पाकिस्तान में जो न हो सो कम है। पता चला है कि वहां सेना की जमीन पर शादी—ब्याह पर नाच—गाने हो रहे हैं। इतना ही नहीं, फौज की संरक्षित जमीन फिल्मों के लिए किराए पर देकर पैसे बनाए जा रहे हैं। यानी वहां की सेना ने ही देश के रक्षा अधिष्ठान का मखौल बनाकर रख दिया है। इस जानकारी पर पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट आगबबूला हो गया है। उसने इस्लामी मुल्क के रक्षा सचिव को तलब करके न सिर्फ अपनी नाराजगी व्यक्त की है बल्कि उससे इसका जवाब मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक शब्दों में रक्षा सचिव से पूछा है कि फौज की जमीन पर शादियों और सिनेमा वालों को देने के पीछे क्या है? 26 नवम्बर को तीन सदस्यों की पीठ ने इस मामले पर कड़ा रुख अपनाते हुए रक्षा विभाग से जवाब दाखिल करने को कहा है। पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गुलजार अहमद, न्यायमूर्ति काजी मोहम्मद अमीन अहमद तथा इजाजुल अहसन की पीठ ने कारोबारी मकसद के लिए फौज की जमीन दिए जाने के मामले पर सुनवाई करते हुए यह सवाल उठाया है।
पाकिस्तान के प्रसिद्ध अंग्रेजी दैनिक द डान के अनुसार, कोर्ट ने फौज की जमीन के व्यावसायिक प्रयोग के मामले में देश के रक्षा सचिव रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद हिलाल हुसैन से जवाब तलब किया है। उनसे पूछा गया है कि 'क्या सिनेमा तथा शादी के मंडपों को बनाने के पीछे कोई रक्षा से जुड़ा मकसद' है?
मुख्य न्यायाधीश का साफ कहना था कि फौज की जमीन सामरिक तथा रक्षा उद्देश्यों के लिए दी गई है न कि कारोबारी मकसद पूरे करने को, लेकिन रक्षा विभाग ने इस पर शादी और सिनेमा जैसी कारोबारी गतिविधियां शुरू कर दी हैं। क्या यह जमीन शादी के मंडप बनाने, फिल्मों तथा हाउसिंग सोसाइटियों को देने के लिए तय की गई थी? न्यायमूर्ति गुलजार अहमद ने कहा कि तमाम सरकारी आवास परियोजनाएं फौज की जमीन पर कैसे बनी हैं? इस पर रक्षा सचिव ने बस इतना ही कहा कि तय किया गया है कि आगे से ऐसा नहीं होगा। उन्होंने कहा कि इस जमीन के इस तरह उपयोग होने की र्माण और सैन्य भूमि के व्यावसायिक उपयोग की जांच करके आगे से ऐसा होने से रोका जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश का साफ कहना था कि फौज की जमीन सामरिक तथा रक्षा उद्देश्यों के लिए दी गई है न कि कारोबारी मकसद पूरे करने को, लेकिन रक्षा विभाग ने इस पर शादी और सिनेमा जैसी कारोबारी गतिविधियां शुरू कर दी हैं। क्या यह जमीन शादी के मंडप बनाने, फिल्मों तथा हाउसिंग सोसाइटियों को देने के लिए तय की गई थी?
रक्षा सचिव के ऐसा कहने पर न्यायमूर्ति अमीन का कहना था कि यह कैसे संभव हो पाएगा, इसके लिए क्या प्रक्रिया होगी। इतना ही नहीं, जज ने उनसे लिखित में स्पष्टीकरण पेश करने को कहा। उल्लेखनीय है कि मुख्य न्यायाधीश ने तीखे शब्दों में यह भी कहा कि पाकिस्तानी फौज के कर्नल और मेजर ऐसे काम कर रहे हैं जैसे वे राजा हों। उन्होंने रक्षा सचिव को निर्देश दिया है कि वे सभी फौजी छावनियों का मुआयना करके बताएं कि जमीन का उपयोग केवल रणनीतिक मकसदों के लिए किया जाएगा। न्यायमूर्ति अहमद ने उल्लेख किया कि कराची में मसरूर तथा फैजल बेस पर कारोबारी गतिविधियां जारी हैं।
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