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होम भारत

चीन से नए वायरस का खतरा

by एस वर्मा
Dec 16, 2021, 09:31 am IST
in भारत, दिल्ली
हांग्झाऊ  में एक रेस्टोरेंट में ग्राहकों को पैंगोलिन परोसने की तैयारी करता रसोइया।

हांग्झाऊ  में एक रेस्टोरेंट में ग्राहकों को पैंगोलिन परोसने की तैयारी करता रसोइया।

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वैज्ञानिकों ने 16 प्रजाति के जंतुओं मेें 18 ऐसे वायरस की पहचान की है, जो चीन के कुख्यात वेट बाजारों के जरिये मनुष्यों और घरेलू जानवरों के लिए उच्च जोखिम पैदा कर सकते हैं। अगर चीन के इन मूर्खतापूर्ण कृत्यों से  फिर से कोई ऐसी आपदा आती है तो  विश्व इसका सामना कैसे कर पाएगा, यह चिंता का बड़ा विषय है

चीन के वुहान की प्रयोगशाला से निकले खतरनाक वायरस कोविड-19 को 2 वर्ष से अधिक समय हो चुका है और इसने विश्व भर को जो आघात पहुंचाया, वह पिछली सदी में हुए दो विश्वयुद्ध भी न दे सके थे। लेकिन चीन बड़ी निर्लज्जता से न केवल इन अपराधों से पल्ला झाड़ता आया है बल्कि उसने इस महामारी से निपटने के लिए चल रहे वैश्विक उपायों से बड़ी मात्रा में धन भी कमाया है। विश्व भर में सावधानी और टीकाकरण के निरंतर प्रयासों के बाद भी इस आपदा पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है। अब इस वायरस के अफ्रीका से निकले एक नए प्रकार ओमिक्रोन का खतरा विश्व के सम्मुख लगातार बढ़ता जा रहा है। समस्या केवल इतनी ही नहीं है। दो साल बाद चीन एक बार फिर भीषण आपदा के संकेत दे रहा है।

18 नए खतरनाक वायरस
वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने 16 प्रजाति के जंतुओं में पाए जाने वाले 18 ऐसे वायरस की पहचान की है, जो चीन के कुख्यात वेट बाजारों के जरिए मनुष्यों और घरेलू जानवरों के लिए उच्च जोखिम पैदा कर सकते हैं। चीन के वेट बाजार ऐसे परंपरागत बाजार हैं जहां मछली और मांस के साथ तमाम जंगली जानवरों का मांस और शरीर के अंग खुले आम बेचे जाते हैं।

कोविड की शुरुआत के समय भी चीन के वेट बाजार में बेची जाने वाली वन्यजीव प्रजातियों को कोविड -19 के उद्भव और गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम से जोड़ा गया था। और चीन में भी इस तथ्य को व्यापक स्वीकृति दी गई थी कि सार्स-कोव-2 वायरस के पशु से मानव संचरण का प्रारंभ भी संभवत: वुहान के एक वेट मार्केट के द्वारा ही हुआ था।

इस अध्ययन में शामिल अमेरिका, बेल्जियम और आॅस्ट्रेलिया के शोधकतार्ओं ने ऐसे जंतुओं का पता लगाने का दावा किया है जिन्हें चीन में बड़े पैमाने पर मारा जाता है और भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है, और जो सार्स-कोव और सार्स-कोव-2 के महत्वपूर्ण संभावित स्रोत हैं। कोविड महामारी के बाद के परिदृश्य में विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार के जंतुओं का व्यापार और उनके बाजार एक बड़ी दुर्घटना को आमंत्रण देने के समान हैं। जंतुओं की ऐसी कुछ प्रजातियों को चीनी सरकार द्वारा कोविड-19 की शुरुआत के बाद से व्यापार या कृत्रिम प्रजनन के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था, जो कि अंतरराष्ट्रीय दबावों के विरुद्ध एक दिखावटी उपाय था।

कोविड -19 महामारी की उत्पत्ति से अब तक विश्व भर में संक्रमण के 25.5 करोड़ से अधिक मामले सामने आए हैं और 50 लाख से अधिक मौतें हुई हैं। और, यह सिलसिला अभी जारी है, साथ ही साथ विश्व की अर्थव्यवस्था की रफ्तार इसके कारण धीमी पड़ गई है तथा बड़ी जनसंख्या के सम्मुख जीवन की लागत की पूर्ति करने में आ रही असमर्थतता के चलते अस्तित्व का संकट ही खड़ा हो गया है। पर चीन की सरकार ने कोविड महामारी से न सिर्फ अपना पल्ला झाड़ लिया है बल्कि उसने इस विषय में की जाने वाली अंतरराष्ट्रीय जांच में बाधाएं उत्पन्न की हैं। आश्चर्य है कि इतना विनाश देखने के बाद भी चीन की नीतियों में सुधार होता नहीं दिखता।

वेट मार्केट की भूमिका
’70 के दशक के आखिर में माओ युग के अंत और डेंग के सत्ता में आने के बाद चीन ने अपनी आर्थिक नीतियों में आमूल परिवर्तन करते हुए आर्थिक मामलों में साम्यवाद को किनारे कर दिया। वहीं चीन ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास में महत्वपूर्ण उन्नति की है। परंतु चीन में पुरातनकाल से चले आ रहे अतार्किक और रुढ़िवादी विचारों का प्रसार भी हुआ जिसका परिणाम है चीन में जंगली जानवरों की खाद्य पदार्थों के रूप में बढ़ती मांग।

इसके पीछे ढेर सारे अवैज्ञानिक तथ्यों का योगदान रहा। बहरहाल ’80 और ’90 के दशकों में ऐसे जंतुओं का व्यावसायिक तौर पर उत्पादन तथा उनके मांस को उपलब्ध कराना चीन के वेट बाजार का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य बन गया। परंतु प्रकृति से खिलवाड़ का परिणाम भुगतना ही पड़ता है। चीन ने 21वीं सदी के प्रारंभ में सार्स जैसी महामारी के रूप में प्रकृति के इस दंड को झेला। 2002-2004 के सार्स प्रकोप के चलते आगे एहतियात के तौर पर 2003 में पूरे चीन में वेट बाजार में वन्यजीवों को रखने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 2014 में, एच7एन9 एवियन इन्फ्लूएंजा के प्रकोप के कारण, हांग्झाऊ के सभी बाजारों में जीवित मुर्गियों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसी समय चीन में कई प्रांतों ने भी एवियन इन्फ्लूएंजा के फैलने के बाद जीवित मुर्गे की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था।

पर इन प्रतिबंधों के बावजूद ये बाजार चलते रहे और 2019 के अंत में कोविड 19 का प्रकोप आरंभ हुआ। कई विशेषज्ञों ने इस वायरस के जंतुओं से मनुष्य में प्रवेश का कारण इनके भोजन के रूप में इस्तेमाल को माना। दिसम्बर 2019 में चीन के वुहान में कोविड के आरंभिक 170 मरीजों में से एक तिहाई का वुहान के वेट बाजार के साथ संपर्क निकला। ऐसी स्थिति में चीन के महामारी विज्ञान विशेषज्ञों और कई पशु कल्याण संगठनों ने मानव उपभोग के लिए जंगली जानवरों को बेचने वाले वेट बाजार के संचालन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की।

इसके परिणामस्वरूप हुआनन सीफूड थोक बाजार को 1 जनवरी, 2020 को बंद कर दिया गया। चीन सरकार ने 26 जनवरी, 2020 को वेट बाजार में जंगली जानवरों के उत्पादों की बिक्री पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, और फरवरी 2020 में इसे स्थायी प्रतिबंध में परिवर्तित कर दिया गया।
परन्तु चीन कभी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं पर कायम नहीं रहा है। और यही वर्तमान में देखने में आया।

चीनी राज्य द्वारा संचालित मीडिया के अनुसार, इस महामारी के शुरुआती दौर में ही 22 मार्च, 2020 तक, चीन में अस्थायी रूप से बंद वेट बाजार का कम से कम 94% हिस्सा दोबारा खोल दिया गया। कोविड महामारी के जाने-माने विशेषज्ञों एंथोनी फौसी और लिंडसे ग्राहम ने ऐसे अपरिपक्वतापूर्ण कार्यों के लिए चीनी सरकार की गंभीर आलोचना की थी। परंतु विश्व स्वास्थ्य संगठन के ढुलमुल रवैये, जिसमें सिफारिश की थी कि वेट बाजार को केवल इस शर्त पर फिर से खोला जाना चाहिए कि वे कड़े खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता मानकों के अनुरूप हैं, के कारण यह वेट बाजार दोबारा से इन खतरनाक गतिविधियों में संलग्न हो गए।

चीन की हरकतों से विश्व को चिंता
और आज जब कोविड एक गंभीर वैश्विक समस्या बना हुआ है और विश्व का हर देश इसके दुष्प्रभावों का सामना कर रहा है, चीन ने एक बार फिर विश्व को एक और गहन संकट में धकेलने की कोशिश की है। अगर उसके इन मूर्खतापूर्ण कृत्यों के कारण विश्व के सम्मुख फिर से कोई ऐसी आपदा आती है तो कोविड से जूझ रहा विश्व इसका सामना कैसे कर पाएगा, यह चिंता का सबसे बड़ा विषय है। परंतु चीन अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नृशंसता की किसी भी सीमा को पार कर सकता है।

2017 में आयोजित 19वीं पार्टी कांग्रेस में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने 2035 और 2049 के लिए अपने जो लक्ष्य तय कर रखे हैं, उसमें विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति बन अपना प्रभुत्व स्थापित करना शामिल है।

कोविड के बाद के घटनाक्रम यह स्पष्ट संकेत देते हैं कि चीन वर्तमान वैश्विक व्यवस्था को पूर्णत: तहस-नहस कर इसे अपने पक्ष में पुनर्नियोजित करने के लिए इस जैव वैज्ञानिक युद्ध तकनीक का प्रयोग कर सकता है।

वर्तमान समय में इस तरह की महामारियों के दौर से निपटने के लिए जहां विज्ञान और तकनीकी महत्वपूर्ण साधन तो हैं ही, परन्तु भविष्य में सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु वैश्विक समुदाय को एकजुट हो चीन के विरुद्ध राजनीतिक और कूटनीतिक और ऐसे हर संभव कदम उठाने होंगे जो उसके इस तरह के दुर्भावनापूर्ण मंतव्यों को ध्वस्त कर सकें। 

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