नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार…

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जिस समय गुरुनानक देव जी का जन्म हुआ, उस समय देश-समाज की स्थितियां बहुत ही खराब थीं। समाज जात-पांत, ऊंच-नीच सहित अनेक भेदभाव में बंटा पड़ा था। लेकिन गुरु नानक देव जी ने अपनी शिक्षा के माध्यम से लोगों को इससे उबारा

जसबीर सिंह महे

मध्यकालीन युग के आध्यात्मिक काल में  दस गुरु परंपरा के प्रथम  गुरु नानक देव जी का जब जन्म हुआ तब हिन्दुस्तान आंतरिक व बाहरी चुनौतियों से जूझ रहा था। समाज की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। समाज कई भागों में बंटा हुआ था। इसलिए बाहरी आक्रांताओं लिए इस देश पर हमला कर यहां से धन-संपदा को लूट कर ले जाना सुलभ बना हुआ था। वे थोड़ी संख्या में आकर भी करोड़ों की जनसंख्या वाले देश को आसानी से बिना अपना कोई नुकसान करवाये लूटकर ले जाते थे। देश के धार्मिक स्थलों को रौंदना, धार्मिक आस्थाओं को तोड़ना, मानो उनके लिए खेल सा बन गया था। हिन्दुस्तान की स्थिति इतनी दयनीय थी कि देशवासी यह सब कुछ अपनी आंखों के सामने होता हुआ देख रहे थे। क्योंकि आमजन कई भागों में बंटकर स्वार्थी हो गए थे। व्यक्तिगत एवं पारिवारिक हित के अलावा सोचने की शक्ति क्षीण हो चुकी थी। देशवासी अपने गौरवशाली अतीत को भूल कर निरीह पशु की तरह सबकुछ होता देखकर भी आपस में लड़कर मर रहे थे।

 यह वह समय था जब महिलाओं की स्थिति भी बड़ी दयनीय थी। परिवार में लड़की का जन्म लेना भी अपशगुन माना जाता था। कई बार तो लड़कियों को जन्म होते ही मार भी दिया जाता था। लड़कियों को लड़कों के बराबर मान-समान नहीं दिया जाता था। घर से बाहर निकलने पर भी पाबंदी होती थी। लड़कों को पढ़ाना लिखाना और लड़कियों को घर के कामकाज तक सीमित रखना यह मानो रीतिरिवाज बन गये थे।

पटना में एक प्रसिद्ध स्वर्णकार सालिसराय (बाएं) को एक अनूठा रत्न दिखाया था भाई मरदाना (दाएं) ने। उसी अवसर का प्रतीकात्मक चित्र

मध्ययुगीन काल में देश के लगभग सभी हिस्सों में संतों व धर्म गुरुओं द्वारा समाज को समरस करने के प्रयास चल रहे थे। दक्षिण में नारायण स्वामी, स्वामी विद्यारण्य, महाराष्ट्र में समर्थगुरु स्वामी रामदास, आन्ध्र के संत वेमना जी, उत्तर प्रदेश में रामानंद, कबीर दास, संत रविदास आदि अनेकानेक संतों ने इस पावन कार्य में अपना योगदान दिया। उसी कड़ी में सन् 1469 में गुरु नानकदेव जी का अवतरण हुआ।  भाई गुरदास जी ने लिखा है-

‘सतगुरु नानक परगटिया मिटी धुंध जग चाणन होआ,
जिउकर सूरज निकलिया तारे छपि अंधेरू पलोआ’

यह धुंध जिसका जिक्र भाई गुरदास जी इन पंक्तियों में करते हैं, वह धुंध अंधविश्वास, असहिष्णुता, निराशा, पाप, अनाचार, अत्याचार की थी, जिसने हिंदुस्तान को बड़ी बुरी तरह से जकड़ रखा था। लेकिन गुरु जी के प्रयासों से अंधेरा दूर हुआ। ज्ञान, स्नेह, सांत्वना व स्वाभिमान वातावरण दिखाई दिया।
श्री गुरु नानकदेव जी महाराज ने अपने प्रारंभिक काल में ही सामाजिक बुराइयों पर चोट करना शुरू किया। उन्होंने स्त्रियों को सम्मान देते हुए स्त्री का पुरुष के जीवन में कितना महत्व है उसे बताया। उन्होंने बताया कि पुरुष का जन्म स्त्री से ही होता है। वह उसी से शादी, उसी से दोस्ती कर सारा जीवन गुजारता है। स्त्री की मृत्यु होने पर फिर से शादी करता है। ऐसे में जो पुरुष स्त्री के बिना एक पल नहीं रह सकता, अगर वह अच्छा है तो स्त्री कैसे बुरी हो सकती है। गुरु जी ने तो यहां तक कहा कि वह राजा से लेकर एक सामान्य व्यक्ति को जन्म देती है। इसलिए उसे कभी गलत नहीं बोलना चाहिए।
 

भंडि जंमीऐ भंडि निमीऐ भंडि मंगण वीआहु।।
भंडहु होवै दोस्ती भंडहु चलै राहु ।।
भंडु मुआ भंडु भालीऐ भंडि होवै बंधानु ।।
सो किउ मंदा आखीऐ जितु जंमहि राजान।। 473

स्त्री से स्त्री पैदा होती है। स्त्री के बिना उत्पत्ति असंभव है। नानक कहते हैं कि वह परमपिता भी स्त्री के बिना हो सकता है।

भंडहु ही भंडु ऊपजै भंडै बाझु न कोइ।।
नानक भंडै बाहरा एको सचा सोइ ।। 473

वंचित समाज के प्रति श्री गुरु नानकदेव जी की पीड़ा उनकी वाणी में स्पष्ट झलकती है। वे कहते हैं कि परमपिता की कृपा वहीं बरसती है, जहां गरीबों की सेवा होती है। इसलिए मैं अमीरों की बराबरी की नकल करने की अपेक्षा वंचित वर्गों के लोगों की संगत करना चाहता हूं

श्री गुरु ग्रंथ साहिब में सभी गुरु साहिबान ने अपने आप को परमसत्ता को समर्पित करते हुए स्त्री ही माना है क्योंकि अपने मालिक (पति) के प्रति समर्पण भाव की पराकाष्ठा स्त्री की ही है। इसीलिए गुरु नानक देव जी की वाणी में चाहें स्त्री के प्रति एक ही शब्द है पर इस एक शब्द में भी उन्होंने स्त्री के महत्व को पूरी तरह से दर्शा दिया है। वंचित समाज के प्रति श्री गुरु जी की पीड़ा उनकी वाणी में स्पष्ट झलकती है। वे कहते हैं कि परमपिता की कृपा वहीं बरसती है, जहां गरीबों की सेवा होती है। इसलिए मैं अमीरों की बराबरी की नकल करने की अपेक्षा वंचित वर्गों के लोगों की संगत करना चाहता हूं।

गुरु साहिब का आदेश है कि मनुष्य को जन्म के आधार पर नहीं उसके कर्म के आधार पर परखना चाहिए। मनुष्य जैसे कर्म करता है, उसे उस आधार पर ही देखना चाहिए। चाहें उसका जन्म किसी भी कुल में क्यों न हुआ हो। कर्म ही मनुष्य की असली पहचान है।

जाति जनमु नह पूछीअ‍ै सच कर लेहु बताइ
सा जाति सा पति है जेहे करम कमाइ।।1330

किसी व्यक्ति को जाति का अंहकार नहीं करना चाहि, क्योंकि किस जाति में जन्म होगा, यह किसी के बस की बात नहीं है। इसीलिए श्री  गुरु नानक देव जी ने ऐसे व्यक्तियों को मूर्ख-गंवार कहा है। ऐसे अहंकार के कारण समाज में बहुत कमियां आती हैं, जिससे समाज की हानि होती है।

जाति का गरबु न कर मूरख गवारा ।।
इस गरब ते चलहि बहुतु विकारा ।। 1127

श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि सब की जन्म प्रक्रिया भी एक ही है। तीनों लोकों में एक ही परमात्मा का नूर है, जिससे सब का जीवन चलता है। ऐसे में अगर हम सब को ऊंचा देखेंगे तो हमें कोई भी नीचा दिखाई नहीं देगा।

सभु को ऊंचा आखीऐ नीच न दीसै कोइ ।।
इकनै भांडे साजिऔ इकु चानणु तिहु लोइ।।62

गुरु साहिब कहते है कि सब उस परमपिता के भेजे हुए इस मातलोक में आए है। सब में एक ही ज्योति है, जो परमपिता के प्रकाशित करने पर ही प्रकाशित होती है।

पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब गुरुद्वारा
श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि सब की जन्म प्रक्रिया एक ही है। तीनों लोकों में एक ही परमात्मा का नूर है, जिससे सब का जीवन चलता है। ऐसे में अगर हम सब को ऊंचा देखेंगे तो हमें कोई भी नीचा दिखाई नहीं देगा

सभ महि जोति जोति है सोइ ।।
तिस दै चानणि सभ महि चानणु होइ।।
गुर साखी जोति परगट होइ ।। 663

श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि सच्चा नाम मेरी जाति व सम्मान है। सच का प्यार ही मेरा कर्मकांड, ईमान और संयम है। परमपिता जिसे बख्श देता है उससे कोई कुछ नहीं पूछता। द्वैत भाव नाश कर वही परमात्मा सब को एक करता है। हर मनुष्य को सच का मार्ग अपनाना चाहिए। जात-पात, सब से ऊपर उठकर अपने रुतबे को ऊंचा उठाने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि अंतिम समय में सच ही साथ देने वाला है।

हमरी जाति पति सचु नाउ ।।
करम धरम संजमु सत भाउ ।।
नानक बख्शे पूछ न होइ ।।
दूजा मेटे ऐको सोइ ।। 353

बहरहाल, गुरु नानकदेव जी की प्रत्येक शिक्षा समाज को जोड़कर न केवल समाज को समरस बनाती है बल्कि मनुष्य का जीवन किसलिए हुआ, उसका परिचय कराती है। आज देश-दुनिया अनेक झंझावातों में फंसी पड़ी है। तब गुरु नानक देव जी की बताई शिक्षा की जरूरत महसूस होती है। यही शिक्षा सभी को एक करते हुए, परमपिता परश्मेश्वर की कृपा प्रदान करा सकती है।

(लेखक राष्ट्रीय सिख संगत के सह संगठन मंत्री हैं।)

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