उत्तराखंड के हिमांशु जोशी ने कोविड काल में विदेश में आईटी सेक्टर की अपनी नौकरी सिर्फ इसलिए छोड़ दी क्योंकि उनके माता-पिता घर पर अकेले थे। घर के खेत पर आॅर्गनिक खेती शुरू की और आज वे सॉफ्टवेयर से नहीं, खेती से पहचान बना रहे हैं।
नैनीताल के कोटाबाग के रहवासी हिमांशु कोविड 19 से पहले ओमान में आईटी कम्पनी में प्रोजेक्ट मैनेजर थे। कोविड में घर लौट आए। माता-पिता की सेवा में लगे एक दिन खाली बैठे-बैठे ख्याल आया कि क्यों न बंजर पड़े अपने ढाई एकड़ के खेत को फिर से खेती के लायक बनाया जाए?
सो कुछ दोस्तों से, कुछ विशेषज्ञों से मदद ली और बिना जुताई के खेत में उड़द की फसल बो दी। कोई खाद नहीं डाली, प्राकृतिक तरीकों को आजमाते हुए खेती करनी शुरू कर दी। उन्होंने बताया कि कोविड के दौरान गांव में बहुत से लोग नौकरी छोड़ कर घर आये थे, उन्हें मजदूरी देकर अपने खेत पर साथ लगाया। धीरे-धीरे परिणाम सामने आते देख खुशी हुई और उत्साह बढ़ने लगा।
जोशी ने इस दौरान अपनी खेती के बारे में सोशल डिजिटल मीडिया पर मित्रों के साथ जानकारी साझा करनी शुरू की। मित्रों के सुझाव पर उन्होंने अपने फार्म का नाम रखा ‘फॉरेस्ट साइड फार्म’ और उसकी उपज की मार्केटिंग की रणनीति बनानी शुरू कर दी।
पहली फसल एक कुंतल से भी कम आई, लेकिन आर्गेनिक उड़द दाल हाथों-हाथ बिक गई। इससे आईटी विशेषज्ञ जोशी का आॅर्गनिक खेती के प्रति हौसला और रुझान दोनों बढ़ा। अगले मौसम में उन्होंने हल्दी, अदरक, लहसुन और धनिया की उपज ली और जो तुरंत आॅनलाइन बिक गई।
हिमांशु ने बताया कि वे अपने खेत में कैमोमाइल, लेमन ग्रास और बिच्छू घास की चाय की उपज लेने लगे हैं। वे एक हजार से लेकर आठ हजार रुपए किग्रा. तक की कीमत की चाय बेच रहे हैं। उनकी दाल 120 से 200 रुपए प्रति किग्रा. में बिक रही है। वे बताते हैं कि उनके ग्राहक देश में ही नहीं, नॉर्वे, ओमान, दुबई में भी हैं। हिमांशु यहीं नहीं रुके। उन्होंने खेती से कमाए और कुछ अपने जोड़े गए पैसों से घर के ऊपर तीन कमरों का होम स्टे बनाया और नाम दिया फॉर्म स्टे। उन्होंने अपने यहां उन लोगों को पर्यटक के रूप में बुलाना शुरू किया जो वहीं रह कर, उन्हीं के खेतों की सब्जियां खुद तोड़ कर खाना बनवा कर खाना पसंद करते हैं।
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