सन् 2004 में आईटी दिग्गज बिल गेट्स के एक बयान ने सबका ध्यान खींचा था। उन्होंने कहा था कि पासवर्ड के दिन लद गए हैं और वह अब आपकी सूचनाओं और पहचान को सुरक्षित रखने के योग्य नहीं है। तब उनकी बात पर यकीन नहीं हुआ था लेकिन आज उनकी बात सोलह आने सही साबित हो रही है। आईटी की दुनिया पासवर्ड से आगे बढ़ चली है।
1960 में पहली बार कंप्यूटर पर पासवर्ड का इस्तेमाल शुरू होने के बाद वाकई आज हम बहुत आगे बढ़ आए हैं। असल में पिछले दस साल में यूजर आथेन्टिकेशन के मामले में क्रांतिकारी तरक्की हुई है। आपने शायद नोट न किया हो लेकिन यह बदलाव आप तक पहुंच चुका है।
अपने मोबाइल फोन को आन करने के लिए क्या-क्या कर सकते हैं आप? पासवर्ड डालना, चार या छह अंकों का पिन डालना, नौ बिंदुओं के बीच स्वाइप करना…? अगर आपका स्मार्टफोन उन्नत किस्म का है तो आप फिंगरप्रिंट से भी खोलने लगे हैं और कुछ स्मार्टफोन आपका चेहरा पहचानकर खुद ही स्क्रीन खोल देते हैं। देखते-देखते कितने विकल्प आपके सामने आ चुके हैं। पासवर्ड उनमें से महज एक विकल्प है।
हालांकि यह बात हर जगह लागू नहीं होती। वेबसाइटों पर आज भी पासवर्ड डालना पड़ता है। यह जानते हुए भी कि दुनिया में कंप्यूटर हैकिंग के 81 प्रतिशत मामले पासवर्ड चोरी होने या भांप लिये जाने से होते हैं। वेबसाइटों के पास इसका कोई असरदार विकल्प तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आपके कंप्यूटर या स्मार्टफोन में कुछ खास किस्म की सुविधाएं न हों, जैसे— फिंगर प्रिंट स्कैनर। लेकिन इस समस्या का चौतरफा समाधान ढूंढ़ा जाना जरूरी है क्योंकि एक अनुमान कहता है कि अगले साल तक हर कंप्यूटर-स्मार्टफोन-इंटरनेट यूजर के पास औसतन 200 पासवर्ड होंगे। बदलाव जारी है। माइक्रोसॉफ़्ट विंडोज 11 की मिसाल लें।
इस आपरेटिंग सिस्टम के उन्नत संस्करण में लॉग आन करने के कई तरीके मौजूद हैं। माइक्रोसॉफ्ट के उत्पाद पासवर्ड मुक्त व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं। अगर आपके पीसी में अच्छा कैमरा है तो विंडोज हैलो नामक तकनीक को सक्रिय करके आप महज अपने चेहरे से ही लॉग आन कर सकते हैं। फिंगरप्रिंट का विकल्प भी है। अगर ये दोनों संभव न हों तो आप अपना माइक्रोसॉफ्ट पासवर्ड डाल सकते हैं। यह पासवर्ड माइक्रोसॉफ्ट के हर उत्पाद पर काम करेगा। इसे सिंगल साइन आन कहते हैं। मतलब यह कि अगर आपने विंडोज में पासवर्ड डाल दिया है तो आउटलुक.कॉम, वनड्राइव.कॉम जैसे वेब ठिकानों पर पासवर्ड डालने की जरूरत नहीं होगी।
विंडोज पर पासवर्ड का एक विकल्प है पिन, जो बहुत आसान है क्योंकि इसमें सिर्फ चार या छह अंक ही चुनने होते हैं। लेकिन यह पासवर्ड से ज्यादा सुरक्षित है। पासवर्ड को दूसरे कंप्यूटरों पर डालकर भी अपने अकाउंट में लॉगिन किया जा सकता है लेकिन पिन आपके कंप्यूटर से जुड़ा हुआ है और सिर्फ वहीं काम करता है। वेब आधारित सेवाओं पर सुरक्षित लॉगिन के लिए क्या-क्या रास्ते नहीं ढूंढ़े गए। लॉगिन करने वाला इनसान ही है, यह पक्का करना भी साइबर सुरक्षा के लिहाज से जरूरी है। इसके लिए कैप्चा (CHAPTCHA) का रास्ता तलाशा गया जिसमें आप स्क्रीन पर दिए कुछ खास अंकों, अक्षरों को टाइप करते हैं।
उसे और आगे बढ़ाते हुए ऐसे चित्र आ गए जिनमें आपको कोई खास चीज पहचाननी पड़ती है। जैसे- सड़क के चित्र में कारों को पहचानना। कुछ स्थानों पर अंकों को जोड़ने या पहचानने की पहेलियां डाली जाने लगीं। एक प्रणाली ऐसी भी है जिसमें आपको एक चौकोर बॉक्स पर क्लिक करना होता है और आपके बर्ताव से तय हो जाता है कि आप एक इनसान ही हैं।
टू-फैक्टर आथेन्टिकेशन भी खूब प्रचलित हुआ है जो साइबर सुरक्षित रहने की एक कारगर प्रणाली है। किसी वेबसाइट या उपकरण पर पासवर्ड डालने के बाद आपके फोन पर एसएमएस से एक ओटीपी भेजा जाता है। इसे डालने पर ही आप लॉगिन कर पाते हैं। टू फैक्टर आथेन्टिकेशन में लॉगिन के दो तरीके अपनाने होते हैं।
पासवर्ड के साथ या तो मोबाइल फोन या फिर फिंगर प्रिंट या कोई और चीज। एक अन्य तरीके में एक छोटी-सी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस दी जाती है और जब आप अपने गैजेट या किसी संबंधित वेबसाइट पर लॉगिन करना चाहते हैं, ठीक उसी समय उसमें एक तात्कालिक पासवर्ड उभरता है जिसे डालकर ही आप लॉगिन कर पाते हैं। दफ्तरों में बायोमीट्रिक प्रणालियां काफी लोकप्रिय है. जिनमें फिंगरप्रिंट या आंखों की आइरिस का स्कैन किया जाता है। जाहिर है, पासवर्ड धीरे-धीरे पीछे छूट रहा है और आज नहीं तो कल, हमारी डिजिटल दुनिया पासवर्ड से आजाद हो जाएगी।
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