कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद इसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति की गोपनीय रिपोर्ट का अब कोई मतलब नहीं रह गया है। इसलिए इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए। यह बात समिति के सदस्य अनिल घनवट ने कही है। उन्होंने कृषि कानून वापस लेने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि इससे सुधार को गहरा आघात लगा है।
एक वेबसाइट ने घनवट के हवाले से कहा है कि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से समिति की गोपनीय रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का अनुरोध किया है, जो उन्होंने दी थी। उनका कहना है कि चूंकि कानून रद्द हो गया है तो उस रिपोर्ट को गोपनीय रखने का कोई मतलब नहीं है। अगर रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया तो वे स्वयं उसे सबके सामने लाएंगे ताकि लोग उसके बारे में जानें और उस पर चर्चा करें। बकौल अनिल घनवट, 22 नवंबर को होने वाली समिति के सदस्यों की बैठक में रिपोर्ट को सार्वजनिक करने पर चर्चा होगी। यदि बैठक में सहमति नहीं बनी तब भी वे इसे सार्वजनिक कर देंगे। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि इस बाबत वे पहले विशेषज्ञों से कानूनी सलाह लेंगे कि ऐसा करने से शीर्ष अदालत की अवमानना तो नहीं होगी।
बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा पारित तीनों कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गई थी। इस पर सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने 12 जनवरी को तीनों कानूनों को लागू करने पर अंतरिम रोक लगा दी थी। साथ ही, विशेषज्ञों की एक समिति भी गठित की थी। अदालत ने समिति से संबंधित पक्षकारों और केंद्र सरकार से बात करके रिपोर्ट देने को कहा था। समिति ने 19 मार्च को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। यह मामला अभी लंबित है।
टिप्पणियाँ