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‘चीजों को सारी दुनिया देख रही है, लोग बदलाव की तरफ जा रहे हैं’

by WEB DESK
Dec 6, 2021, 06:05 pm IST
in भारत, दिल्ली
सैयद वसीम रिजवी

सैयद वसीम रिजवी

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भारत में इस्लाम की मुखर आलोचना करने वाले वसीम रिजवी ने इस्लाम त्याग कर सनातन धर्म स्वीकार कर लिया है। उनके इस साहसिक कदम से इस्लामी बिरादरी में हड़कंप मचा है। विभिन्न राज्यों में उन पर पुलिस में अभियोग लिखवाए जा रहे हैं। असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोगों ने उनका विरोध आरम्भ कर दिया है। इन सबके द्वारा जो आरोप लगाया जा रहा है, वह है मजहबी भावनाओं को आहत करने का। ध्यान देने वाली बात यह है कि किसी ने यह आरोप नहीं लगाया कि रिजवी ने अपनी पुस्तक ‘मुहम्मद’ में जो लिखा है,  वह झूठ लिखा है।  प्रस्तुत है वसीम रिजवी से पाञ्चजन्य की बातचीत –

 ताजा विवाद और पहले भी, आप पर अड़ियल रुख अपनाने और जल्दबाजी करने के आरोप लगे। क्या कहना चाहेंगे?
देखिए हमने तो बहुत वक्त निकाला और समझाने की कोशिश की, रामजन्मभूमि के मामले में भी। हमने आपसी समझौता करके मंदिर की जगह मंदिर न्यास को वापस दिए जाने की बात कही। लेकिन किसी ने बात नहीं मानी। इनका जो इस्लामिक रवैया है, वह कहीं पर लचीला नहीं होता। उनके जेहन में कट्टरपंथी मानसिकता पूरी तरह से पैवस्त हो जाती है जिससे वे मुहम्मद साहब और इस्लाम, कुरान में घूमते रह जाते हैं। कहते हैं कि साहब कुरान में तो ऐसी बात कही गई है। कुरान में फलां को काफिर कहा गया है। फलां को इस नाते दूर रहने को कहा गया है या जिहाद के लिए कहा गया है। इन तमाम बातों को लेकर आ जाते हैं कि जिससे वे पीछे हटते नहीं।

 

हिंदू रीति से अन्त्येष्टि की रिजवी की वसीयत

लगभग एक पखवाड़े पहले वसीम रिजवी ने एक बार फिर कट्टरपंथियों को बेचैन कर दिया। उन्होंने अपनी वसीयत बनाई है। इस वसीयत में उन्होंने लिखा है कि उनके मरने के बाद उन्हें कब्रिस्तान में न दफनाया जाए बल्कि हिन्दुओं की भांति श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया जाए।
वसीम रिजवी ने अपने बयान का एक वीडियो जारी करते हुए कहा कि ‘कट्टरपंथियों ने ऐलान किया है कि मेरे मरने के बाद कब्रिस्तान में मुझे स्थान नहीं देंगे। मेरे मरने के बाद देश में शांति व्यवस्था बनी रहे, इसलिए मैंने वसीयतनामा लिखकर प्रशासन को भेज दिया है। मेरे प्राण निकलने के बाद हिंदू रीति-रिवाज से मेरा अंतिम संस्कार किया जाए। डासना मंदिर के महंत नरसिम्हा नन्द सरस्वती मेरे मृत शरीर को मुखाग्नि देंगे।

 मदरसों में दी जा रही तालीम,  कुरान, हदीस से क्या खतरा है?
हमने  सरकार से कहा है कि जो प्राइमरी मदरसे हैं, उनको आप बंद कर दीजिए। लेकिन सवाल इस बात का है कि जो प्राथमिक मदरसे हैं, ग्रामीण क्षेत्रों के लोग उसमें अपने बच्चों को डाल देते हैं। उनकी स्कूलिंग खत्म हो जाती है और वे बचपन से ही ऊंचे पाजामे और सिर पर टोपी पहनकर टहलने लग जाते हैं। स्कूल के बाद जिन्हें मदरसा जाना है, जाए, लेकिन मुस्लिम समाज में जरूरी कर दिया जाए कि इनको हाईस्कूल तक पढ़ाया जाना जरूरी है। स्कूल के सर्टिफिकेट के बाद मदरसे के अंदर दाखिला कराएं क्योंकि इससे बच्चा बचपन में कट्टरपंथी मानसिकता से दूर रहेगा और जो बुनियादी पढ़ाई है, उसको अपने साथ के लोगों में बैठकर बताएगा।
जिस तरह से मदरसों में पढ़ाया जाता है, वो उनके जेहन को बर्बाद करता है। उनके जेहन में जहर बोया जाता है। इसलिए हमने कहा कि इस बुनियाद को खत्म करना चाहिए। प्राथमिक मदरसा खत्म करें और जो हाईस्कूल के बाद के मदरसे हैं, उन्हें आप चलाइए। वहां जब बच्चा दाखिला लेने जाएगा तो वह उस वक्त मानसिक तौर पर पूरी तरह से तैयार हो चुका होगा। उसका जेहन इतना कट्टरपंथी नहीं होगा।

 इस्लामिक आतंकवाद पर आपकी राय?
दुनिया के जो हालात हैं, उसको सबने देखा। हर जगह विस्फोट, हर जगह आतंक, हर जगह आईएसआई, कसाब को देखा, अल्लाह-हू-अकबर कहकर लोगों की गर्दनें काटीं। ये सारी चीजें 1400 साल पहले से अब तक चली आ रही हैं। मेरा मानना है कि इस्लामिक आतंकवाद कहीं पर नहीं रुका है। जो अरब से चला, वह हिन्दुस्तान में भी  आया, स्पेन में भी गया, दुनिया के दूसरे मुल्कों में भी गया। वहां जाकर उन्होंने वही बर्बरता की, जैसा कि मुगलों और सुल्तानों ने हिन्दुस्तान में किया।

 अधिकतर लोग इस बर्बरता से अनजान क्यों हैं?
वह रुका तो नहीं पर पूरी तरह से प्रचार इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि इतिहास में बड़ी-बड़ी घटनाएं तो जरूर लिखी गईं पर छोटी -छोटी घटनाएं, छोटे अत्याचार इतिहास में लिखे नहीं मिलते। आज इंटरनेट है, सोशल नेटवर्किंग है, पहले नहीं थी। जिस तरह से हम-आप बैठकर बातें कर रहे हैं, ऐसी व्यवस्था उस समय नहीं थी। जो खबरें मिल जाती थीं, वे मिल जाती थीं। आज के जमाने में हर चीज मुसलमानों तक आसानी से पहुंच रही है। उनकी मुखालफत हो रही है, पूरी दुनिया में एक मजाक बना हुआ है, उसको मुसलमान बच्चे देख रहे हैं, पढ़ रहे हैं। 1,400 साल पहले जिस तरह से इस्लाम आया, इस तरह का एक साम्राज्य  खड़ा कर दिया गया, एक अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन खड़ा कर दिया, इन सबके परिणाम अब सामने आ रहे हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से तेजी से लोगों के बीच पहुंच रहे हैं।

 इंटरनेट ने और कैसे प्रभावित किया है इस्लाम और मुसलमानों को?
हम यह समझते हैं कि सारी चीजें देखने के बाद बदलाव आ रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान की तस्वीर को देखिए। अगर कोई गैर मुसलमान मुझसे कहे कि मुसलमान हो जाओ तो कहेंगे कि अरे मुसलमान को देखना है तो तालिबान में देख लो। हमको अब इतना गंदा समझा जाने लगा है या हम गैर धर्म में हैं तो क्यों ऐसे अत्याचारी इस्लामी मजहब में दाखिल हो जाएं। इस चीजों को सारी दुनिया देख रही है और लोग अब बदलाव की तरफ जा रहे हैं।

क्या कारण है कि इस्लाम का सच बहुत कम लोग बताते हैं?
हम अकेले बोल तो रहे हैं। लोग बोलना नहीं चाहते। लोग डरे हुए हैं, सहमे हुए हैं क्योंकि सख्तियां इतनी हैं कि जो बोलना चाहता है, उसके साथ गलत व्यवहार हो रहा है। वह सोचता है कि अगर हमने इस्लाम को छोड़ दिया तो हमारे समाज के लोग हमारे पीछे लग जाएंगे। हमने वजह बता दी, फिर लोग पूरी तरह से घेर लेंगे। परिवार वालों को मारेंगे। इस्लाम के भीतर ऐसा बहुत बड़ा तबका है जो सिर्फ सहमा हुआ है, वरना अगर डर नहीं होता तो अब तक वे दूसरे धर्मों की तरफ बढ़ चुके होते। अपनी घर वापसी कर चुके होते। इतना डर है कि इस्लाम के खिलाफ कुछ बोल नहीं सकते। जिनके आंखों पर पट्टी बंधी है, ये झूठे हैं और इनको भी सब मालूम है।

ये दोहरापन क्यों होता है?
हमने कुरान पर आपत्ति की कि 26 आयतों को कुरान से हटाओ। ये जानते हैं कि मुशरिक काफिर किसको कहते हैं। अब ये हिन्दुस्तान में रहकर बहाना बनाते हैं कि मुशरिक काफिर नहीं होता, ये नहीं होता, वो नहीं होता। काफिर क्यों नहीं होते हिन्दू। तुम्हारे हिसाब से हिन्दू काफिर हैं। काफिर की परिभाषा क्या है? जब इनसे ये पूछो तो फिर कहेंगे कि नहीं, हिन्दू तो काफिर नहीं हैं। यहां पर हिन्दू बहुसंख्यक हैं तो यहां बैठकर कह रहे हैं कि हिन्दू काफिर नहीं हैं। इनको सऊदी अरब भेज दो, कश्मीर भेज दो तो ये चिल्ला-चिल्ला कर कहेंगे कि हिन्दू मूर्ति पूजा करता है। काफिर अल्लाह को नहीं मानता। कुरान की आयतों से इनकार करता है। ये हमारे माशरे में बैठे हैं, इसलिए खामोश हैं।

आपने जो पुस्तक लिखी है, उसका क्या प्रभाव देखते हैं?
अब बदलाव आ रहा है, काफी राज्यों से हमें किताब पढ़कर संदेश आया है कि  वाकई आपने जो लिखा है, उसके बारे में हमने गहराई से नहीं सोचा था। पाठक लिख रहे हैं  कि इस्लाम के अंदर इतनी गंदगी है। जानते तो सब हैं। जो चीज हम सच्चाई के पर्दे पर देख नहीं रहे थे। आज हम उसको तौल रहे हैं कि वाकई ये सच है। हम यह जानते थे। हमने यह जंग पढ़ी थी। हमने तो कुरान भी पढ़ा है। कुरान में आयतें भी पढ़ी हैं। लेकिन हमने इसको इस तरह से नहीं सोचा था। इसी तरह के संदेश में कह रहे हैं कि हम सनातन धर्म को कबूल करना चाहते हैं, मुझे कोई ऐसा रास्ता बता दो। तो जाहिर सी बात है कि जो हम तक पहुंच रहे हैं, वह बड़ा दिल करके बात कर रहे हैं लेकिन जो लोग हम तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, वह कहीं न कहीं अपने दिल में डरे बैठे हैं। असलियत तो इस्लाम की जान रहे हैं। इस्लाम के आने का जो मकसद है, उसको उजागर करने के लिए हमारी किताब मील का पत्थर साबित हो रही है। पूरी दुनिया में यह किताब तेजी से वायरल हो रही है और लोग इसे पढ़ रहे हैं। इसमें कोई हंसी-मजाक या किस्सा तो लिखा नहीं है। उसमें इस्लाम की हकीकत लिखी है। जब पढ़ रहे हैं तो समझ भी रहे हैं। अगर पढ़ते नहीं तो इतनी बड़ी तादाद में लोग किताब क्यों मांगते।

 

इस खबर को भी पढ़ें : मुस्लिम क्यों छोड़ रहे इस्लाम?

 

आयतें जिन पर विवाद है

9.5- फिर जब हुरमत के चार महीने गुजर जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ पाओ (बे ताम्मुल) कत्ल करो और उनको गिरफ्तार कर लो और उनको कैद करो और हर घात की जगह में उनकी ताक में बैठो फिर अगर वह लोग (अब भी शिर्क से) बाज आएं और नमाज पढ़ने लगें और जकात दें तो उनकी राह छोड़ दो (उनसे ताअरूज न करो) बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है

9.28- ऐ ईमानदारों मुशरेकीन तो निरे नजिस हैं तो अब वह उस साल के बाद मस्जिदुल हराम (खाना ए काबा) के पास फिर न फटकने पाएं और अगर तुम (उनसे जुदा होने में) फकरों फाका से डरते हो तो अनकरीब ही अल्लाह तुमको अगर चाहेगा तो अपने फजल (करम) से गनीकर देगा बेशक अल्लाह बड़ा वाकिफकार हिकमत वाला है

4.101- (मुसलमानों जब तुम रूए जमीन पर सफर करो) और तुमको इस अम्र का खौफ हो कि कुफ्फार (असनाए नमाज में) तुमसे फसाद करेंगे तो उसमें तुम्हारे वास्ते कुछ मुजाएका नहीं कि नमाज में कुछ कम कर दिया करो बेशक कुफ्फार तो तुम्हारे खुल्लम खुल्ला दुश्मन हैं

9.123- ऐ ईमानदारों कुफ्फार में से जो लोग तुम्हारे आस पास के है उन से लड़ों और (इस तरह लड़ना) चाहिए कि वह लोग तुम में करारापन महसूस करें और जान रखो कि बेशुबहा अल्लाह परहेजगारों के साथ है

4.56- (याद रहे) कि जिन लोगों ने हमारी आयतों से इन्कार किया उन्हें जरूर अनकरीब जहन्नुम की आग में झोंक देंगे (और जब उनकी खालें जल कर) जल जाएंगी तो हम उनके लिए दूसरी खालें बदल कर पैदा करे देंगे ताकि वह अच्छी तरह अजाब का मजा चखें बेशक अल्लाह हरचीज पर गालिब और हिकमत वाला है

9.23- ऐ ईमानदारों अगर तुम्हारे माँ बाप और तुम्हारे (बहन) भाई ईमान के मुकाबले कुफ्रÞ को तरजीह देते हो तो तुम उनको (अपना) खैर ख्वाह (हमदर्द) न समझो और तुममें जो शख़्स उनसे उलफत रखेगा तो यही लोग जालिम है

9.37- महीनों का आगे पीछे कर देना भी कुफ्रÞ ही की ज्यादती है कि उनकी बदौलत कुफ्फार (और) बहक जाते हैं एक बरस तो उसी एक महीने को हलाल समझ लेते हैं और (दूसरे) साल उसी महीने को हराम कहते हैं ताकि अल्लाह ने जो (चार महीने) हराम किए हैं उनकी गिनती ही पूरी कर लें और अल्लाह की हराम की हुई चीज को हलाल कर लें उनकी बुरी (बुरी) कारस्तानियॉ उन्हें भली कर दिखाई गई हैं और अल्लाह काफिर लोगो को मंजिले मकसूद तक नहीं पहुँचाया करता
 

5.5- आज तमाम पाकीजा चीजें तुम्हारे लिए हलाल कर दी गयी हैं और अहले किताब की खुश्क चीजें गेहूं (वगैरह) तुम्हारे लिए हलाल हैं और तुम्हारी खुश्क चीजें गेहूं (वगैरह) उनके लिए हलाल हैं और आजाद पाक दामन औरतें और उन लोगों में की आजाद पाक दामन औरतें जिनको तुमसे पहले किताब दी जा चुकी है जब तुम उनको उनके मेहर दे दो (और) पाक दामिनी का इरादा करो न तो खुल्लम खुल्ला जिनाकारी का और न चोरी छिपे से आशनाई का और जिस शख्स ने ईमान से इन्कार किया तो उसका सब किया (धरा) अकारत हो गया और (तुल्फ तो ये है कि) आखेरत में भी वही घाटे में रहेगा

33.61- लानत के मारे जहाँ कहीं हत्थे चढ़े पकड़े गए और फिर बुरी तरह मार डाले गए

21.98- (उस दिन किहा जाएगा कि ऐ कुफ्फार) तुम और जिस चीज की तुम अल्लाह के सिवा परसतिश करते थे यकीनन जहन्नुम की ईधन (जलावन) होंगे (और) तुम सबको उसमें उतरना पड़ेगा

32.22- और जिस शख़्श को उसके अल्लाह की आयतें याद दिलायी जाएँ और वह उनसे मुँह फेर उससे बढ़कर और जालिम कौन होगा हम गुनाहगारों से इन्तकाम लेगें और जरुर लेंगे 48.20- अल्लाह ने तुमसे बहुत सी गनीमतों का वायदा फरमाया था कि तुम उन पर काबिज हो गए तो उसने तुम्हें ये (खैबर की गनीमत) जल्दी से दिलवा दीं और (हुबैदिया से) लोगों की दराजी को तुमसे रोक दिया और गरज ये थी कि मोमिनीन के लिए (कुदरत) का नमूना हो और अल्लाह  तुमको सीधी राह पर ले चले

8.69- उसकी सजा में तुम पर बड़ा अजाब नाजिल होकर रहता तो (खैर जो हुआ सो हुआ) अब तुमने जो माल गनीमत हासिल किया है उसे खाओ (और तुम्हारे लिए) हलाल तय्यब है और अल्लाह से डरते रहो बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

66.9- ऐ रसूल काफिरों और मुनाफिकों से जेहाद करो और उन पर सख्ती करो और उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है

41.27- तो हम भी काफिरों को सख्त अजाब के मजे चखाएँगे और इनकी कारस्तानियों की बहुत बड़ी सजा ये दोजख है

41.28- अल्लाह के दुशमनों का बदला है कि वह जो हमरी आयतों से इन्कार करते थे उसकी सजा में उनके लिए उसमें हमेशा (रहने) का घर है,

9.111- इसमें तो शक ही नहीं कि अल्लाह ने मोमिनीन से उनकी जानें और उनके माल इस बात पर खरीद लिए हैं कि (उनकी कीमत) उनके लिए बेहश्त है (इसी वजह से) ये लोग अल्लाह की राह में लड़ते हैं तो (कुफ्फार को) मारते हैं और खुद (भी) मारे जाते हैं (ये) पक्का वायदा है (जिसका पूरा करना) अल्लाह पर लाजिम है और ऐसा पक्का है कि तौरैत और इन्जील और कुरान (सब) में (लिखा हुआ है) और अपने एहद का पूरा करने वाला अल्लाह से बढ़कर कौन है तुम तो अपनी खरीद फरोख्त से जो तुमने खुदा से की है खुशियाँ मनाओ यही तो बड़ी कामयाबी है

9.58- (ऐ रसूल) उनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो तुम्हें खैरात (की तकसीम) में (ख्वाह मा ख्वाह) इल्जाम देते हैं फिर अगर उनमे से कुछ (माकूल मिकदार(हिस्सा)) दे दिया गया तो खुश हो गए और अगर उनकी मर्जी के मुवाफिक उसमें से उन्हें कुछ नहीं दिया गया तो बस फौरन ही बिगड़ बैठे 8.65- ऐ रसूल तुम मोमिनीन को जिहाद के वास्ते आमादा करो (वह घबराए नहीं अल्लाह उनसे वायदा करता है कि) अगर तुम लोगों में के साबित कदम रहने वाले बीस भी होगें तो वह दो सौ (काफिरों) पर गालिब आ जाएंगे और अगर तुम लोगों में से साबित कदम रहने वालों सौ होंगे तो हजार (काफिरों) पर गालिब आ जाएंगे इस सबब से कि ये लोग ना समझ हैं
5.51- ऐ ईमानदारों यहूदियों और नसरानियों को अपना सरपरस्त न बनाओ (क्योंकि) ये लोग (तुम्हारे मुखालिफ हैं मगर) बाहम एक दूसरे के दोस्त हैं और (याद रहे कि) तुममें से जिसने उनको अपना सरपरस्त बनाया, फिर वह भी उन्हीं लोगों में से हो गया बेशक अल्लाह जालिम लोगों को राहे रास्त पर नहीं लाता
9.29- अहले किताब में से जो लोग न तो (दिल से) अल्लाह ही पर ईमान रखते हैं और न रोजे आखिरत पर और न अल्लाह और उसके रसूल की हराम की हुई चीजों को हराम समझते हैं और न सच्चे दीन ही को एख्तियार करते हैं उन लोगों से लड़े जाओ यहाँ तक कि वह लोग जलील होकर (अपने) हाथ से जजिया दे
5.14- और जो लोग कहते हैं कि हम नसरानी हैं उनसे (भी) हमने ईमान का एहद (व पैमान) लिया था मगर जब जिन जिन बातों की उन्हें नसीहत की गयी थी उनमें से एक बड़ा हिस्सा (रिसालत) भुला बैठे तो हमने भी (उसकी सजा में) कयामत तक उनमें बाहम अदावत व दुशमनी की बुनियाद डाल दी और अल्लाह उन्हें बहुत जल्द (कयामत के दिन) बता देगा कि वह क्या क्या करते थे
4.89- उन लोगों की ख्वाहिश तो ये है कि जिस तरह वह काफिर हो गए तुम भी काफिर हो जाओ ताकि तुम उनके बराबर हो जाओ पर जब तक वह अल्लाह की राह में हिजरत न करें तो उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ फिर अगर वह उससे भी मुंह मोड़ें तो उन्हें गिरफ्तार करो और जहॉ पाओ उनको कत्ल करो और उनमें से किसी को न अपना दोस्त बनाओ न मददगार
9.14- इनसे (बेखौफ (खतर) लड़ो अल्लाह तुम्हारे हाथों उनकी सजा करेगा और उन्हें रुसवा करेगा और तुम्हें उन पर फतेह अता करेगा और ईमानदार लोगों के कलेजे ठन्डे करेगा
 

26 आयतों के विरुद्ध याचिका

वसीम रिजवी ने इस वर्ष के पूर्वार्ध में सर्वोच्च न्यायालय में कुरान की 26 आयतों को हटाने के लिए याचिका दाखिल की थी। न्यायालय ने यह याचिका खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को आधारहीन बताते हुए याचिकाकर्ता और शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी को फटकार लगाई और उन पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था।

 

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