जब पहला लॉकडाउन लगा तो यमुनानगर (हरियाणा) के अंकुर जैन के मन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्द गूंज रहे थे- आपदा अवसर लेकर आती है। बस सोचना है कि मुश्किल हालात से कैसे निपटें? लॉकडाउन के दौरान करीब पांच करोड़ का कारोबार शून्य पर आ गया।
तब अंकुर ने पहले चुनौतियों की पहचान की। पहली, बीमारी से बचना व कर्मचारियों को बचाना, दूसरी श्रमिकों का पलायन रोकना और तीसरी प्रतिकूल परिस्थितियों में कारोबार को बचाए रखना। इसमें कारोबार को बनाए रखने के लिए श्रमिकों का पलायन रोकना और उनमें विश्वास कायम करना सबसे जरूरी था।
अंकुर की फैक्ट्री में करीब 150 श्रमिक काम करते हैं। हताशा व भय के माहौल में वे पलायन कर रहे थे। वे चले जाते तो उनकी वापसी मुश्किल थी, क्योंकि आवागमन के साधन ठप थे। फैक्ट्री में उत्पादन ठप था और पूंजी भी कम थी। फिर भी उन्होंने फैक्ट्री में ही शारीरिक दूरी को ध्यान में रखते हुए श्रमिकों के रहने और राशन की व्यवस्था की। साथ ही, उन्हें भरोसा दिया कि काम न होने पर भी वेतन मिलेगा।
डॉक्टर की आनलाइन सलाह के साथ श्रमिकों की वीडियो कान्फ्रेसिंग से हर दिन परिवार से बात कराई और फैक्ट्री में रोजाना योग व हवन शुरू किया। नियम बनाया गया कि कोई बाहर नहीं जाएगा। जो बाहर जाएगा वह खुद को अलग-थलग रखेगा। श्रमिकों को रोक पाने में मिली सफलता का उन्हें लाभ मिला।
लॉकडाउन में थोड़ी ढील मिलते ही वे काम में जुट गए। मांग सीमित थी और अन्य फैक्टियों में श्रमिकों के पलायन के कारण काम ठप था। अंकुर ने इसका लाभ उठाते हुए अपना उत्पादन आधा कर माल की गुणवत्ता पर ध्यान दिया। उत्पादन लागत और लाभ का अंतर भी कम किया। इससे उनका माल बिकता रहा। पूंजी की आवक बढ़ी। आॅर्डर भी भरपूर थे। इस तरह से लॉकडाउन में उन्हें जो 40 प्रतिशत का घाटा हुआ, उसे पूरा कर लिया। — मनोज ठाकुर
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