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होम भारत

नेताओं, अफसरों ने की एयर इंडिया की दुर्दशा

by WEB DESK
Nov 29, 2021, 06:53 am IST
in भारत, दिल्ली
एयर इंडिया

एयर इंडिया

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एयर इंडिया में नेताओं और अधिकारियों के मनमाने फैसलों से कंपनी की दुर्दशा हो गई थी। अब विनिवेश के बाद इसके टाटा के पास चले जाने से सार्वजनिक धारणा, गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद की जा रही है। इससे बाजार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ सकेगी और उसे सीधा लाभ होगा

जितेंद्र भार्गव

एयर इंडिया के विनिवेश को आप तीन-चार दृष्टियों से देख सकते हैं। जेआरडी टाटा ने 1932 में एयरलाइन प्रारंभ की। उन्होंने बेहतरीन एयरलाइन बनाई, अंतराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाया और भारत सरकार ने 1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया। राष्ट्रीयकरण के प्रारंभिक 25 साल जेआरडी टाटा ही चेयरमैन बने रहे। सरकार के कम दखल और एयर इंडिया प्रबंधन के पेशेवर रुख से एयर इंडिया अच्छी चलती रही। लेकिन जेआरडी टाटा के कार्यकाल के अंतिम कुछ वर्षों में इंदिरा गांधी सरकार की ओर से दखलअंदाजी शुरू हो गई थी।

परंतु जब 1978 में मोरारजी ने जेआरडी को बिना किसी सूचना के हटा दिया, तब से एयर इंडिया के बिगड़ने की कहानी शुरू हो गई। जेआरडी ने एक अच्छा फॉर्मूला दिया था कि चेयरमैन पद के लिए एक काबिल आदमी चाहिए और हरेक एयरलाइन को यात्री को ध्यान में रखते हुए देखना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह रही कि उसके बाद में प्रत्येक चीज में सरकार की दखलअंदाजी बढ़ी।

इंदिरा गांधी सरकार में एक मंत्री हुआ करते थे राज बहादुर। उस वक्त संजय गांधी इंडियन एयरलाइंस के एक बोर्ड सदस्य को निकालना चाहते थे। परंतु यह भी नहीं चाहते थे कि किसी को पता चले। उपाय निकाला कि एयरलाइंस और एयर इंडिया, दोनों में से एक-एक बोर्ड सदस्य को हटा दिया जाए। एयर इंडिया में जिन्हें निकाला जा रहा था, वह बहुत काबिल निदेशक थे।

जेआरडी ने खुद इंदिरा गांधी से हस्तक्षेप करके यह सब कुछ बताया। लेकिन मामला मंत्री का था ही नहीं, संजय गांधी के कहने पर बाहर निकालना ही है। इसी तरह दखलअंदाजी बढ़ती गयी और हालत यहां तक आ गई कि 1998 में विनिवेश आयोग द्वारा जिस कंपनी को सबसे पहले विनिवेश के लिए रेफर किया गया, वह एयर इंडिया थी। इससे पता चलता है कि सरकार कितने वर्षों से यह मान रही है कि वह एयर इंडिया को नहीं चला पा रही है।

मनमाने फैसले
इसके बाद भी कई सारे गलत फैसले लिए जाते रहे। वर्ष 2003 से एयर इंडिया के चेयरमैन लगातार आइएएस अधिकारी रहे। इसमें दिक्कत यह हुई कि पहले तो आईएएस को उड्डयन के बारे में ज्ञान नहीं होता। दूसरे स्थानांतरण के नियम के कारण उनके विभाग बदलते रहते हैं जिससे उनका समर्पण नहीं होता। पिछले 18 साल तक यह सिलसिला चलता रहा। फिर 2004 में प्रफुल्ल पटेल जी उड्डयन मंत्री बने। उन्होंने बेहिसाब हवाई जहाज खरीदने के आर्डर कर दिये।

उड्डयन सलाहकार ने आपत्ति जताई तो उन्हें हटा दिया गया। इंडियन एयरलाइंस के साथ विलय कर दिया। मतलब की सारी चीजें गलत तरीके से की जा रही थीं। उदाहरण के तौर पर विलय के प्रस्ताव पर कन्सल्टेंट नियुक्त किए गए। उन्होंने लिखित रूप में बताया कि विलय में सबसे बड़ी समस्या यह है कि दोनों कंपनियों की कार्य संस्कृति भिन्न है, उनके कर्मचारियों की वेतन संरचना में भिन्नता है। प्रफुल्ल पटेल ने इस पर कमेटी बनाने की बात कही और 2007 में विलय कर दिया।

एयर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेंद्र भार्गव

2011 तक प्रफुल्ल पटेल मंत्री रहे, तब तक इस कमेटी का गठन नहीं हुआ। जब व्यालार रवि 2011 में मंत्री बने तब उन्होंने यह कमेटी बनाई। एयर इंडिया में अधिकारी प्रोन्नत होते रहे परंतु वे प्रतिस्पर्धा के काबिल नहीं थे। इन सब चीजों से दिनोंदिन हालत बिगड़ती गई। 2013 में टाटा सिंगापुर एयरलाइंस ने केंद्र सरकार से एक नई एयरलाइंस विस्तारा चालू करने की अनुमति मांगी। टाटा ने एयर इंडिया को लौटाने का भी प्रस्ताव किया। परंतु कुछ नहीं हुआ। अब मोदी सरकार ने बहुत सोच-विचार कर विनिवेश में 100 प्रतिशत इक्विटी देने का कहा तो टाटा ने इसे वापस ले लिया।

विनिवेश न होता तो बढ़ता घाटा
कुछ लोगों का कहना है कि सरकार ने 18 हजार करोड़ में एयर इंडिया को बेच दिया। लोगों की यह जान लेना जरूरी है कि जब टाटा से एयर इंडिया सरकार ने ली थी तब तो बहुत थोड़े से पैसे दिये थे। उस समय एयर इंडिया का भविष्य था, तब सरकार ने कौड़ी के भाव लिया था। अब जब एयर इंडिया का भविष्य नहीं था, तब कहते हो कि इतना पैसा मिलना चाहिए था। अगर सरकार विनिवेश नहीं करती तो एयर इंडिया को अगले पांच साल चलाने के लिए 50 हजार करोड़ रुपये और चाहिए थे।

दूसरी बात यह है कि 2009 से अब तक 1,10,000 करोड़ रुपये एयर इंडिया में डाले गए। मैं इस दौरान एयर इंडिया के चेयरमैन रहे आईएएस अधिकारियों से एक सवाल पूछता हूं कि आप कंपनी में 10 हजार करोड़ प्रतिवर्ष डाल रहे हो, तब भी आप सुधार नहीं कर पा रहे हो और आपको विनिवेश करना पड़ता है तो क्या उन अधिकारियों को जवाबदेह नहीं होना चाहिए। यह भी महत्वपूर्ण है कि पिछले 20 साल में भारतीय उड्डयन बाजार तेजी से बढ़ रहा था। एयर इंडिया की कमजोरी का सीधा नतीजा यह हुआ कि भारत के यात्री दूसरे देशों की एयरलाइन से जाने लगे। इसी से अंदाज लगाएं कि भारत को कितना नुकसान हुआ।

कर्मचारियों को कोई नुकसान नहीं
अब एयर इंडिया टाटा के पास है। इसका सीधा लाभ सार्वजनिक धारणा का मिलेगा। 30 वर्ष से कम के यात्री सरकारी एयरलाइन होने से एंयर इंडिया को पूछते नहीं थे। अब इसके टाटा के पास चले जाने से छवि सुधर जाएगी। वे हवाई जहाज की दशा को सुधार पाएंगे। एयर इंडिया के वर्तमान नुकसान में बहुत सारी कटौती अतिशीघ्र हो जाएगी।

विनिवेश में साफ है कि टाटा सभी कर्मचारियों को कम से कम 1 साल तक रखेंगे। परंतु उसके बाद हटाए जाने की गुंजाइश है। तब कर्मचारी बेहतरीन काम करेंगे। कमी कर्मचारियों की भी नहीं है। वे अपना काम बखूबी जानते हैं लेकिन उनके पास मजबूत नेतृत्व नहीं है। जो पिछले दरवाजे से आए हैं और काम नहीं करते, उनकी छंटनी होती है तो इसमें कोई दुख की बात नहीं है। पिछले 25 वर्षों से एयर इंडिया में सामान्य कर्मचारी की कोई भर्ती नहीं हुई है। वर्तमान में एयर इंडिया में 8000 कर्मचारी हैं जिसमें परिचालन के लिए जरूरी कर्मचारियों के अलावा 4000 कर्मचारी हैं जो अगले पांच वर्ष में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। इसलिए कर्मचारियों की भी कोई दिक्कत नहीं है।

भारत को लाभ
इन सारी व्यवस्था में सबसे बड़ा लाभ भारत को होगा। भारतीय बाजार में विदेशी एयरलाइंस का दबदबा कम हो जाएगा। फिलहाल घरेलू बाजार में इंडिगो की 55 प्रतिशत हिस्सेदारी है लेकिन उसकी उड़ानें खाड़ी देशों और दक्षिण के अलावा यूरोप या अमेरिका नहीं जातीं। वहां केवल एयर इंडिया जाती है। इससे एयर इंडिया की बाजार हिस्सेदारी बढ़ेगी और यात्री आएंगे तो इसका सीधा लाभ भारत को होगा। टाटा एयर इंडिया की बेहतरीन गुणवत्ता बना कर रखेंगे। इन सारे काम को सुदृढ़ करने में कम से कम दो साल लगेंगे। तीन चीजें झ्र सार्वजनिक छवि, कमी एवं हानि और राजस्व – तत्काल बदल जाएगा। ये तीन चीजें छह महीने में प्राप्त हो जाएंगी। पिछले दो वर्षों में कोरोना के कारण सभी एयरलाइंस की हालत बिगड़ी है। इस हालत में विनिवेश करना भारत सरकार की जीत है। देश को सिर्फ 2-3 मजबूत एयरलाइंस चाहिए न कि 10 कमजोर एयरलाइंस।
(एयर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेंद्र भार्गव से बातचीत पर आधारित)

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