गत 25 नवंबर को नोएडा के सेक्टर 12 स्थित भाऊराव देवरस सरस्वती विद्या मन्दिर में संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता और लेखक श्री कृष्णानन्द सागर की पुस्तक ‘विभाजनकालीन भारत के साक्षी’ का विमोचन हुआ। विमोचनकर्ता थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत। इस अवसर पर उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि इतिहास सभी को जानना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व में हुईं गलतियों से दुखी होने की जरूरत नहीं है, अपितु उनसे सीख लेने की आवश्यकता है। इससे हमें पता चलता है कि पूर्व में हमसे क्या गलतियां हुई हैं और आगे उन गलतियों को नहीं करना है। उन्होंने यह भी कहा कि गलतियों को छिपाने से उनसे मुक्ति नहीं मिलेगी।
उन्होंने कहा, “विभाजन का उपाय, उपाय नहीं था। विभाजन से न तो भारत सुखी है और न वे सुखी हैं, जिन्होंने इस्लाम के नाम पर विभाजन किया।” विभाजन की विभीषिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि इसे तब से समझना होगा जब भारत पर इस्लाम का आक्रमण हुआ और गुरु नानक देव जी ने सावधान करते हुए कहा था, यह आक्रमण देश और समाज पर है, किसी एक पूजा—पद्धति पर नहीं। उन्होंने कहा कि इस्लाम की तरह निराकार की पूजा भारत में भी होती थी किन्तु उसको भी नहीं छोड़ा गया, क्योंकि इसका पूजा से संबंध नहीं था, अपितु प्रवृत्ति से था और प्रवृत्ति यह थी कि हम ही सही हैं, बाकी सब गलत हैं और जिनको रहना है उन्हें हमारे जैसा होना पड़ेगा या वे हमारी दया पर ही जीवित रहेंगे। इस प्रवृत्ति का लगातार आक्रमण चला, लेकिन उसे हर बार मुंह की खानी पड़ी। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान और हमारी परम्परा के अनुसार राज्य किसी पूजा—पद्धति का नहीं होता, राज्य धर्म का होता है और वह धर्म सबको जोड़ने और सबकी उन्नति के लिए आवश्यक कार्य पर बल देता है।
श्री भागवत ने देश की स्वतंत्रता को लेकर संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की दूरदर्शिता के बारे में कहा कि 1930 में डॉ. हेडगेवार ने सावधान करते हुए हिन्दू समाज को संगठित होने को कहा था। श्री भागवत ने महाभारत के एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि भीष्म पितामह ने कहा था कि विभाजन कोई समाधान नहीं है, जबकि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि रणछोड़ कर मत भागो। परन्तु विभाजन के समय का हमारा नेतृत्व मैदान छोड़कर भाग गया। मुट्ठी भर लोगों को सन्तुष्ट करने के लिए हमने कई समझौते किए। राष्ट्रगान से कुछ पंक्तियां हटाईं, राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में परिवर्तन किया, परन्तु वे मुट्ठीभर लोग फिर भी सन्तुष्ट नहीं हैं।
उन्होंने प्रश्न उठाते हुए कहा कि यदि हमारे नेताओं ने पाकिस्तान की मांग ठुकरा दी होती तो क्या होता? फिर वे बोले, “कुछ नहीं होता, परन्तु तब के नेताओं को स्वयं पर विश्वास नहीं था। वे झुकते ही गए।”
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के महामंत्री श्रीराम आरावकर और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव कुमार रत्नम रहे तथा अध्यक्षता पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति शम्भूनाथ श्रीवास्तव ने की।
समारोह में उस समय तालियों की गड़गड़ाहट हुई जब श्री भागवत ने विभाजनकाल के कुछ प्रत्यक्षदर्शी कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया।
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