मनोज ठाकुर
कथित किसान आंदोलन में सहानुभूति के लिए मौत के फर्जी आंकड़े पेश कर मृतकों की संख्या को बढ़ा चढ़ा कर दिखाने की कोशिश हो रही है। किसी के पास न तो मरने वालों का कोई रिकॉर्ड है, न साक्ष्य है और न ही मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट। इसके बाद भी झूठे आंकड़े गढ़ कर यह दिखाने की कोशिश हो रही है कि सैकड़ों किसानों की मौत हो चुकी है।
जानकारों का कहना है कि कथित आंदोलनकारी हर कदम पर झूठ बोल रहे हैं। इस झूठ को सही साबित करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया जा रहा है। एक झूठी बात एक जगह से चलती है और देखते ही देखते हर कोई उस सुर में बोलना शुरू कर देता है। किसानों की मौत का आंकड़ा भी इस इसी तरह से गढ़ा गया है।
ग्रामीण विकास केंद्र के शोधार्थी कुलदीप सिंह ने बताया कि कथित किसान आंदोलन में किसानों की मौत का कोई रिकॉर्ड नहीं है। जो आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, वे सही नहीं हैं। इन फर्जी आंकड़ों के जरिए केंद्र व राज्य सरकार को बदनाम करने के कुत्सित प्रयास किए जा रहे हैं। दिक्कत यह है कि कोई भी इन आंकड़ों का सच जानने की कोशिश नहीं कर रहा है। मीडिया और सोशल मीडिया पर लगातार इस तरह की झूठे व गलत आंकड़े वायरल किए जा रहे हैं। कुलदीप सिंह ने बताया कि इसी माह की 14 तारीख को कैथल के भागल के किसान की मौत हो गई। इसे सामान्य मौत बताया गया, इसलिए ने तो पुलिस को इसकी सूचना दी गई और न ही उसका पोस्टमार्टम कराया गया। लेकिन कुछ आंदोलनजीवी अब इस मौत को भी कथित किसान आंदोलन से जोड़ कर पेश करेंगे।
इसी तरह, 28 अगस्त को करनाल में रायपुर जटान निवासी सुशील काजल की मौत को भी जबरदस्ती तूल दिया गया, जबकि पुलिस के आला अधिकारियों का कहना है कि सुशील के परिजन न तो इलाज के लिए उसे अस्पताल लेकर आए और न ही पोस्टमार्टम कराया। कुलदीप सिंह ने बताया कि सड़क हादसे में जान गंवाने वाले किसान को भी कथित किसान नेता आंदोलन से जोड़ दे रहे हैं।
दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर सुंदर सिंह ने बताया कि हादसों और सामान्य मौत को आंदोलन से जोड़ कर यह लोग समाज में भ्रम फैला कर अपने लिए सहानुभूति बटोरते हैं। इनका काम करने का तरीका यही है। ये किसानों को झूठे आश्वासन देते है कि यदि उन्हें कुछ हो गया तो उनके परिवार को आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी दिलवाएंगे। नौकरी और मुआवजे की मांग के पीछे इनकी यह सोच रहती है। इससे आम आदमी भी इनके झांसे में आ जाता है। इनकी पूरी कोशिश है कि किस भी तरह से केंद्र व राज्य सरकार के खिलाफ जहर उगला जाए। उन्होंने बताया कि मरने वालों का इसलिए पोस्टमार्टम नहीं कराया जाता, क्योंकि इससे न सिर्फ मौत के कारण का पता चलेगा, बल्कि मृतकों का रिकॉर्ड में बनेगा। इससे फर्जी आंकड़ों का पर्दाफाश हो सकता है। इसलिए मौत की बात केवल बयानों में बोली जा रही है।
जानकारों का कहना है कि किसानों की फर्जी मौत की अफवाहें फैलाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है। विपक्ष को समर्थन देने वाला मीडिया भी फर्जी आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा है। हकीकत तो यह है कि कथित किसान आंदोलन स्थल सिंघु बॉर्डर पर निहंगों ने एक व्यक्त को न सिर्फ काट डाला, बल्कि तालिबान तरीके से उसके शव को भी बेरिकेड्स से लटका दिया था। इससे पूर्व टिकरी बॉर्डर पर पश्चिम बंगाल की युवती का बलात्कार किया गया। इसके बाद आरोपियों को बचाने की पूरी कोशिश हुई। तथाकथित किसान नेताओं ने इस घटना को दबाया। यदि पीड़िता का पिता न आता तो यह घटना सामने भी न आती। लेकिन कथित किसान नेता और उनके समर्थक वामपंथी मीडिया इन घटनाओं पर कभी बात नहीं करता है। इस तरह की क्रूर घटनाओं से आम आदमी का ध्यान हटाने के लिए किसानों की मौत के फर्जी आंकड़े गढ़े जा रहे हैं, ताकि कोई इनसे यह सवाल न करे।
जानकारों का कहना है कि इनके पास इस बात का कोई सुबूत नहीं है, न ही कोई साक्ष्य है, जो इनके इस झूठे दावे को सच साबित करे। दरअसल, आंदोलनजीवी अब आम आदमी का विश्वास और भरोसा खो चुके हैं। अब इनका सच जनता के सामने आ रहा है। पता चल रहा है कि ये किस तरह से विपक्ष और देशद्रोही ताकतों के इशारे पर काम कर रहे हैं। इसलिए वे किसानों की मौत के झूठे आंकड़े पेश कर अपने पक्ष में माहौल बनाने की साजिश रच रहे हैं। लेकिन वे इसमें भी सफल होते नहीं दिख रहे हैं।
इस बीच, सोमवार शाम को करनाल के डेरा कार सेवा गुरुद्वारे में भारतीय किसान यूनियन की बैठक हुई। इसमें हरियाणा के10 किसान संगठन शामिल हुए। कई घंटे चली मैराथन बैठक में कथित किसान आंदोलन के एक साल पूरा होने पर शहीद किसान यात्रा निकालने, 501 किसानों के संसद कूच और संयुक्त किसान मोर्चा में हरियाणा की दावेदारी मजबूत करने पर चर्चा हुई। हालांकि नेताओं के बीच आम सहमति नहीं बनी। राज्य के किसान नेताओं ने अब 18 नवंबर को बैठक बुलाई है। बता दें कि चढ़ूनी गुट 25 नवंबर को, जबकि संयुक्त किसान मोर्चा 24 नवंबर को शहीद किसान यात्रा निकालने की घोषणा की है। लेकिन बैठक में यह तय नहीं हो सका कि चढ़ूनी गुट अलग यात्रा निकालेगा या मोर्चा की यात्रा में शामिल होगा। बैठक के बाद चढ़ूनी ने कहा कि उनके गुट ने शहीद किसान यात्रा निकालने का फैसला पहले ही ले लिया था, जबकि संयुक्त किसान मोर्चा ने बाद में यह फैसला लिया।
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