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होम भारत

यूं ही कोई अमीरचंद नहीं बन जाता

by WEB DESK
Oct 25, 2021, 11:58 am IST
in भारत, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, श्रद्धांजलि
बलिया में स्व. अमीरचंद जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते श्री दत्तात्रेय होसबाले

बलिया में स्व. अमीरचंद जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते श्री दत्तात्रेय होसबाले

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 डॉ. योगेंद्र मिश्र

अमीरचंद जी की विशेषता रही कार्यकर्ता का फोन तुरंत उठाना। बैठक में हैं तो एसएमएस करना और बाद में ‘कॉल बैक’ करना  निरहंकारिता, प्रसिद्धि पराङ्गमुखता, प्रमाद-रहित, सबको साथ लेकर चलना, उनका स्वभाव था। वे गुणग्राही और कार्यकर्ता का मनोबल बढ़ाने वाले थे। कला पारखी, कलाधर्मी, कला-प्रेमी अमीरचंद जी के जाने से लंबे समय तक उनकी कमी खलेगी, जिसकी भरपाई निकट भविष्य में कठिन दिखती है।

बलिया के हनुमानगंज प्रखंड के अंतर्गत ग्राम ब्रह्माइन में 1 अगस्त, 1965 को जन्मे अमीरचंद जी के माता-पिता कोलकाता में रहते थे। उनकी माता श्रीमती गुजराती देवी और पिता श्री अवध किशोर गुप्त कोलकाता स्थित टालीबाड़ी नरिया फफूआ में चाय की दुकान चलाकर परिवार का भरण-पोषण करते थे। अमीरचंद जी सात भाई-बहनों में छठे क्रमांक के थे। सबसे बड़ी बहन सुदामी देवी, उनसे छोटे ताराचंद ,राजेंद्र, डॉ. प्रेमचंद प्रसाद, फिर बहन हेवांती, उसके बाद अमीरचंद, अंतिम सबसे छोटी बहन देवांती। सुदामी देवी कोलकाता में, हेवांती हजारीबाग में और देवांती असम में रहती हैं। इनके दो भाई कोलकाता में ही किराना की दुकान करते हैं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद कोलकाता में होम्योपैथिक चिकित्सक हैं।

अमीरचंद जी की प्राथमिक शिक्षा हनुमानगंज और माध्यमिक शिक्षा जीरा बस्ती में पूरी हुई। बलिया के वीर कुंवर सिंह इंटर कॉलेज से बारहवीं करने के बाद उन्होंने उन्होंने मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया में बीएससी में प्रवेश लिया, लेकिन वे बीएससी प्रथम वर्ष की परीक्षा दे नहीं पाए। मां भारती की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन देने वाले अमीरचंद जी के हृदय में त्याग की उत्ताल तरंगें हिलोरें मार रही थीं। हनुमानगंज के एक वरिष्ठ स्वयंसेवक डॉ. जयप्रकाश का उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा, वहीं शिशु मंदिर के आचार्य श्रीराम बदन सिंह ने अमीरचंद जी के किशोर मन को पढ़ा और कुछ उकेरा, जिसे आकार दिया बलिया के तत्कालीन जिला प्रचारक श्री ओम प्रकाश ने।

अमीरचंद जी का जाना कला जगत की बहुत बड़ी क्षति है। अपनी कलात्मक प्रतिभा एवं संगठन कौशल से सभी कलाकारों को राष्ट्रीयता के प्रवाह में जोड़कर अनेकश: भव्य कला उत्सवों के आयोजक रहे। पुण्यात्मा अमीरचंद आश्विन शुक्ल पक्ष की पापांकुशा एकादशी को अपना पांच-भौतिक शरीर प्रदोष बेला में, जहां सूर्य सर्वप्रथम उदित होते हैं, ऐसे अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में भारत माता की सेवा में रत प्रवास काल में त्यागते हैं।   मान्यता है कि एकादशी को महाप्रयाण करने वाला जीव- योगी, तपस्वी, साधकों के लक्षणों वाला होता है।

उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले, उत्तर प्रदेश क्षेत्र प्रचारक श्री अनिल, उत्तर प्रदेश सरकार में दर्जा प्राप्त मंत्री नानक चंद लखवानी, संस्कार भारती के संस्थापक एवं संरक्षक बाबा योगेंद्र, लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी सहित अनेक गणमान्यजन बलिया पहुंचे। वहीं केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने ताराचंद से फोन पर बात कर अपनी शोक संवेदना प्रकट की। सहजता, सरलता, मृदुभाषिता, आत्मीयता, सहिष्णुता सभी सद्गुण अमीरचंद जी में जीवन्त थे।

चंद लोग होते हैं,जो दिल से अमीर होते हैं। अमीरचंद जी की विशेषता रही कार्यकर्ता का फोन तुरंत उठाना। बैठक में हैं तो एसएमएस करना और बाद में ‘कॉल बैक’ करना  निरहंकारिता, प्रसिद्धि पराङ्गमुखता, प्रमाद-रहित, सबको साथ लेकर चलना, उनका स्वभाव था। वे गुणग्राही और कार्यकर्ता का मनोबल बढ़ाने वाले थे। कला पारखी, कलाधर्मी, कला-प्रेमी अमीरचंद जी के जाने से लंबे समय तक उनकी कमी खलेगी, जिसकी भरपाई निकट भविष्य में कठिन दिखती है।
              (लेखक नागर विमानन मंत्रालय की हिंदी समिति के सदस्य सलाहकार हैं)

 

 

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