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डूबती नाव को भरमाता कप्तान

by हितेश शंकर
Nov 28, 2021, 02:52 pm IST
in विश्व, सम्पादकीय, दिल्ली
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और जनता

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और जनता

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सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वहां के युवाओं ने अर्थव्यवस्था की दुर्दशा को स्थायी मान लिया है। इससे रोजगार और कुल मिलाकर पूरी पीढ़ी के भविष्य के प्रति पाकिस्तानी जनता में आशा खत्म हो चुकी है और वह निराशा में है

 

हाल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बयान दिया है, जिसमें उनकी चिंता, छटपटाहट और बौखलाहट झलक रही है।

उन्होंने कहा है कि –

  • पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गई है।
  • देश को चलाने के लिए पैसा नहीं है, इसलिए दूसरे देशों से कर्ज लेना पड़ रहा है।
  • जिस घर में खर्च ज्यादा हो और आमदनी कम हो, वह घर हमेशा परेशानियों से घिरा रहेगा।
  • पैसा न होने से पाकिस्तान निवेश नहीं कर पा रहा। निवेश नहीं कर पाने से देश का विकास नहीं हो रहा।
  • विदेशी कर्ज और कर राजस्व में कमी राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है।

याद कीजिए, इमरान खान ने पाकिस्तान को रियासते-मदीना का वायदा किया था। बड़ी बातें करना एक बात है, परंतु व्यवस्था के कील-कांटों को दुरुस्त कर उसे पटरी पर बनाए रखना अपने-आप में कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। लगता है, यह बात पूर्व क्रिकेटर को अब अच्छे से समझ में आ रही है।

इमरान ने बहुत सारी बातें गिना दीं, परंतु उन्हें यह सोचना चाहिए कि ये बातें वे गिना किसे रहे हैं? ये तो वे चुनौतियां हैं जिसे ठीक करने का जिम्मा उनका था। बयान से तो यही लगता है कि वे अपनी विफलता का ढिंढोरा पीट रहे हैं। वैसे, इस पूरे प्रकरण में इमरान खान जो भी कह रहे हैं, उसे तीन कोणों से देखा जाना चाहिए।

  • एक इमरान खान के दृष्टिकोण से।
  • दूसरे पाकिस्तान की जनता की नजर से।

और तीसरे – इस कोण से कि पाकिस्तान की इस बदहाली को पूरी दुनिया कैसे देखती है।

पाकिस्तान का प्रधानमंत्री कहता है कि हमारी आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गई है़ दूसरों देशों से कर्ज लेना पड़ रहा है। जब वे कर्ज लेने की बात कर रहे हैं तो उन्हें बताना चाहिए कि बिना सोचे-समझे झोली फैलाने गया कौन था?

आप बात भले विदेशी कर्जे की कर रहे हों परंतु आपने तो कर्ज ही नहीं लिया बल्कि साथ ही अपनी संप्रभुता को भी गिरवी रख दिया है। पाकिस्तान में चीनी निवेश वहां की सरकार और जनरलों को भाता है परंतु चीन ने निवेश के बहाने पाकिस्तान की गर्दन पकड़ रखी है, ये सारी बातें सबको साफ-साफ दिखाई दे रही हैं। वर्ष 2014 में प्रारंभ हुई सीपीईसी परियोजना के बाद से पाकिस्तान के लिए आर्थिक जाल तैयार करने का काम चीन ने किया। इससे अंतरराष्ट्रीय देनदारियों को चुकाने में भी दिक्कत होने लगी। अब पाकिस्तान सरकार को एक तो कर्जा चुकाना है मगर कर्जे के साथ आमंत्रित आक्रोश से वह कैसे निपटे, यह भी उसकी बेबसी है। पाकिस्तान की सेना के साथ चीनी बर्ताव को वहां के भ्रष्टाचार के आदी जनरल कैसे देखते हैं, यह भी देखने वाली बात है। यही चीनी निवेश पाकिस्तान के लिए धंधा बन गया था।

यह बड़ा प्रश्न है और हम कह सकते हैं कि 2018 के बाद से पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति लगातार लड़खड़ा रही है और गर्त में जा रही है। जो-जो ठिकाने हो सकते थे़.. जो-जो तिजोरियां हो सकती थीं… जहां-जहां से मदद मिल सकती थी, ली गई। अब उनके ब्याज के भुगतान में भी दिक्कत है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कर्ज देते वक्त कुछ शर्तें तय की थी, उनमें एक शर्त खर्च में कमी की थी। परंतु पाकिस्तान में जो भी शासक या सेना के जनरल रहे, उनके जीवन स्तर और सामान्य जनता के जीवन स्तर में जमीन- आसमान का अंतर है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मितव्ययता की कठोर शर्तों पर पाकिस्तान की सरकार के लिए काम-काज चलाना कठिन है।

वित्त मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि जुलाई से फरवरी तक के पहले आठ महीनों में पाकिस्तान का राजकोषीय घाटा उसके सकल घरेलू उत्पाद का 3.5 प्रतिशत था जो 1603 खरब पाकिस्तानी रुपये के लगभग बैठता है। वहां के विभिन्न प्रांतों की स्थिति भी बहुत खराब है।

दूसरा कोण है, वहां की जनता का नजरिया। पाकिस्तान की जनता के मुद्दे इस समय क्या हैं? सरकार के मुद्दे क्या हैं? इप्सस के सर्वेक्षण में वहां की जनता इमरान की इस बात से तो सहमत है कि आर्थिक स्थिति बहुत खराब है परंतु साथ ही यह भी कह रही है कि आर्थिक स्थिति को ठीक करने की सरकार की कोशिशों पर उसे भरोसा नहीं है। जनता ने इन कोशिशों को अत्यंत संदेहास्पद बताया है। पेरिस स्थित बाजार अनुसंधान और परामर्श फर्म इप्सस ने महंगाई पर नियंत्रण करने में पाकिस्तान सरकार की असमर्थता को उजागर करके रख दिया है।  ऐसे सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वहां के युवाओं ने अर्थव्यवस्था की दुर्दशा को स्थायी मान लिया है। इससे रोजगार और कुल मिलाकर पूरी पीढ़ी के भविष्य के प्रति पाकिस्तानी जनता में आशा खत्म हो चुकी है और वह निराशा में है।

जनता के मुद्दे बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई हैं। वहीं सरकार भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, रिश्वत के मुद्दों पर लड़ती दिखना चाहती है। ये मुद्दे राजनीति में हो सकते हैं मगर पाकिस्तान में जनता भ्रष्टाचार को अब मुद्दा नहीं मानती। भाई-भतीजावाद वहां की सेना से लेकर सियासत तक में इतना बड़ा है कि उसे मुद्दा बनाने पर लोग मखौल उड़ाते हैं। दूसरी तरफ, इमरान खान भ्रष्टाचार की बात कैसे करेंगे जब उनके कैबिनेट के एक मंत्री, जो सीपीईसी के चेयरमैन भी  थे, जब उनकी भ्रष्टाचार की कलई खुली तो उन्होंने मंत्री पद त्यागना उचित समझा परंतु सीपीईसी का पद नहीं छोड़ा। यह कुछ समय पहले की ही तो बात है!  यह उजागर करता है कि अंदरखाने क्या चल रहा है।

रोजगार-आय के अभाव के साथ ही पाकिस्तान की जनता खाने-पीने के लिए भी जूझ रही है। हमने कोविड के समय देखा कि पाकिस्तान की बड़ी आबादी को टीके की बात तो छोड़िए, खाने तक के लिए पैसे नहीं हैं। दूसरी ओर धनाढ्य वर्ग बहुत बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थ बर्बाद कर रहा है। पाकिस्तान के आंकड़े बता रहे हैं कि रोजाना लगभग 36 मिलियन टन खाना बर्बाद हो जाता है। शादियों, पार्टियों का इसमें 40 प्रतिशत हिस्सा है। इसके साथ ही ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2020 की रिपोर्ट बताती है कि भुखमरी के मामले में पाकिस्तान का दुनियाभर के 132 देशों में 88वां नंबर है। संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम के हिसाब से पाकिस्तान की करीब आधी आबादी खाना मिलेगा या नहीं, इस मामले में असमंजस में है। इसमें भी 18 प्रतिशत को इस तरह का खतरा बहुत गंभीर किस्म का है। बच्चे कुपोषित हैं।

इमरान जब दावे करते हैं तो पाकिस्तान की जनता और दुनिया को एक बाद याद रखनी चाहिए कि जब वे पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान थे, तब भी दावे बहुत बड़े-बड़े थे परंतु ऊपर से चमकती दिखती चीजों के पीछे मैच फिक्सिंग, नशाखोरी, अय्याशी और अनुशासनहीनता जैसे आरोप भी उसी टीम पर थे। यानी कि अव्यवस्थाओं को चलाते भी रहना और यह दावा करना कि हम उनसे लड़ रहे हैं, हम अच्छा करेंगे, यह ढिंढोरा पीटना, यही इमरान की खूबी रही है। मगर उनकी यह खूबी ही पाकिस्तानी व्यवस्था की खामी भी है और, अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए खतरा भी हो सकती है, ये हमें ध्यान रखना चाहिए।
@hiteshshankar

हितेश शंकर
Editor at Panchjanya

हितेश शंकर पत्रकारिता का जाना-पहचाना नाम, वर्तमान में पाञ्चजन्य के सम्पादक

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