पद्म सम्मान पहले भी दिए जाते थे। 1954 में इनकी स्थापना की गई थी। लेकिन वे ज्यादातर सरकारी समारोह में अभिजात्य वर्ग तक सीमित थे। वही पद्म सम्मान अभी भी दिए जा रहे हैं- लेकिन इन सम्मान को ‘जनता के पद्म’ में बदलने के लिए सरकार ने जो प्रतिबद्धता और संकल्प दिखाया था, उसका असर साफ नजर आ रहा है। केवल नीयत का फर्क है। और जो सम्मान सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों के इर्द-गिर्द मंडराने वाले या उनके जानने वालों तक सीमित रहे थे, वे अब आम नागरिक तक पहुंच गए हैं। पहले पद्म सम्मान की सिर्फ खबरें छपती थीं, अब देश के नागरिकों में चर्चा का विषय बनते हैं। लोग उन पर बात करते हैं। समाज के हाशि.ए पर रहकर भी असाधारण काम करने वाले लोगों को अब नोटिस किया जा रहा है। वे पूरे राष्ट्र में वास्तविक नायकों के रूप में उभर रहे हैं।
अभी 2020 के लिए 141 और 2021 के लिए 119 लोगों को पद्म सम्मान से सम्मानित किया गया है। 2020 के लिए पद्म विभूषण से 7, पद्मभूषण से 16 और पद्मश्री से 118 लोगों को सम्मानित किया गया, जबकि 2021 के लिए 7 लोगों को पद्म विभूषण, 10 को पद्म भूषण और 102 को पद्मश्री सम्मान प्रदान किए गए। सम्मान वितरण समारोह के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा,‘‘मुझे यह देख कर खुशी हुई कि जमीनी स्तर पर उपलब्धि हासिल करने वालों को जनता की भलाई के लिए उनके अनुकरणीय प्रयासों के लिए पहचाना जा रहा है। उन सभी को बधाई।’’ प्रधानमंत्री ने लोगों से आग्रह किया कि वे प्रत्येक सम्मानित व्यक्ति के बारे में जानें और उनसे प्रेरित हों।
सताई जा रही महिलाओं की मदद
झारखंड के महतो सरीकेला जिले के गम्हरिया प्रखंड में बिरबांस पंचायत है। वही के गांव भोलाडीह की रहने वाली हैं छूटनी देवी। आशा (एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस) के सौजन्य से वे महिलाओं के लिए पुनर्वास केंद्र चलाती हैं। उन्हें समाज के लिए किए गए बेहतरीन कार्यों हेतु 2021 का पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया है। छूटनी देवी का संगठन उन महिलाओं की सहायता करता है जिन्हें समाज में डायन बताकर प्रताड़ित किया जाता है। वे तमाम ऐसी अन्य सामाजिक कुरीतियों के कारण सताई गई महिलाओं की मदद करती हैं। उन्हें या उनके संगठन के लोगों को जैसे ही यह सूचना मिलती है कि कहीं किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है- वे अपनी टीम के साथ वहां पहुंच जाती हैं और महिला को प्रताड़ित करने वालों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई करवाती हैं। छूटनी देवी स्वयं भी समाज द्वारा बेवजह प्रताड़ित की गर्इं। फिर उन्होंने ऐसी तमाम महिलाओं की मदद का संकल्प लिया। 1995 की बात है। एक तांत्रिक के कहने पर छूटनी देवी को डायन मान लिया गया था। इसके बाद उन्हें मल खिलाने और मूत्र पिलाने की कोशिश की गई। पेड़ से बांधकर पिटाई की गई। वे किसी तरह अपनी जान बचा जंगलों की ओर भाग निकली। उसके बाद वे ज्यादती करने वालों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने पुलिस के पास गई तो पुलिस ने ना रिपोर्ट लिखी, ना उनकी कुछ मदद की। तभी से उन्होंने ठान लिया कि वे तमाम प्रताड़ित महिलाओं की मदद करेंगी।
लावारिस लाशों का कद्रदान
2020 के पद्मश्री सम्मान से सम्मानित अयोध्या के मुहम्मद शरीफ पिछले 25 साल में 25 हजार से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। इस बुजुर्ग समाजसेवी को अयोध्या और आसपास लावारिस लाशों के कद्रदान के तौर पर जाना जाता है। उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे अपना इलाज भी ठीक से करा सकें। बेटा गाड़ी चला कर परिवार को पालता है। स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता जिसकी वजह से परिवार काफी परेशान है। कुछ समय पहले तो उनकी हालत काफी खराब हो गई थी। परिवार के पास बस इतने ही पैसे बचे थे कि वह उनका इलाज करा सके। मुहम्मद शरीफ साइकिल मरम्मत की दुकान चलाते हैं। छोटे बेटे की मृत्यु के बाद वे लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने में इस तरह खो गए कि उनकी दुकान लगभग बंद होने की स्थिति में आ गई। गृहस्थी की गाड़ी भी डगमग हो चली। तीन बेटे हैं। एक ने साइकिल मरम्मत की दुकान खोली। दूसरे ने मोटरसाइकिलों की मरम्मत करने का काम शुरू किया। तीसरा बेटा ड्राइवर का काम करने लगा। इतना इंतजाम हो गया कि दो वक्त की रोटी और रहने के लिए अति सामान्य सी व्यवस्था बन गई। इस बीच मुहम्मद शरीफ अपने घरेलू जिम्मेदारियों से ऊपर उठकर समाज सेवा के काम में जुट गए और लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराते रहे।
खुद निरक्षर पर संकल्प दूसरों को शिक्षित करने का
कर्नाटक में फल बेच कर शिक्षा की अलख जगाने वाले हरे काला हजाब्बा को कुछ समय पहले तक हम में से शायद ही कोई जानता था। बिल्कुल पढ़े-लिखे नहीं हैं। बेहद मामूली पृष्ठभूमि से आते हैं। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने ऐसा काम किया है, जो उन्हें असाधारण लोगों की पंक्ति में खड़ा करता है और राष्ट्र के वास्तविक नायकों में शामिल करता है। उन्हें 2020 के पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। जैसे कबीर कहते हैं कि ‘मसि कागद छुओ नहीं’- इसके बावजूद वे इतने बड़े समाज सुधारक और ज्ञानी बने। हरे काला भी स्कूल नहीं गए। कोई पढ़ाई-लिखाई नहीं। बिल्कुल निरक्षर। फिर भी शिक्षा की अहमियत को पहचाना। उनके भीतर यह जुनून जागा कि वे भले नहीं पढ़ पाए लेकिन ऐसा कुछ करें कि दूसरे लोग- जो अभाव के कारण पढ़ने से वंचित रह जाते हैं- शिक्षा प्राप्त कर सकें। उनकी खुद की बहुत अच्छी स्थिति नहीं थी। इस पर भी उन्होंने अपनी कुल जमा पूंजी से बेंगलुरू में अपने गांव के पास एक स्कूल खोला। सन् 2000 से उनके गांव में यह स्कूल चल रहा है। उन्हें उम्मीद तक नहीं रही होगी कि कभी देश उनके कार्य को जानेगा-समझेगा और सम्मानित करेगा।
कभी थी हाथों में झाड़ू…अब जादू
दुलारी देवी को 2021 का पद्मश्री सम्मान मिला है। बिहार के मधुबनी जिले के रांटी गांव की रहने वाली हैं। एक बेहद गरीब मल्लाह परिवार में अभावों और गरीबी के बीच जन्म हुआ। 12 साल की हुई तो माता-पिता ने शादी कर दी। कुछ ऐसा हुआ कि 7 साल बाद ही ससुराल से मायके आ गर्इं। उनकी 6 महीने की बेटी नहीं रही थी। उसका काम अलग से था। पढ़ी-लिखी भी नहीं थीं कि कोई सामान्य-सा रोजगार या नौकरी कर भरण-पोषण कर पातीं। लेकिन एक जिजीविषा थी। उनके संघर्ष की दास्तान ऐसी है कि पुरुष तक हार मान जाएं। उन्होंने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया। दुलारी देवी की उम्र इस समय 54 साल है। ससुराल से मायके आकर जिंदगी की गाड़ी तो किसी तरह आगे चलानी ही थी। उन्होंने जीवन के लिए संघर्ष शुरू किया। कुछ घरों में झाड़ू-पोंछा लगाने का काम मिल गया जिससे कुछ आमदनी हो जाती थी। लेकिन किस्मत किसी को किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दे, यह कोई नहीं जानता। अचानक दुलारी ने हाथ में पोंछे की जगह कूंची पकड़ ली। हाथों में कमाल का जादू। भले वे लिख-पढ़ नहीं पाती थीं लेकिन चित्र गजब के बनाती थीं। मधुबनी की यह बेटी संघर्षों की जीती जागती गाथा है। दुलारी अब ‘पद्मश्री दुलारी’ हैं। वे सात हजार से ज्यादा मिथिला पेंटिंग बना चुकी हैं।
सेवा को समर्पित जीवन
समाज में सद्भाव और शैक्षणिक जागृति हेतु समर्पित उडुपी के पेजावर मठ के पूर्व प्रमुख स्वामी श्री विश्वेश तीर्थ जी को मरणोपरांत 2021 के पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें अध्यात्म के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्य के लिए देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया है। उडुपी के पेजावर मठ की गुरु परंपरा के 33वें गुरु श्री विश्वेश तीर्थ स्वामी का जन्म 27 अप्रैल, 1931 को पुट्टुर के रामाकुंज में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 1938 में 7 वर्ष की आयु में ही उन्होंने संन्यास धारण किया था। स्वामी जी ने कई शैक्षणिक और सामाजिक संस्थाओं की स्थापना की। पूरे देश में उन्होंने कई ऐसे धर्मस्थलों और मठों का निर्माण किया जो तीर्थ यात्रियों की सेवा में लगे हैं। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से लेकर गोरक्षा जैसे मुद्दों का उन्होंने भरपूर समर्थन किया।
बचपन से ही लगी थी लगन
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध सूफी गायक मदन चौहान को 2020 के पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। मदन चौहान का जन्म देश के स्वतंत्र होने के 2 महीने बाद 15 अक्तूबर, 1947 को हुआ। संगीत से उनका लगाव बचपन से ही था। उन्होंने खुद बताया कि जब वे केवल 10 साल के थे, तभी से वे कुछ बजाना चाहते थे। जब और कुछ नहीं मिलता था तो तब वे घर में टीन का डिब्बा बजाते थे। धीरे-धीरे उनमें संगीत का शौक जागता गया। उन्होंने कठिन साधना की और पिछले 55 साल से तबले और हारमोनियम के साथ मंच पर प्रस्तुति दे रहे हैं। उनके सूफी गायक बनने के संकेत संभवत: बचपन से ही प्रकट होने लगे थे। बचपन से ही साधु-संतों के भजन गाना उन्हें बहुत प्रिय था। पंडित कन्हैयालाल भट्ट उनके संगीत के प्रारंभिक गुरु थे।
मुश्किलों के पहाड़ झेले पर टूटी नहीं
कर्नाटक के बेल्लारी जिले के कल्लू कम्बा में जन्मी ट्रांसजेंडर मंझम्मा जोगाठी को 2021 के पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। राष्ट्रपति भवन में वे सम्मान लेने जैसे ही राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के पास पहुंची, वहां उन्होंने नजर उतारने की रस्म अदा की। इसका पूरे हाल में तालियों से स्वागत किया गया। लोक नृत्यांगना मंझम्मा का कहना है कि ट्रांसजेंडर होने के नाते अपनी पहचान बनाने में उन्हें तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने कई कलाओं में महारत हासिल की। अपने को मजबूत बनाया और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद की। उनका असली नाम मंजूनाथ शेट्टी है। वे कर्नाटक जनपद अकादमी की पहली ट्रांसजेंडर अध्यक्ष हैं।
जंगलों की ‘इनसाइक्लोपीडिया’
कर्नाटक की 72 वर्षीया तुलसी गौड़ा को पर्यावरण में अहम योगदान देने के लिए 2021 के पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। सम्मान लेने वे अपने पारंपरिक परिधान और नंगे पैर पहुंची थीं। इस दौरान जब उनका सामना प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से हुआ तो दोनों हस्तियों ने उन्हें नमस्कार किया। छह दशक से पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में शामिल तुलसी अब तक करीब 30,000 से अधिक पौधे लगा चुकी हैं। हलक्की जनजाति में जन्मी तुलसी को घर में बेहद गरीबी के कारण औपचारिक शिक्षा तक नसीब नहीं हो सकी। उन्हें बचपन से ही पेड़-पौधों से काफी लगाव था। वे ज्यादा समय जंगलों में ही बिताती थीं। धीरे-धीरे पेड़-पौधों और जड़ी-बूटियों की विविध प्रजातियों की जानकारी हो गई। उसी ज्ञान के कारण आज उन्हें ‘जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया’ के रूप में जाना जाता है। 12 साल की उम्र से उन्होंने हजारों पेड़ लगाए और अपना उनका ख्याल रखते हुए उन्हें बड़ा किया। वे वही काम अब भी जारी रखे हैं।
‘संस्कृत’ के साधक
संस्कृत के प्रकांड विद्वान और काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष आचार्य रामयत्न शुक्ल को शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए पद्मश्री से सम्मान किया गया है। इस समय उनकी आयु 89 वर्ष है और वे अभी भी नई पीढ़ी को संस्कृत से जोड़ने के लिए काम में संलग्न हैं। वे युवाओं को संस्कृत और वैदिक विज्ञान की शिक्षा मुफ्त में देते हैं। आचार्य रामयत्न शुक्ल ने अष्टाध्याय की वीडियो रिकॉर्डिंग तैयार करवाई है। इस वीडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से वे संस्कृत के लुप्त होते जा रहे ज्ञान को नई पीढ़ी तक सहज रूप में पहुंचा रहे हैं। 1932 में जन्मे शुक्ल की बचपन से ही संस्कृत में बहुत रुचि थी। उन्होंने स्वामी करपात्री जी महाराज और स्वामी चेतन भारती से वेदांत शास्त्र व पंडित प्रवर हरिराम शुक्ल से मीमांसा शास्त्र और पंडित राम चंद्र शास्त्री से दर्शनशास्त्र योग की शिक्षा ली थी।
काम को मिला मान
भारत में पूर्व उच्चायुक्त मुअज्जम अली और 1971 युद्ध के नायक कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर पद्मश्री सम्मान पाने वाले पहले बांग्लादेशी नागरिक हैं। मुअज्जम अली को मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। भारत और बांग्लादेश, बांग्लादेश की आजादी की 50वीं वर्षगांठ और भारत के साथ राजनयिक संबंधों के 50वें वर्ष के साथ-साथ शेख मुजीबुर्र रहमान की शताब्दी मना रहे हैं। पश्चिमी पाकिस्तान की सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर किए जा रहे जुल्म के खिलाफ भारत ने 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना पर हमला बोला था। इस युद्ध में भारत ने पश्चिमी पाकिस्तान को
हरा दिया था, जिसके बाद पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांगलादेश बना।
किसको दिए जाते पद्म सम्मान?पद्म विभूषण: यह सम्मान असाधारण और विशिष्ट सेवाओं के लिए दिया जाता है। भारत रत्न के बाद दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। पद्म भूषण: यह सम्मान उच्च-क्रम की प्रतिष्ठित सेवा के लिए दिया जाता है। यह तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। पद्मश्री: प्रतिष्ठित सेवाओं के लिए दिया जाने वाला यह सम्मान चौथा उच्चतम नागरिक सम्मान है। |
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