एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान की शोध रिपोर्ट ने बताया है कि फेसबुक भारत में फर्जी सूचनाएं तथा नफरती भाषणों से निपटने में पूरी तरह नाकाम साबित हुआ है। यह जानकारी फेसबुक के ही आंतरिक दस्तावेजों को खंगालने से मिली है। पता चला है कि भारत इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सबसे बड़ा बाजार है। लेकिन इसी में फेसबुक गलत सूचनाएं, नफरत फैलाने वाले भाषणों और हिंसा पर जश्न मनाने जैसी चीजों को काबू नहीं कर पाया है। यह खबर खुद अमेरिका के मीडिया में जारी हुई है। इसके अनुसार, सोशल मीडिया के अध्ययनकर्ताओं ने बताया है कि फेसबुक पर ऐसे समूह और पेज हैं जो ‘भ्रामक, भड़काऊ तथा समुदाय विशेष विरोधी चीजों से भरे पड़े हैं।’
24 अक्तूबर को न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी खबर के अनुसार, फेसबुक के अध्ययनकर्ताओं ने फरवरी 2019 में कुछ नए उपयोगकर्ता खाते बनाए जिससे पता चले कि केरल में रहने वालों को यह सोशल मीडिया वेबसाइट कैसी दिखती है। समाचार पत्र के अनुसार, खाते को अगले तीन हफ्ते तक आम नियम के अंतर्गत चलाया गया। ग्रुप्स से जुड़ने, वीडियो और किसी साइट के नए पेज देखने के लिए फेसबुक की एग्लोरिद्म की सभी अनुशंसाओं का पालन किया गया था। नतीजा यह सामने आया है कि उपयोगकर्ता को नफरती भाषण, गलत जानकारियां तथा हिंसा पर खुशियां मनाने की ढेरों पोस्ट आने लगीं, यह सब फेसबुक की आंतरिक रिपोर्ट में दर्ज है जो फरवरी 2019 महीने के अंत में उसकी समग्र रिपोर्ट में प्रकाशित हुई थी।
न्यूयॉर्क टाइम्स तथा एसोसिएटेड प्रेस के अलावा कई अन्य समाचार समूहों को मिली इस रिपोर्ट के अनुसार, फेसबुक के ‘आंतरिक दस्तावेज दिखाते हैं कि कंपनी अपने सबसे बड़े बाजार यानी भारत में गलत सूचनाएं, नफरती भाषणों तथा हिंसा की खुशी मनाने वाली सामग्री से निपट नहीं पा रही है।’ न्यूयॉर्क टाइम्स का कहना है कि भारत में 22 भाषाएं मान्यता प्राप्त हैं जिनमें से सिर्फ पांच भाषाओं में ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आधार पर सामग्री का अध्ययन करने की सुविधा है। अजीब बात है कि इनमें हिंदी तथा बांग्ला भाषाएं अब तक शामिल नहीं की गई हैं।
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