तीन कृषि कानूनों की वापसी से पश्चिम उत्तर प्रदेश में विपक्ष की राजनीति धराशायी होती दिख रही है। कृषि कानूनों को लेकर लोकदल, सपा, कांग्रेस, बसपा के साथ-साथ किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे टिकैत परिवार की राजनीति की दुकानें बंद होंगयीं है।
पश्चिम यूपी में भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत और लोकदल के जयंत चौधरी की राजनीति देख राजनीतिक और सामाजिक समीक्षक ये अनुमान लगा रहे थे कि किसान आंदोलन के बहाने मुस्लिम और जाट वोट फिर से एक जगह इकट्ठो होने की तैयारी में हैं। माना जा रहा था कि आंदोलन में आगे तो राकेश टिकैत थे लेकिन उनके पीछे का खेल जयंत चौधरी खेल रहे थे। जयंत चौधरी के साथ अखिलेश यादव राजनीतिक समझौता करने चले थे। दो दिन पहले उन्होंने मीडिया को इसकी जानकारी भी दे दी थी। उस समय तक अखिलेश सिंह और जयंत चौधरी को ये ही मुगालता रहा कि पीएम मोदी किसी भी सूरत में तीनों कृषि कानून वापस नहीं लेंगे और इसका फायदा वे विधानसभा चुनावों में लेंगे। राकेश टिकैत भी अपनी पिता स्व: महेंद्र टिकैत की बंजर हुई भारतीय किसान यूनियन की जमीन को दोबारा उपजाऊ बनाने में लगे थे। पीएम मोदी की घोषणा से वे भी सदमे में चले गए और कहने लगे कि अभी आंदोलन जारी रहेगा।
कांग्रेस को यहां किसान आंदोलन में कोई भाव नही मिला, प्रियंका और राहुल गांधी यहां से नदारद ही रहे। मायावती ने पश्चिम यूपी से अपने को दूर ही रखा हुआ था। पश्चिम यूपी वैसे भी गन्ना बेल्ट है और यहां कृषि कानूनों का ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला था किंतु हरियाणा पंजाब से शुरू हुआ आंदोलन इधर भी शुरू हो गया। पंजाब में आंदोलन के पीछे देश-विरोधी, कट्टरवादी और वामपंथी किसान संगठनों ने मिलकर हवा दी, जबकि हरियाणा में आंदोलन की प्रमुख वजह जाट राजनीति थी जिसे मनोहर लाल खट्टर उठने नहीं दे रहे थे। बीजेपी इस आंदोलन को धैर्य के साथ देख रही थी, 26 जनवरी को जो कुछ हुआ तब ऐसा लग रहा था कि आंदोलन समाप्त हो जाएगा। यूपी दिल्ली बॉर्डर पर बैठे राकेश टिकैत भी अपना रोते हुए बिस्तर समेट रहे थे, लेकिन अचानक अगले दिन वो फिर वहां जम गए? वो क्यों जमे? यकीनन कोई उनके पीछे खड़ा हुआ राजनीति समझा रहा था। प्रधानमंत्री मोदी ने जब ये कहा कि "किसानों के लिए हमारी तपस्या में कोई कमी रह गयी होगी, इसलिए हम ये तीनों कानून वापस ले रहे हैं और अगले संसद सत्र में हम इसको वापस लेने के सभी काम पूरे कर देंगे।" इसके बाद किसानों में पीएम मोदी के प्रति और भी सम्मान बढ़ गया।
पिछले दिनों यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिम यूपी का दौरा कर यहां के सामाजिक राजनीतिक हालात को भांप लिया था। इसके बाद बीजेपी ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक मिशन की शुरुआत कर दी। प्रधानमंत्री पूर्वांचल और बुंदेलखंड दौरे के बाद मेरठ यानि पश्चिम यूपी में आने की तैयारी में हैं। उन्होंने अपने दौरे से पहले ही तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करके विपक्षियों के राजनीतिक मंसूबों पर पानी फेर दिया। ऐसा माना जा रहा है कि पीएम मोदी की मेरठ की जनसभा अब चुनावी जनसभा होगी। इस दिन वे किसानों के लिए कुछ और घोषणाएं करके बीजेपी का चुनावी बिगुल मेरठ से ही बजायेंगे।
यूपी में योगी सरकार को सुशासन का वोट मिलने वाला है। पश्चिम यूपी के नौ जिलो की 60 विधानसभा सीटों पर किसान आंदोलन का असर दिखाई दे रहा था, जो अब समाप्त हो जाएगा। बीजेपी यहां फिर से हिंदुत्व एजेंडे पर आएगी, इसका संकेत सीएम योगी कैराना, सहरानपुर, बिजनौर की जनसभाओं में दे चुके हैं। यानी कुल मिलाकर बीजेपी अब पूरी तरह से विधानसभा चुनाव के मूड में आ गयी दिखाई देती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि तीन कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के बाद से विपक्ष खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे जैसे हालात में दिखाई दे रही है।
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