आज भारत के इतिहास का एक ऐसा पहलू धीरे—धीरे सामने आ रहा है जिसे 97 साल तक तहखाने की कैद भोगनी पड़ी थी। यह गाथा है पंजाब के उन 320,000 सैनिकों के शौर्य की जिन्होंने ब्रिटिश फौज के साथ प्रथम विश्वयुद्ध में अपनी वीरता का परचम फहराया था।
उल्लेखनीय है कि प्रथम विश्व युद्ध के वक्त सैनिकों की भर्ती का प्रमुख क्षेत्र पंजाब था। तब पंजाब के फौजी विदेशों सेनाओं का छठवां हिस्सा थे और भारत सेना में लगभग एक तिहाई।
यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि प्रथम विश्व युद्ध में पंजाब के 320,000 सैनिक लड़े थे। इनका रिकॉर्ड 97 साल तक एक तहखाने में कैद रहने के बाद अब सामने आने लगा है। अब तक ये गुमनाम ही रहे थे। अब ब्रिटिश इतिहासकारों ने उस युद्ध में भारतीय सैनिकों की शूरवीरता के संदर्भ में इनको उजागर किया है। इन सैनिकों से जुड़ा रिकार्ड पाकिस्तान के लाहौर संग्रहालय के तहखाने में मिला है जिसे अब डिजीटल शक्ल देककर 11 अक्तूबर को एक वेबसाइट पर डाला गया है।
अभी तक हुआ यह था कि ब्रिटेन और आयरलैंड के सैनिकों की बाद की पीढ़ियों और वहां के इतिहासकारों के पास सेवा से जुड़े रिकॉर्ड के सार्वजनिक डाटाबेस तो उपलब्ध थे। लेकिन भारत के सैनिकों के परिवारों के पास ऐसा कुछ भी नहीं था। पंजाबी मूल वाले ब्रिटेन के कुछ नागरिकों से अनुरोध किया गया है कि वे डाटाबेस में अपने पूर्वजों को खोजें। कई परिवारों ने डाटाबेस खंगालने पर पाया कि उनके यहां के अनेक सैनिकों ने प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस, मध्य पूर्व, अदन, गैलीपोली तथा पूर्वी अफ्रीका के साथ ही ब्रिटिश इंडिया के कई हिस्सों में अपनी सेवाएं दी थीं।
यूके पंजाब हेरिटेज एसोसिएशन के प्रमुख अमनदीप मदरा का कहना है कि प्रथम विश्व युद्ध में भारत की सेना में भर्ती के लिए पंजाब पर विशेष रूप से गौर किया गया था। उसे 'भर्ती मैदान' बोला जाता था। हैरानी की बात है कि वहां से इतने ज्यादा सैनिकों की भर्ती होने के बावजूद उनमें से ज्यादातर बहादुरों का योगदान भुलावे में ही रहा।
1947 में बंटवारे के बाद पंजाब के दो टुकड़े हुए तथा एक हिस्सा भारत में ही रहा तो दूसरा पाकिस्तान में चला गया था। ब्रिटेन के मंत्री तनमनजीत ढेसी ने कई फाइलों से सबूत ढूंढकर उन्हें सामने रखा है। उनका कहना है कि उनके परदादा ने इराक में सेवा दी थी। उस युद्ध में वह घायल हो गए थे, जिसमें उन्होंने अपना एक पैर गंवा दिया था। अब उम्मीद की जा रही है कि उपलब्ध हुए रिकॉर्ड भारत के उन जांबाज सैनिकों की शूरवीरता से पर्दा हटाएंगे और उनके बारे में चलती रहीं किंवदंतियों को स्पष्ट करेंगे।
यूके पंजाब हेरिटेज एसोसिएशन के प्रमुख अमनदीप मदरा ने फाइलों के डिजिटलीकरण के लिए ग्रीनविच विश्वविद्यालय के साथ सहयोग किया है। उनका कहना है कि प्रथम विश्व युद्ध में भारत की सेना में भर्ती के लिए पंजाब पर विशेष रूप से गौर किया गया था। उसे 'भर्ती मैदान' बोला जाता था। हैरानी की बात है कि वहां से इतने ज्यादा सैनिकों की भर्ती होने के बावजूद उनमें से ज्यादातर बहादुरों का योगदान भुलावे में ही रहा। ज्यादातर मामलों तो ऐसे हैं कि उनमें सैनिकों के नाम तक ज्ञात नहीं हैं। जबकि भारत की सेना में लगभग एक तिहाई सैनिक पंजाब से ही थे।
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