पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में पिछले साल करक में एक हिन्दू मंदिर को मजहबी उन्मादियों ने बुरी तरह जला दिया था। मंदिर पूरी तरह ध्वस्त हो गया था। मामला अदालत में पहुंचा तो 11 मजहबी उन्मादियों पर मुकदमा चला। कोर्ट ने सख्ती से पेश आते हुए उन सभी उन्मादियों को जुर्माना भरने को कहा जिसे मंदिर के पुनरोद्धार में लगाया जाना था। लेकिन उन कट्टरवादियों के जुर्माना न भर पाने की सूरत में उक्त पैस वहां केि हिन्दुओं ने ही भर दिया है। पाकिस्तान के दैनिक एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने यह हैरान करने वाली खबर छापी है। समाचार के अनुसार, जुर्माने की उक्त राशि आल पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के कोष से जमा कराई गई है।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने खैबर पख्तूनख्वा में उन्मादियों द्वारा तोड़े गए मंदिर के पुनर्निर्माण हेतु सभी अपराधियों पर कुल 3.3 करोड़ रुपये जुर्माना लगाते हुए उनसे इसकी वसूली का निर्देश दिया था। लेकिन स्थानीय हिन्दू समुदाय ने एक ने सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए जुर्माने की राशि अपनी तरफ से जमा करा दी।
पिछले दिनों पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद ने फिर से बनाए गए टेरी मंदिर का खुद उद्घाटन किया था और पाकिस्तान के मजहबी उन्मादी तत्वों को एक कड़ा संदेश दिया था। इस एक सदी पुराने मंदिर को पिछले साल मजहबी कट्टरपंथियों द्वारा आग लगा दी गई थी। उस वक्त न्यायमूर्ति अहमद ने ही मंदिर का पुनर्निर्माण कराने का फैसला सुनाया था।
दरअसल वहां मंदिर का फिर से निर्माण शुरू भी हो गया है और यह सरकार की तरफ से किया जा रहा है। लेकिन पता चला है कि लेकिन एक स्थानीय दबंग मुस्लिम नेता तथा उसके आदमी मंदिर को बनाने का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि 'मंदिर को और आगे बढ़ाया जा रहा है'। इतना ही नहीं, इन मजहबी कट्टरवादियों ने निर्माण में लगे ठेकेदार को कहा है कि वह मंदिर के बरामदे को सीमित करते हुए एक दीवार बनाए। जहां एक ओर मुस्लिम समुदाय ऐसा उन्मादी व्यवहार दिखा रहा है तो इसके उलट, वहां के हिंदुओं ने सौहार्द दिखाते हुए मंदिर तोड़ने के अपराधियों की तरफ से ही जुर्माना भरा है। यानी मंदिर तोड़ने के अपराध में शामिल पाए गए जमायते इस्लाम-फजल के जिला प्रमुख मौलाना मीर जकीम, रहमत सलाम तथा मौलाना शरीफुल्ला सहित अन्य आठ लोगों को जुर्माना भरने को कहा गया था जो प्रत्येक के हिसाब से 2,68000 रुपये बैठता है। अब हिन्दुओं ने ही वह जुर्माना भर दिया है।
पिछले दिनों की ही बात है जब पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद ने फिर से बनाए गए टेरी मंदिर का खुद उद्घाटन किया था और पाकिस्तान के मजहबी उन्मादी तत्वों को एक कड़ा संदेश दिया था। इस एक सदी पुराने मंदिर को पिछले साल मजहबी कट्टरपंथियों द्वारा आग लगा दी गई थी। उस वक्त न्यायमूर्ति अहमद ने ही मंदिर का पुनर्निर्माण कराने का फैसला सुनाया था। जबकि खैबर पख्तूनख्वा के करक जिले वाले श्री परमहंस जी महाराज मंदिर को दिसंबर 2020 में मजहबी कट्टरपंथियों ने तोड़ दिया था। उन्मादी भीड़ की अगुआई यहीं के कुछ मौलवी कर रहे थे। उस मामले में न्यायमूर्ति अहमद ने मंदिर का पुररोद्धार करने का हुक्म सुनाया था जिसका पैसा मंदिर पर हमला करने वालों से ही वसूला जाना था। लेकिन उनके जुर्माना न भरने पर हिन्दू संस्था ने ही अपने कोष से जुर्माना भर दिया। अब वहां के हिन्दुओं की जबान पर एक ही सवाल है कि क्या इससे मजहबी उन्मादी तत्वों को कोई समझ आएगी और वे मंदिर की तरफ अपनी जिहादी नजरें नहीं डालेंगे!
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