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सर्वाधिक मन्दिरों वाला विश्व का सुन्दरतम द्वीप बाली

by प्रो. भगवती प्रकाश
Nov 27, 2021, 01:00 pm IST
in भारत, संस्कृति, दिल्ली
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बाली हिन्दू संस्कृति का एक विश्व दुर्लभ रामायण कालीन केन्द्र है। यहां 1000 उत्तम मंदिरों समेत 20,000 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर हैं। मार्कण्डेय ऋषि की तपोस्थली, वासुकि एवं तक्षक नाग की प्रतिमा और सुमेरु पर्वत का विशेष महत्व है। इण्डोनेशिया की प्राचीन हिन्दू सभ्यता,संस्कृति व इतिहास यहां 8वीं से 14वीं सदी के संस्कृत व बालीनीज भाषा और देवनागरी लिपि के शिलालेखों, पाण्डुलिपियों व ताम्रपत्रों में प्रचुरता से है।

हिन्द महासागर के सुदूर पूर्व में स्थित विश्व का सर्वाधिक मन्दिरयुक्त इण्डोनेशियाई द्वीप बाली अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, कला, वास्तु शिल्प, संस्कृति एवं सागर-तटीय मनोरम मन्दिरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इस 43 लाख जनसंख्या और 5780 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले द्वीप पर 1000 से अधिक उत्तम मन्दिर हैं। इनके अतिरिक्त 10,000 से अधिक छोटे मन्दिरों के साथ यहां के निवासियों के घरों में निर्मित मन्दिरों को जोड़ देने पर मन्दिरों की संख्या 20,000 से अधिक हो जाती है। एक जाग्रत ज्वालामुखी युक्त अगुंग पर्वत की मार्कण्डेय ऋषि की तप:स्थली एवं वासुकि व तक्षक नाग की प्रतिमाओं का विशेष प्रागैतिहासिक महत्व है। वासुकि नाग समुद्र मन्थन में रस्सी बने थे और मथानी बना सुमेरु पर्वत भी बाली के पास जावा में है (चित्र 1)। वासुकि नाग के नाम पर ही यहां स्थित मन्दिर का नाम पुरा बैसाकिह है (चित्र 2)।

मुस्लिम बहुल देश इण्डोनेशिया पंद्रहवीं सदी तक शैलेन्द्र व मजपहित साम्राज्य तक हिन्दू-बौद्ध प्रधान देश था। सत्रह हजार द्वीपों में इण्डोनेशिया के 6000 द्वीप आवासित हैं। इस्लामी आक्रमणों के दौर में 500 वर्ष पूर्व इण्डोनेशिया के अन्य द्वीपों से अनेक हिन्दू व बौद्ध बाली में आकर बस गए थे। बाली सहित इण्डोनेशिया की प्राचीन हिन्दू सभ्यता,संस्कृति व इतिहास यहां 8वीं से 14वीं सदी के संस्कृत व बालीनीज भाषा और देवनागरी लिपि के शिलालेखों, पाण्डुलिपियों व ताम्रपत्रों में प्रचुरता से है।

रामायणकालीन इतिहास
बाली द्वीप का नाम रामायणकालीन किष्किन्धा के राजा बाली से सम्बन्धित है। बाली का सूयोर्पासना स्थल होने से इस द्वीप के पूर्वी छोर पर प्राचीन महाविशाल सूर्य मण्डल स्पष्ट दिखाई देता है (चित्र-3)। पृथ्वी पर सुदूर पूर्व में स्थित इस द्वीप से सर्वप्रथम सूर्य दर्शन होने से बाली यहीं पर अपने आराध्य सूर्य को प्रात:कालीन अर्ध्य अर्पित करता था। तीर्थ गंगा उपाख्य तीरतगंगा नदी के पूर्व में यह सूर्यमण्डल, बाली द्वीप के पूर्व में स्थित है। यहीं पर युद्ध की चुनौती देने पर रावण को बाली द्वारा अपनी बगल या कांख में दबा कर पूजा पूरी करने का वाल्मीकी रामायण व तुलसीकृत रामचरित मानस में सन्दर्भ है।

हिन्दुत्व प्रधान संस्कृति व काल गणना
पिछले 4000 वर्षों का संस्कृतिक इतिहासबाली व समग्र इण्डोनेशिया से प्राप्त प्राचीन पाण्डुलिपियों, ताम्र पत्रों व शिलालेखों में संकलित है। हजारों प्राचीन पाण्डुलिपियों के अतिरिक्त बाली में 4000 वर्ष पुराने पाषाण के औजार व अन्य पुरावशेष भी निकले हैं। इण्डोनेशियाई पाण्डुलिपियों में 33,000 तो इण्डोनेशिया के संग्रहालयों में सूचीबद्ध हैं। इण्डोनेशियाई पाण्डुलिपियां17,000 नीदरलैण्ड, 1200 इंग्लैंण्ड में और अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, नार्वे, आयारलैण्ड, पुर्तगाल, थाईलैण्ड, मलेशिया, सिंगापुर व दक्षिण अफ्रीका तक में और भी बड़ी संख्या में हैं। बाली में हिन्दुओं के – पाशुपत, भैरव, शिव सिद्धान्त, वैष्णव, बौद्ध, ब्राह्म, ऋषि, सौर एवं गाणपत्य सम्प्रदाय आज भी हैं।

भारतीय शक सम्वत युक्त शिलालेख व ताम्रपट्ट 817 शक सम्वत (896 ईस्वी) से उपलब्ध हैं। हिन्दू राजा केसरी वर्मनदेव का बेलंजोंग स्तम्म का शिलालेख फाल्गुन सप्तमी 835 शक सम्वत का है जिसकी तिथि 14 फरवरी 914 निकलती है।

ताड़पत्र की लोण्टार पाण्डुलिपियों की विलक्षण परम्परा
यहां बाली में पाई जाने वाली ताड़पत्र पर लिखी लोण्टार पाण्डुलिपियों को गणपति व सरस्वती प्रेरित माने जाने के कारण उनका प्रतिलिप्यकरण (कॉपी) अर्थात इनकी नकल कर प्रतियों को पीढ़ी दर पीढ़ी रखा जाता है। इनमें नए विवरणों सहित कई सहस्त्राब्दियों के सन्दर्भ हैं।

बाली में घरों के पूजा स्थलों में लोण्टार पाण्डुलिपियां बड़ी संख्या में हैं। लाखों अपठित पाण्डुलिपियों का संस्कृत, जवानी व बलिनी भाषाओं से भाषान्तर भी कठिन कार्य है। विश्व में ताड़पत्र पर लेखन समाप्त हो गया है। बाली में यह परम्परा जीवित है। इनमें रामायण व महाभारत के प्रसंगों सहित जीवन व ज्ञान के विविध आयामों, दर्शन, अध्यात्म, पूजा विधान, प्राचीन औषधि विज्ञान, खगोल, ज्योतिष, साहित्य, व्याकरण, इतिहास, कुल परम्परा, वंशावली आदि प्रकरण है। (ताम्र पत्र व लोण्टार पाण्डुलिपियों के चित्र क्रमश: 4 व 5)।

दुर्लभ व विलक्षण प्राचीन हिन्दू मन्दिर
बाली द्वीप स्थित असंख्य मन्दिर विशिष्ट विलक्षणता युक्त हैं:-

  1. पुरा बैसाकिह: समुद्र मन्थन के वासुकि नाग का मन्दिर: बाली मे अगुंग पर्वत जाग्रत ज्वालामुखी पर्वत है। नाग के खुले मुख जैसा समुद्र मन्थन में रस्सी बने वासुकि नाग का मुख है। अगुंग पर्वत पर 1000 मीटर पर 23 मन्दिरों का समूह है (चित्र 2)। एक मन्दिर में द्वारपाल के रूप में वासुकि और तक्षक नाग प्रतिमाएं और ब्रह्मा, विष्णु व महेश की पीठ है। बाली में देव प्रतिमाओं के स्थान पर उनके अस्त्र व वाहनों की भी पूजा की जाती है।
  2. समुद्र तट से 70 मीटर की ऊंचाई पर पूरा उलुवातू मंदिर है जिसके तीन ओर समुद्र है। बाली के 7 अति प्राचीन सागर मंदिरों में से यहां निरर्थ ऋषि ने तप किया था। यहां बंदर बहुत हैं जो वन में ऊधम करते हैं, लेकिन, मन्दिर परिसर में शान्तचित्त हो मन्दिर की साफ सफाई तक के प्रति गम्भीर हो जाते हैं (चित्र 6)।
  3.  पुरा उलुवातु रुद्र मन्दिर: स्वयंभू अमृत तीर्थ क्षेत्र पुरा एम्पूल : श्रीमन्नारायण को समर्पित बाली के हिन्दुओं के लिए यह अमृत तीर्थ क्षेत्र है, जिसे गंगोत्री तुल्य पवित्र व रोगनाशक मानकर हिन्दू स्नानार्थ आते हैं (चित्र 7)।

पुरा तनहलोट व पुरा तमन से सरस्वती मन्दिर, तमन राम शिन्ता स्थल: बाली के 7 सागर मन्दिरों में तनाह लौट मन्दिर वैदिक देवता मित्र की पूजा पीठ युक्त सामुद्रिक भूमि पर स्थित है (चित्र 7)। पुरा तमन सरस्वती, माता सरस्वती का मन्दिर है (चित्र 8)। तमन राम शिन्ता उद्यान स्थित चार घोड़ों के रथ पर स्थित श्री राम-सीता की विश्व दुर्लभ भव्य प्रतिमा है (चित्र 9)।

इस प्रकार बाली एक विश्व दुर्लभ रामायण कालीन हिन्दू संस्कृति का केन्द्र है। इण्डोनेशिया के मुख्य द्वीपों में जावा का यव द्वीप व सुमात्रा का सुवर्ण द्वीप के रूप में वर्णन है। आज भी सुमात्रा विश्व 6 प्रमुख स्वर्ण उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। बाली द्वीप पर 60-80 लाख पर्यटक आते हैं।

 (लेखक गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कुलपति हैं)

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