बीजिंग के इशारे पर चीन की तमाम तकनीकी कंपनियां अपनी वेबसाइट्स से भी इन दोनों भाषाओं में लिखी जाने वाली किसी भी तरह की टिप्पणियों पर रोक लगा रही हैं
चीन की तकनीकी फर्मों ने कम्युनिस्ट सरकार को खुश करने के लिए अब अपने यहां से तिब्बती और उइगर भाषाओं की छुट्टी करनी शुरू कर दी है। इससे न सिर्फ तिब्बतियों की चिंता बढ़ गई है बल्कि उइगर भी अब नई तरह के दमन की संभावनाओं से घिर गए है।
संभवत: बीजिंग के इशारे पर चीन की तमाम तकनीकी कंपनियों ने अपने यहां के पाठ्यक्रमों से उइगर तथा तिब्बती भाषाओं को हटाने की ओर कदम बढ़ाए हैं। ये दोनों भाषाएं न सिर्फ उनके पाठ्यक्रमों से बाहर की जा रही हैं, बल्कि ये कंपनियां अपनी वेबसाइट्स से भी इन दोनों भाषाओं में लिखी जाने वाली किसी भी तरह की टिप्पणियों पर रोक लगा रही हैं।
यूनेस्को के सहयोग से चल रहे इंटरनेट पर भाषा-शिक्षण के एक एप 'टॉकमेट' की आधिकारिक वीबो अकाउंट पर बताया है कि उसने चीन की सरकारी नीतियों की वजह से तिब्बती तथा उइगर भाषाओं को अपने एप से हटा लिया है। बता दें कि यह एप भाषाओं में विविधता की वजह से करीब 100 भाषाओं में पाठ्यक्रमों की सहूलियत देता है।
यूनेस्को के सहयोग से चल रहे इंटरनेट पर भाषा-शिक्षण के एक एप 'टॉकमेट' की आधिकारिक वीबो अकाउंट पर बताया है कि उसने चीन की सरकारी नीतियों की वजह से तिब्बती तथा उइगर भाषाओं को अपने एप से हटा लिया है।
एक अन्य वेबसाइट 'बिलिबिली' ने उइगर तथा तिब्बती भाषा में साझा की जाने वाली प्रतिक्रियाओं पर रोक लगा दी है। बताया गया है कि यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय साइबर नीति केंद्र के वरिष्ठ विश्लेषक फर्गस रयान द्वारा उइगर तथा तिब्बती भाषा में टिप्पणियां लिखने की कोशिश करने पर उन्हें बार—बार 'एरर' का पॉप अप देखने को मिला। इसके विस्तार में लिखा था कि प्रतिक्रिया में संवेदनशील जानकारी है। लेकिन हैरानी की बात है कि, दूसरी ओर बाकी गैर-मंदारिन भाषाओं में ऐसी प्रतिक्रियाएं एकदम ठीक दिख रही हैं।
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