केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस लेने के बाद अब एमएसपी विचार के लिए कमेटी गठित की है। इस कमेटी में शामिल करने के लिए सरकार ने किसान संगठनों से पांच प्रतिनिधियों के नाम मांगे थे। आज संयुक्त किसान मोर्चा ने बैठक कर पांच नाम तय किए जिनमें गुरनाम सिंह चढ़ूनी, युद्धवीर सिंह, शिवकुमार कक्का, अशोक धावले व बलबीर सिंह राजेवाल शामिल हैं।
किसानों ने कहा कि अब 7 दिसंबर को फिर से बैठक होगी। इसमें आगे की स्थिति पर विचार किया जाएगा। सरकार ने जिस तरह से तीन कृषि कानून पर सकारात्मक कदम उठाया है, इससे प्रदर्शन में शामिल किसानों का बहुमत इस पक्ष में हैं कि आंदोलन अब समाप्त कर देना चाहिए। बड़ी संख्या में किसानों ने अपना सामान भी बांध लिया है। लेकिन कुछ किसान नेता चाहते हैं कि अभी वापस न जाया जाए।
सरकार को धमकाना बंद करें टिकैत
इस तरह से किसान संगठनों में दो फाड़ हो गया है। इनमें एक गुट में शामिल लोग वापस अपने घर जाना चाहते हैं। इनका कहना है कि उनकी मुख्य मांग थी कि तीन कृषि कानून वापस हो जाए। केंद्र ने उनकी बात मान ली है। इसलिए अब दिल्ली बॉर्डर पर बैठने का तुक नहीं बन रहा है। उन्हें यह चिंता भी सता रही है कि उनका कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। धरनास्थल पर बैठे सुखपाल व सतेंद्र सिंह ने बताया कि उनकी मांग अब पूरी हो गई है। जिस तरह से केंद्र सरकार खासतौर पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा दिल दिखाया है, अब बारी किसानों की है। उन्हें भी अब आंदोलन को समाप्त कर अपने घर जाना चाहिए। एमएसपी पर सरकार कमेटी बना ही रही है। इसलिए अब आंदोलन का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
आंदोलन समाप्त करने के पक्षधर किसानों का कहना है कि राकेश टिकैत को अब धमकी भरी भाषा में बयान जारी नहीं करना चाहिए। वह बात बात पर केंद्र को धमकी दे रहे हैं। यह सही नहीं है। इनका कहना है कि टिकैत कभी एमएसपी तो कभी किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने की मांग कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में यकीन ही नहीं रखते हैं। वह आंदोलन की आड़ में लठतंत्र चलाना चाह रहे हैं। यह गलत है। इस तरह से किसानों के कंधे पर आंदोलन नहीं चलाया जाना चाहिए।
सकारात्मक रुख दिखाएं किसान नेता
किसानों ने यह भी बताया कि किसान नेता आंदोलन खत्म करने को लेकर जिस तरह से केंद्र के सामने शर्त रख रहे हैं, यह सही नहीं है। ऐसा नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने बिना शर्त तीन कृषि कानून वापस ले लिए हैं। अब किसान नेताओं को भी चाहिए कि वह भी सकारात्मक रवैया अपनाएं। इस तरह से वे आखिर कब तक बॉर्डर पर बैठे रहेंगे? इससे उनका कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। जानकारों का यह भी कहना है कि ऐसा लग रहा है कि कुछ किसान नेता राजनीति कर रहे हैं। वे विपक्ष के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। इस तरह के लोग किसानों का भला नहीं चाह रहे हैं। उन्हें अपनी राजनीति से मतलब है। अब यह कथित आंदोलन इस दिशा में ही बढ़ता नजर आ रहा है।
आपसी बातचीत से मुद्दे सुलझाए जाएं
हरियाणा और पंजाब के किसान चाहते हैं कि अब बाकी के मसले बातचीत से सुलझ सकते हैं। एमएसपी पर केंद्र सरकार कमेटी बना ही रही है। इस कमेटी में किसानों के प्रतिनिधि भी शामिल हो रहे हैं। इस कमेटी में बाकी के मामलों पर भी बातचीत हो सकती है। इनका कहना है कि इतना बड़ा गतिरोध टूट गया है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। होना तो यह चाहिए था कि किसान नेता केंद्र सरकार के इस कदम का स्वागत करते। लेकिन यहां तो शर्त पर शर्त रखी जा रही है। जो सही नहीं है। यदि यह सही में किसानों को हितैषी है तो अब घर वापसी कर लेनी चाहिए।
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