स्वरा भास्कर एक बार फिर से हिन्दू होने पर शर्मिंदा हैं। समय-समय पर उन्हें यह याद आता रहता है कि वह हिन्दू हैं और फिर वह सिलेक्टिवली होती हैं कि उन्हें हिन्दू होने पर शर्म है। शनिवार को उन्होंने कहा कि उन्हें हिन्दू होने पर शर्म आती है। दरअसल मामला यह है कि गुरुग्राम में पिछले कई दिनों से हिन्दू समाज के लोग इस बात का विरोध कर रहे हैं कि खुले में नमाज क्यों पढ़ी जा रही है। मुस्लिम समुदाय के लोग सार्वजनिक स्थानों पर नमाज क्यों पढ़ते हैं? ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल भारत में है, भारत से बाहर भी कई देशों में इसके चित्र आते रहते हैं। झारखंड से एक चित्र आया था, जिसमें सड़क रोककर नमाज पढ़ी जा रही थी। कभी पटरियां घेर कर नमाज पढ़ी जाती है। जब सड़क और पटरी रोककर नमाज पढ़ी जाती है तो स्वरा भास्कर यह नहीं कहती हैं कि इस प्रकार की किसी हरकत से किसी की जान भी जा सकती है।
ऐसी कई तस्वीरें घूमती हैं, पर किसी को भी सड़क पर रुके इन यात्रियों की पीड़ा या कष्ट नहीं दिखाई देता है। लिबरल ब्रिगेड जो केवल नामधारी और अपने फायदे के लिए बने हुए हिन्दू होते हैं, उन्हें ऐसी तस्वीरों से पैदा होने वाली परेशानियों से कोई मतलब नहीं होता है और न ही वह यह सोच सकती हैं कि रास्ते में कोई गर्भवती फंसी हो सकती है या फिर कोई दिल का मरीज हो सकता है? पर जो ऐसी बातों का विरोध करने उतरता है, उसके आधार पर स्वरा यह कह रही हैं कि उन्हें हिन्दू होने पर शर्म आ रही है। इससे पहले उन्हें कठुआ मामले में याद आया था कि वह हिन्दू हैं और उन्हें अपने हिन्दू होने पर शर्म आ रही है। पर उनके हिन्दू होने के शर्म होने की एक शर्त होती है कि पीड़ित मुसलमान होना चाहिए! क्या स्वरा जान-बूझकर ऐसे वक्तव्य देती हैं? क्या उनका एक ही लक्ष्य और उद्देश्य है कि किसी भी प्रकार से सनातन के अनुयाइयों को चोट पहुंचाई जाए। स्वरा कभी भी उन लड़कियों के साथ आकर खड़ी नहीं होती हैं, जो मुस्लिमों का शिकार होती हैं और न ही वह तब हिन्दू होने पर शर्मिंदा होती हैं, जब उनके परिचित हिन्दू शोषण करते हैं।
क्या नागरिकों की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं
गुरुग्राम में जो नागरिक परेशान हो रहे हैं, क्या स्वरा भास्कर को उनकी परेशानियों से कुछ लेना-देना नहीं है? क्या स्वरा इस बात पर सहमत हैं कि सड़कों एवं सार्वजनिक स्थलों पर इसी प्रकार नमाज होती रहे, और सड़कों पर वाहनों में बैठे लोग अपनी पीड़ा को किसी से न कहें। कितनी ही बार न केवल प्रशासन बल्कि न्यायपालिका द्वारा भी यह आदेश दिया जा चुका है कि नमाज मस्जिद में पढ़ी जाए, परन्तु स्वरा भास्कर कभी पुलिस और प्रशासन के साथ मिलकर यह नहीं कहतीं कि जनता को परेशानी होती है।
अब सिलेक्टिव हिंदू होने का दौर
कई मामले ऐसे आए हैं, जिनमें मरीज फंसे थे, जैसे कि वर्ष 2019 में कानपुर में प्रशासन से गुस्साए लोगों ने हाईवे पर ही नमाज पढ़ी थी और जाम में फंसे हुए लोग और विशेषकर बच्चे रो-रोकर परेशान हो गए थे। दिल्ली में भी कई स्थानों पर ऐसी ही परेशानी होती है, कई अपार्टमेंट के लोग कई बार मांग करते हैं कि सडकों पर नमाज होने से लोगों को परेशानी होती है। यह दूसरी बात है कि कभी स्वरा भास्कर इस विषय में जागरूक नहीं होती हैं, पर हां, उन्हें इससे बहुत समस्या होती है कि हिन्दू अपनी परेशानी ही आकर कहें। यदि हिन्दू होने पर उन्हें इतनी शर्म है, जो स्पष्ट है कि कठुआ काण्ड के बाद से ही हुई थी, तो उन्हें हिन्दू धर्म छोड़ देना चाहिए था। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया, बल्कि गृह प्रवेश पर पूजा भी कराई! यह सिलेक्टिव दुःख इतना बड़ा है कि दिल्ली कैंट में हुए बच्ची के बलात्कार को लेकर उन्होंने पुजारी को कोसा, हिन्दू धर्म को कोसा और न जाने कितना गुस्सा दिखाया, पर जैसे ही आरोपी में मुस्लिम नाम आया, वह शांत हो गईं। स्वरा भास्कर का हिन्दू होना भी सिलेक्टिव है, उतना ही सिलेक्टिव जितना सिलेक्टिव उनका विचार है और उनकी विचारधारा है! उनका हिन्दू होना केवल तभी याद आता है जब निशाना हिन्दू धर्म हो और कुछ नहीं! एक्सीडेंटल हिन्दू के बाद अब सिलेक्टिव हिन्दू होने का दौर है!
टिप्पणियाँ