कोरोना महामारी के कारण बिहार के 15.29 लाख श्रमिक वापस अपने प्रदेश लौटने को विवश हो गए थे। इनमें 56 प्रतिशत श्रमिक कपड़ा उद्योग में काम करते थे। ऐसे समय में भी इन लोगों ने जो साहस दिखाया, वह अद्भुत है। चूंकि ये सभी कपड़ा उद्योग में बरसों से काम कर रहे थे, इसलिए उन्हें इसकी हर चीज की जानकारी थी।
सो बेतिया के कई श्रमिकों ने सरकार की मदद से एक फैक्ट्री शुरू की। देखते-देखते ही फैक्ट्री चल पड़ी। प्रारंभ में कुछ दिक्कतें जरूर आर्इं, लेकिन अब इनकी सफलता की कहानी और लोगों को प्रेरित कर रही है। इस फैक्ट्री के उत्पाद को न सिर्फ देश के अन्य राज्यों को भेजा जाता है, बल्कि भारत से बाहर भी निर्यात किया जा रहा है।
फैक्ट्री के उत्पाद कतर, स्पेन, बांग्लादेश इत्यादि देशों में अपनी धमक दिखा रहे हैं। हाल ही में स्पेन को 5,000 जैकेट भेजे गए हैं। इसी प्रकार पैंतालीस हजार जैकेट लद्दाख गई हैं। इससे जहां इन कामगारों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है, वहीं लगभग 400 लोगों को रोजगार भी प्राप्त हुआ है।
रेडीमेड कपड़ों के लिए पूरे एशिया में विख्यात गांधी नगर बाजार(दिल्ली) के एक कारोबारी देसराज मल्होत्रा कहते हैं, ‘‘बिहार के श्रमिकों ने उलटी गंगा बहा दी है। आज तक बिहार के कपड़ा व्यापारी दिल्ली, गुजरात आदि राज्यों से माल मंगाते थे। अब वे बेतिया से भी कपड़े लेने लगे हैं। उन्हें सस्ता माल भी मिल रहा है। यह चमत्कारी बदलाव है।’’
अब तो बेतिया में कपड़ों की 40 इकाइयां शुरू हो गई हैं। इनके लिए कच्चा माल मुम्बई और सूरत से मंगाया जाता है। यह भी जानकारी मिली है कि सूरत और लुधियाना के कई कारोबारी अपनी इकाइयां बिहार में लगाना चाहते हैं। बेतिया के चनपटिया में एक छत के नीचे चंपारण ब्रांड कीकशीदाकारी वाली साड़ियां, लहंगे, चुनरी भी बननी शुरू हो गई हैं।
अरुण वैभव नामक एक कारोबारी ने बताया कि हम लोगों का उद्देश्य है ग्राहकों को सस्ती दर पर बनारसी साड़ियां, लहंगा-चुन्नी आदि उपलब्ध कराना। बेतिया के जिलाधिकारी कुंदन कुमार इन उद्यमियों के प्रयास से प्रफुल्लित हैं। इन कामगारों की सफलता की कहानी को देखने के लिए गत वर्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बेतिया पहुंचे थे।
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