राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोवाल ने जैविक हथियार के नए खतरे के प्रति आगाह करते हुए कहा कि भारत को इससे निपटने के लिए नई रणनीति बनानी होगी। उन्होंने कहा कि खतरनाक रोगाणुओं को जानबूझकर हथियार बनाना गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने व्यापक राष्ट्रीय क्षमता बनाने और जैव-रक्षा, जैव-सुरक्षा निर्माण की जरूरत पर जोर दिया।
पुणे में ‘आपदा और महामारी के युग में राष्ट्रीय सुरक्षा की तैयारी’ विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डोवाल ने कहा कि आपदा और महामारियों से अलग-थलग होकर नहीं निपटा जा सकता है। खतरनाक रोगाणुओं को जानबूझकर हथियार बनाना गंभीर चिंता का विषय है। वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में हो रहे बदलावों से सभी अवगत हैं। देश के राजनीतिक और सैन्य उद्देश्यों को हासिल करने के लिए ऐसे युद्ध लगातार अधिक खर्चीले साबित हो रहे हैं। युद्ध के नए क्षेत्र, क्षेत्रीय सीमाओं से नागरिक समाज में चले गए हैं। लोगों का स्वास्थ्य, उनके कल्याण एवं सुरक्षा की भावना और सरकार को लेकर उनकी धारणा जैसे कारकों का महत्व बढ़ गया है। ये सभी कारक राष्ट्र की इच्छा को प्रभावित करते हैं।
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी और जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा सबक यह है कि सभी की भलाई ही सभी के जीवन को सुनिश्चित करेगी। महामारी ने खतरों का पूर्वानुमान करने की जरूरत को रेखांकित किया है। जैविक शोध के तर्कसंगत वैज्ञानिक उद्देश्य हैं, इसका दोहरा उपयोग बुरे काम में लाया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन पर उन्होंने कहा कि यह एक और खतरा’ है जिसके अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं। यह संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित करता है जो लगातार कम पड़ता जा रहा है। यह प्रतिस्पर्धा के बदले टकराव का कारण बन सकता है। जलवायु परिवर्तन अस्थिरता और बड़े पैमाने पर आबादी का विस्थापन बढ़ा सकता है।
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