उत्तराखंड के हल्द्वानी में ‘लिटिल मिरेकल्स फाउंडेशन’ की ओर से ‘वस्त्र सेवा’ की जा रही है। यह सेवा हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के पास चलती है। यहां स्थानीय नागरिक अपने अनुपयोगी वस्त्र छोड़ जाते हैं। संस्था द्वारा पहले इन वस्त्रों की साफ-सफाई और जांच-पड़ताल की जाती है। इसके बाद वह साफ-सुथरे कपड़ों को ही वस्त्र सेवा में उपलब्ध कराती है। जो फटे या बेकार कपड़े होते हैं, उनकी दरियां बनवा दी जाती हैं। ये दरियां अस्पताल में भर्ती मरीजों की देखभाल करने वाले परिजनों को नि:शुल्क उपलब्ध करवाई जाती हैं।
संस्था के उपाध्यक्ष उमंग वासदेवा बताते हैं,‘‘अक्सर शादी में पहने जाने वाले दूल्हा-दुल्हन के वस्त्र भी लोगों के घरों में बेकार पड़े होते हैं। जब किसी गरीब के घर विवाह होता है तो दूल्हा-दुल्हन के लिएऐसे वस्त्र उपलब्ध कराए जाते हैं।’’ उन्होंने यह भी बताया, ‘‘वस्त्र सेवा से जो आय होती है, उससे गरीब बच्चों के लिए स्कूली ड्रेस बनवाई जाती है।’’ कहीं से भी संदेश आता है कि अमुक जगह पर पुराने वस्त्र हैं तो गाड़ी भेजकर उन्हें मंगवा लिया जाता है। जब आपको कपड़े नि:शुल्क मिलते हैं, तो लोगों को भी नि:शुल्क क्यों नहीं देते? इस सवाल पर वे कहते हैं, ‘‘किसी को वस्त्र नि:शुल्क इसलिए नहीं दिया जाता कि लोग मुफ्त की चीजों की बेकद्री करते हैं। वहीं वे अपनी खरीदी हुई चीज को संभालते हैं। उन्हें लगता है कि यह अपना है। इसलिए मुफ्त में एक भी कपड़ा नहीं दिया जाता है।’’
यह संस्था हल्द्वानी में कुमायूं मंडल के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के पास जरूरतमंद लोगों को ‘थाल सेवा’ के नाम से केवल 5 रु. में भोजन भी उपलब्ध करवाती है। इस सेवा से अनेक सेवाभावी युवा जुड़े हैं। थाल सेवा की शुरुआत 18 अक्तूबर, 2018 को हुई थी। प्रतिदिन लगभग 1,000 लोग इस सेवा का लाभ उठाते हैं। इसके साथ साथ ही भिक्षुओं को नि:शुल्क भोजन उपलब्ध करवाया जा रहा है। ‘थाल सेवा’ के लिए धन की व्यवस्था समाज से ही की जाती है। जो लोग इसके लिए मदद देना चाहते हैं, उन्हें ‘थाल सेवक’ बनना पड़ता है। इसके लिए उन्हें सेवा स्वरूप 5,000 रु. देने होते हैं। इस पैसे से राशन खरीदा जाता है। भोजन ग्रहण करने वालों से जो राशि मिलती है, उससे रसोइया, गैस, बर्तन धुलाई आदि का खर्चा चलता है।
‘लिटिल मिरेकल्स फाउंडेशन’ के अध्यक्ष दिनेश मानसेरा बताते हैं, ‘‘थाल सेवा को शुरू करने के पीछे उद्देश्य यह था कि सुदूर पहाड़ों से जो लोग इलाज करवाने के लिए हल्द्वानी आते हैं, उन्हें सस्ता भोजन मिल सके।’’ बता दें कि जो मरीज अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं, उन्हें वहां से खाना मिल जाता है, लेकिन उनके साथ आने वालों को बाहर भोजन के लिए काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। ऐसे लोगों को सस्ता भोजन मिले, इसलिए यह सेवा शुरू की गई है। थाल सेवा में दाल और चावल ही रखे गए हैं। चावलों के साथ दाल रोज बदल जाती है। कभी चने, कभी राजमा, कभी लोबिया बनाया जाता है। भोजन देशी घी से तैयार किया जाता है और पानी भी ‘आरओ’ का होता है।
संस्था द्वारा रात्रि में भी एक सेवा प्रकल्प शुरू किया गया है। यहां एक फ्रिज रखा है। लोग इसमें अपने घरों से भोजन, फल, ब्रेड, बिस्कुट आदि लाकर रख जाते हैं, जिन्हें रात्रि नौ बजे तक भिक्षुओं के बीच बांटा जाता है।
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