हें काकोरी कांड में अभियुक्त बनाया गया, वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एमए प्रथम वर्ष के छात्र थे। काकोरी कांड में राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को एक साथ फांसी की सजा सुनायी गयी थी।

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