यूपी में बिजनौर से लेकर गढ़मुक्तेश्वर तक गंगा में विलुप्त हो रही डॉल्फिन को पिछले तीन सालों से संरक्षण मिलने लगा है। नमामि गंगे प्रोजेक्ट से गंगा का पानी साफ होने से डॉल्फिन और घड़ियालों की संख्या बढ़ने लगी है।
डॉल्फिन 10 से 15 फुट गहरे पानी मे संरक्षित रहती है। एक समय था गंगा में डॉल्फिन हजारों की संख्या में देखी जाती थी, बाद में गंगा में रसायन युक्त दूषित पानी गिरने से डॉल्फिन लुप्त होने लगी। 2018 में बिजनौर से गढ़ गंगा तक कुल 28 डॉल्फिन ही गिनती की रह गयी थीं। 2019 में इनकी संख्या बढ़कर 32 हुई और 2020 में 41 डॉल्फिन जलीय जीव गणना में देखी गई। अब इनकी संख्या 52 बताई जा रही है। डॉल्फिन को संरक्षित जलीय जीव की श्रेणी में रखा गया है। इसके पकड़ने या शिकार करने पर पाबंदी है।
गंगा में डॉल्फिन पर निगरानी रखने वाले भारत भूषण चुग के अनुसार गंगा में पानी अब पहले की तुलना में साफ रहने से डॉल्फिन की संख्या बढ़ने लगी है। नमामि गंगे प्रोजेक्ट में अभी और सख्ती की गुंजाइश है जिससे गंगा और साफ और जलीय जीवों के माफिक हो जाए। गंगा के सफाई चौकीदार के रूप में जाने जाते घड़ियाल को भी संरक्षित किया जारहा है। जलीय जीव विशेषज्ञ डॉ विपुल मौर्य कहते हैं इस वक्त बिजनौर से गढ़गंगा के बीच 15 घड़ियाल गणना में आये हैं। इन्हें और अच्छा वातावरण मिलेगा तो गंगा भी साफ होगी और जलीय जीव भी बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि रसायनों का गंगा में जाना हर हाल में रोकना होगा और पानी का स्तर भी 10 फुट तक बनाए रखना होगा।
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