चीनी कम्युनिस्टों की नई शरारत, भारत में जिनपिंग की कम्युनिस्ट सोच का प्रचार करने के लिए हिन्दी में छापी उनकी किताब

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WEB DESK
बीजिंग की इस ताजा हरकत से यह संदेह पुष्ट होता है कि चीन के प्रचार तंत्र की ​नजर तेजी से भारत में लुप्तप्राय हो चली कम्युनिस्ट सोच का विष नए सिरे से फैलाने पर है

 आज देश के बौद्धिक क्षेत्रों में एक सवाल बहुत सुनाई दे रहा है। क्या चीन भारत में कम्युनिस्ट सोच का जहर फैलाने के नए—नए तरीकों पर काम कर रहा है? इस सवाल की वजह हैं हाल ही में चीन द्वारा छापी गई मध्य एशिया की कई भाषाओं में राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सोच वाली किताब। हैरानी की बात है कि इन भाषाओं में हिन्दी भी है, जो भारत की राष्ट्रीय भाषा है। इससे यह संदेह पुष्ट होता है कि चीन के प्रचार तंत्र की ​नजर तेजी से भारत में लुप्तप्राय हो चली कम्युनिस्ट सोच का विष नए सिरे से फैलाने पर है।  

जिनपिंग की सोच को दर्शाने वाली किताब का हिंदी भाषा में प्रकाशित होने के पीछे यह आशंका उपजना स्वाभाविक है कि चीन की मंशा भारत में अपनी कम्युनिस्ट सोच का प्रसार करना ही है। एक बात और पता चली है कि यह किताब सिर्फ हिन्दी में ही नहीं, बल्कि मध्य एशिया में बोली जाने वाली कई दूसरी भाषाओं में भी छापा गया है। इस किताब में चीन में सरकार चलाने के बारे में राष्ट्रपति जिनपिंग की सोच पर जोर दिया गया है और उसकी 'खूबियां' गिनाई गई हैं। यह समाचार दिया है चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने। उसकी रिपोर्ट है कि किताब ‘शी जिनपिंग: द गवर्नेंस ऑफ चाइना’ का प्रथम खंड हिंदी, पश्तो, सिंहली, दारी तथा उज्बेकी भाषाओं में प्रकाशित किया गया है। 

शिन्हुआ के अनुसार, शंघाई सहयोग संगठन पिछले दिनों एक कार्यक्रम में यह जानकारी साझा की गई थी। गत कई साल से यह किताब मंदारिन यानी चीनी भाषा के अलावा अंग्रेजी तथा कुछ अन्य भाषाओं में प्रकाशित होती आई है। शी जिनपिंन के 2012 में राष्ट्रपति बनने के बाद से, 68 साल के शी माओत्से तुंग की हही तरह सर्वोच्च नेता बन चुके हैं। माओ सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के संस्थापक थे,तो जिनपिंग ने नए दौर में चीन की विशेषताओं के साथ समाजवाद नाम एक नए सिद्धांत की पैरवी की है।

पिछले हफ्ते बीजिंग में कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं की बैठक के दौरान जिनपिंग की सत्ता पर पकड़ और मजबूत बनाने की कवायद पूरी की गई है। माना जा रहा है कि अगले वर्ष जिनपिंग राष्ट्रपति के नाते तीसरी बार पद पर बैठ सकते हैं। चीनी इतिहासकार जर्मी आर. बर्मे का कहना है कि सीपीसी की बैठक में कम्युनिस्ट पार्टी और शी जिनपिंग को एक लंबे समय तक सत्ता में बनाए रखने की चर्चा हुई। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पूर्व में हुए विकास को ध्यान में रखकर आगे के लिए समर्थन का आधार बढ़ाना चाहती है। उक्त बैठक में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव भी पारित किया गया था। इसे इतिहास में हुए कामों से कम, आगे के नेतृत्व से जोड़कर ही देखा जा रहा है।

जिनपिंग की सोच को दर्शाने वाली किताब का हिंदी भाषा में प्रकाशित होने के पीछे यह आशंका उपजना स्वाभाविक है कि चीन की मंशा भारत में अपनी कम्युनिस्ट सोच का प्रसार करना ही है। एक बात और पता चली है कि यह किताब सिर्फ हिन्दी में ही नहीं, बल्कि मध्य एशिया में बोली जाने वाली कई दूसरी भाषाओं में भी छापा गया है।

उल्लेखनीय है जिनपिंग ने दुनिया के सामने खुद को चीन का एकछत्र नेता साबित करने के लिए जरूरी हर इंतजाम किया है। उन्होंने दुनिया के सामने चीन को ताकतवर देश दिखाने का भरसक प्रयास किया है और इस वजह से उनके देश में उनकी लोकप्रियता के ग्राफ में बढ़ोत्तरी देखने में आई है। लेकिन शी के कुछ विरोधी नेता कोरोना महामारी के कुप्रबंधन तथा तल्ख होते अमेरिका के साथ संबंधों आदि मुद्दों पर जिनपिंग पर निशाना साधे रह सकते हैं।
 

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