‘इस साझा मोर्चे को तैयार करने का एक साझा उद्देश्य है। इसकी कमान पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) जैसे कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों को सौंपी गई है। सैन्य सहायता की जिम्मेदारी शहरी नक्सलियों ने संभाली है। पूरे कार्यक्रम की निगरानी का जिम्मा ईसाई मिशनरियों के हाथ में है। इस अभियान को वैचारिक रूप से आगे बढ़ाने और इनकी वास्तविक करतूतों को छिपाने की जिम्मेदारी कुछ खास किस्म के बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, कानूनविदों, सांस्कृतिक समूहों और मानवाधिकार संगठनों आदि पर है। यह कुल मिलाकर एक चौकड़ी है। विध्वंसकारी, विभाजक चौकड़ी।’
बिनय सिंह की किताब रक्तरंजित भारत इस बेबाक भूमिका के साथ शुरू होती है। भूमिका के बाद बेबाक अंदाज में इस चौकड़ी के उदय, प्रसार, प्रभाव और दुष्परिणामों का विस्तार से वर्णन किया गया है। ये मुद्दे चूंकि काफी संवेदनशील हैं, विवादित भी, लिहाजा यह किताब समाज में हलचल पैदा कर सकती है। लेखक ने अपने दृष्टिकोण को स्थापित करने के लिए किताब को कुल मिलाकर चार हिस्सों में बांटा है। भारत को लहूलुहान करने की साजिश, ‘विध्वंसक चौकड़ी के शिकंजे में वनवासी,’ ‘जिहाद का रक्तबीज,’ हर बूंद से नया रूप और पीएफआई।
उनकी इसी दृष्टि को विस्तार देते कुल छह टेस्ट केस हैं।
1. रोहिंग्या- आईएसआई और स्थानीय गठजोड़ ने पैदा किया नया नासूर।
2. पत्थलगड़ी और ऐसे ही देश-विरोधी मोर्चों का मकड़जाल,
3. तौहीद जमात-आईएसआई की रिश्तेदारी, श्रीलंका से पैदा होता आतंकी खतरा।
4. पैटर्न : जिहाद का गलियारा, जो फैला सकता है तबाही।
5. अर्बन नक्सलियों के हैं गली-गली तक सशस्त्र जंग के इरादे।
6. आपरेशन टोपाक की अगली साजिश-आनंदपुर साहिब 2020 जनमत संग्रह।
बिनय सिंह की थ्योरी के मुताबिक देश को रक्तरंजित करने के लिए इसलामिक जिहादी कट्टरपंथी, धर्मांतरण में जुटे ईसाई मिशनरी, नक्सल व अर्बन नक्सल और कथित वामपंथी बुद्धिजीवी-पत्रकार-लेखक-इतिहासकार एकजुट होकर कार्यरत हैं। लेखक के मुताबिक रोहिंग्याओं को सुनियोजित तरीके से भारत में बसाने का प्रयास हो या आदिवासी समुदाय के बीच अलगाव की भावना पैदा करने वाले पत्थलगढ़ी जैसे आंदोलन या फिर पंजाब में सिर उठाते खालिस्तान समर्थक, ये सब घटनाएं इसी चौकड़ी की कारस्तानी हैं। इसके लिए सिंह ने तीन जमा एक की थ्योरी पेश की है। मतलब यह कि इस चौकड़ी के तीन किरदार मिलकर किसी एक घटना को अंजाम देते हैं या तूल देते हैं।
चौथा किरदार यानी वामपंथी बुद्धिजीवी, पत्रकार, लेखक, इतिहासकार आदि उसे कवर फायर देते हैं। जिहादी संगठनों के पुराने रूप में निकलने वाले हर नए संगठन, इसके फंडिंग के स्रोत, इसकी कार्यपद्धति पर सुबूतों के साथ विस्तार से रोशनी डाली गई है। टेस्ट केस के तौर पर पीएफआई के पूरे ढांचे और विध्वंसक गतिविधियों का विस्तार से वर्णन है। इसी प्रकार सीमावर्ती जिलों में आबादी का बदलता संतुलन, आपरेशन टोपैक, आनंदपुर साहिब रेफरंडम पर भी कई सनसनीखेज तथ्य सम्मिलित हैं।
कुल मिलाकर लेखक अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं। वे कई मायनों में विवेक अग्निहोत्री की चर्चित किताब अर्बन नक्सल से आगे की बात कहते हैं। कुल मिलाकर विवाद का खतरा इस किताब के हर पेज पर नजर आता है और बिनय सिंह पूरे साहस के साथ इस खतरे को उठाने के लिए तैयार दिखते हैं। ईसाई मिशनरियों पर लिखा गया है-
वे भले ही बेहद संवेदनशील हैं, लेकिन लेखन में वैचारिक स्पष्टता है। मौजूदा परिप्रेक्ष्य में चारों ओर होते घटनाक्रम को नए नजरिये से देखने के लिए यह किताब पठनीय है।
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