गत दिनों खूंटी (झारखंड) प्रखंड के तिरला अखड़ा में मुंडारी साहित्य सम्मेलन आयोजित हुआ। इसका आयोजन अखिल भारतीय मुंडारी लेखक संघ और मुंडा साहित्य और कला-संस्कृति संस्था द्वारा संयुुक्त रूप से किया गया। सम्मेलन में ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल के साहित्य प्रेमी, बुद्धिजीवी और समाजसेवी शामिल हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ बेला पाहन और बैजनाथ पाहन द्वारा पूजा-अर्चना कर किया गया। सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष और खूंटी से अनेक बार सांसद रहे करिया मुंडा। उन्होंने कहा कि जिस समाज की भाषा समाप्त हो जाती है, वह समाज भी समाप्त हो जाता है। वर्तमान में हमारे बीच लिखित रूप में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। लोग अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। इस पर हमें विचार करने की आवश्यकता है।
जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के पूर्व उप निदेशक सोमा सिंह मुंडा ने कहा कि हमें यह विचार करने की आवश्यकता है कि हमारा साहित्य कैसे सबल हो। हमें अपनी पूजा-पद्धतियों को सबल करने की जरूरत है। अखिल भारतीय मुंडारी साहित्य लेखक संघ के महासचिव बीरबल सिंह ने कहा कि साहित्य सर्जन की इस राह में हमने अब तक 95 लेखकों को खोज निकाला है। हमें अपने समाज में अपने दायित्वों को समझने की जरूरत है।
श्यामाप्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति डॉ सत्यनारायण मुंडा ने कहा कि अपनी गलतियों को सुधारने से ही हम परिपक्व हो सकते हैं। हमारे बीच कई तरह की औषधियों का ज्ञान है जिसे बचाने की जरूरत है। हमें अपनी संस्कृति को मूल रूप में बनाए रखने की आवश्यकता है, इसे दो तरह से बचाया जा सकता है, एक सैद्धान्तिक रूप में और दूसरा व्यावहारिक रूप से। हमें छोटे बच्चों को अपनी मातृभाषा सिखानी होगी।
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