कर्नाटक सरकार विधानसभा के शीतकालीन सत्र में कन्वर्जन के खिलाफ विधेयक पेश कर सकती है। राज्य के गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने सोमवार को कहा कि विधेयक का प्रारूप तैयार है। इस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी मत-पंथों के लोग अपने विश्वास को शांतिपूर्वक और सामंजस्यपूर्ण रूप से प्रकट कर सकें।
ज्ञानेंद्र ने कहा कि प्रस्तावित विधेयक को संविधान के ढांचे के अनुरूप तैयार किया जा रहा है। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा है कि राज्य सरकार इसे विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश करना चाहती है। इससे पहले रविवार को मुख्यपमंत्री बोम्मई ने कहा था कि प्रस्तािवित कानून किसी भी मजहब-मत, उनकी प्रथाओं और परंपराओं को प्रभावित नहीं करेगा, जो संविधान द्वारा प्रदान किया गया है। उन्होंने आश्वस्त करते हुए कहा कि हिंदू धर्म की तरह ईसाइयत, इस्लाम और सिख पंथ को भी संवैधानिक मान्यता प्राप्त है। प्रस्ता वित कानून से किसी भी मत-पंथ या मजहब से संबंधित लोगों की पूजा और पांथिक प्रथाओं में कोई बाधा नहीं आएगी। प्रस्तावित विधेयक केवल लालच देकर किए जा रहे कन्वर्जन को रोकने के लिए है। इसलिए इसके बारे में किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने हुबली में पत्रकारों से कहा कि राज्य के अधिकांश लोग चाहते हैं कि कन्वर्जन पर प्रतिबंध लगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि समाज के लिए जबरन कन्वर्जन अच्छा् नहीं है। समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को इसका शिकार नहीं बनने देना चाहिए। कन्वर्जन परिवारों के भीतर समस्याएं लाता है। इसलिए इसके खिलाफ विधेयक प्रस्तावित किया जा रहा है। साथ ही, उन्होंने कहा कि कानून विभाग इस मसौदा विधेयक की समीक्षा कर रहा है। राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद इसे बेलगावी में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में चर्चा के लिए पेश किया जा सकता है। राज्य के ईसाई इसका विरोध कर रहे हैं। पिछले माह बेंगलुरु आर्चडायसिस के आर्चबिशप डॉ. पीटर मचाडो ने प्रस्तावित कन्वर्जन रोधी कानून का विरोध करते हुए इसकी जरूरत पर ही सवाल उठाया था। मचाडो ने मुख्यमंत्री को दिए एक ज्ञापन में कहा था कि कर्नाटक का ईसाई समुदाय एक स्वर में प्रस्तावित विधेयक का विरोध करता है। जब किसी भी तरह के विचलन की निगरानी के लिए पहले से ही पर्याप्त कानून और न्यायालय के निर्देश मौजूद हैं तो इस तरह की कवायद की जरूरत नहीं है।
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