संत बलबीर सिंह सींचेवाल
गुरु नानकदेव जी ने जो उपदेश और संदेश दिए वे किसी एक वर्ग या देश के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए हैं। ये संदेश आज भी उतने ही सार्थक और सारगर्भित हैं जितने कि पांच सदी पहले थे। गुरु जी ने तत्कालीन जालिम शासकों को ललकारा। उस समय भी भ्रष्टाचार का बोलबाला था तो गुरु जी ने यहां तक कह दिया था,
काजी होए रिश्वती वड्डी लै के हक गवाई
राजे सींह मुकदम कुत्ते
कलि काती राजे कसाई
उस समय शासकों के समक्ष अनेक चुनौतियां थीं। गुरु जी शासकों को जहां ललकारते रहे, वहीं यह भी कहते रहे कि —
नीच अंदर नीच जात।
नानक तिन के संग।
भाव यह कि गुरु साहिब घोषित तौर पर गरीब, प्रताड़ित लोगों के साथ खड़े होने की वकालत करते हैं। उनका यह संदेश प्रताड़ित लोगों में नई जान फूंकने वाला था। जो लोग धनवान और बलशाली थे, उनको भी गुरु जी ने झिंझोड़ा और कहा-
जे रत पीवहि माणसा तिन किउं निरमल चीतु।
या
पापां बाजहु होवे नाही।
उनकी बानी आज भी उतनी ही सार्थक है जितनी कि उस समय थी। गुरु जी का सबसे बड़ा फलसफा (सिद्धांत) कीरत अर्थात् परिश्रम करने का था। जीवन के अंतिम समय में उन्होंने कीरत की, किसानी की। परिश्रम के प्रति उनकी प्राथमिकता के कारण ही श्रमिक वर्ग की कीमत बढ़नी शुरू हुई। उनके इसी सिद्धांत को आगे सभी पातशाहियों (गुरुओं) ने अपने जीवन व्यवहार में ढाला। गुरु जी के इस फलसफे को समझने के बाद यह बात सामने आती है कि उन्होंने न केवल इस धरती, बल्कि पूरे ब्रह्माण्ड की बात की है।
1969 में सुल्तानपुर लोधी में बाबा जी का 500वां प्रकाश पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया था और 50 साल के बाद उस पर्व को दोबारा धूमधाम से मनाया गया। वैसे यह समीक्षा का समय है कि हमने गुरु जी की शिक्षाओं को कितना अपने जीवन में ढाला और कितना विस्मृत किया। भाव यह कि हम बानी पढ़ते व गाते तो हैं परंतु इसे वास्तविक जीवन में उतारने का कम ही प्रयास करते हैं और इस काम में न चाहते हुए भी कहीं न कहीं कमी रह जाती है।
50 साल पहले हम बैलगाड़िय़ों पर सफर करते थे, आज सुविधाजनक गाड़िय़ां आ गई हैं। मोबाइल से हम बैठे-बैठे दुनिया के किसी भी हिस्से में बैठे व्यक्ति से न केवल बात कर सकते हैं, बल्कि उनका दर्शन-दीदार भी कर सकते हैं, लेकिन 50 साल पहले लोगों के मन में शांति और संतोष काफी था, जो आज लगभग नदारद है। मुनाफा या अधिक से अधिक धन कमाने की प्रतिस्पर्धा निरंतर बढ़ती जा रही है। इन परिस्थितियों में गुरु जी की शिक्षाएं ही हमारा मार्गदर्शन कर सकती हैं और इन परिस्थितियों से निकाल सकती हैं।
इस लालच के वशीभूत होकर ही मानव अपने प्राकृतिक संसाधनों का बुरी तरह से दोहन कर रहा है और इस तरह वह न केवल अपना, बल्कि अपनी संतानों का भविष्य भी खतरे में डाल रहा है। ज्ञातव्य है कि सुल्तानपुर लोधी में काली बेई (नदी) में स्नान के दौरान ही गुरु नानकदेव जी को ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई थी। लोगों ने इस नदी को ही दूषित कर दिया। इस पवित्र नदी को संगत ने 19 साल के कठिन परिश्रम से साफ किया है। गुरु जी ने कहा है,
पवणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु॥
दिवसु राति दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगतु॥
इन पंक्तियों के जरिए नानकदेव जी ने दुनिया को पहले ही ‘ग्लोबल वार्मिंग’ जैसे खतरों से सचेत कर दिया और इन परिस्थितियों से निकलने का मार्ग भी दिखाया। सकल जगत कह कर गुरु जी ने यह भी संदेश दिया कि वातावरण के साथ इनसान का कैसा संबंध और व्यवहार होना चाहिए। गुरु जी का यह संदेश जितना छोटा उतना ही सारगर्भित है और हमें इसको अपने जीवन का हिस्सा बनाना ही पड़ेगा। गुरु जी की बानी सरल, सुलभ और सबके समझ आने वाली है।
इसके अतिरिक्त गुरु जी ने अपनी शिक्षाओं में महिलाओं को उच्च स्थान दिया, लोगों को सादा जीवन जीने का संदेश दिया। गुरु जी ने पाखण्ड व वहमों से दूर रहने का जो संदेश दिया, वह आज पहले से अधिक सार्थक जान पड़ता है। गुरु जी ने लंगर-पंगत प्रथा आरंभ कर देश, समाज में जातिवाद की दीवारों को गिराने का सफल प्रयास किया। उन्होंने अपनी यात्राओं से संदेश दिया कि दुनिया में सभी वर्गों और समाजों से संपर्क करना व उनसे संवाद स्थापित करना बहुत जरूरी है।
भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में करतारपुर गलियारे को लेकर एक सार्थक परिवर्तन देखने को मिला है। करतारपुर गलियारा खुल चुका है जो दोनों देशों के बीच सेतु का काम कर सकता है। गुरु जी ने सांझीवालता का जो संदेश दिया वह दोनों देशों के लिए मार्गदर्शक बन सकता है। हम गुरु जी के विचारों को अमली रूप देकर समाज को नई दिशा की ओर अग्रसर कर सकते हैं। गुरु जी की शिक्षाएं और संदेश समाज को बड़े से बड़े संकट से निकालने में सक्षम हैं।
(पद्मश्री संत सींचेवाल जलवायु प्रदूषण को दूर करने में जुटी ऐसी विभूति हैं, जिन्होंने उस कालीबेई नदी को पुनर्जीवित किया है जो सिख समुदाय में विशेष महत्व रखती है।)
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