गत 22 अक्तूबर को नई दिल्ली के अंबेडकर सेंटर में संस्कार भारती के अखिल भारतीय महामंत्री स्व. अमीरचंद की श्रद्धांजलि सभा आयोजित हुई। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि कला और संस्कृति के लिए आजीवन कार्य करने वाले अमीरचंद जी जीवन के अन्त समय तक अपनी कला साधना में लीन रहे। उन्होंने पूरे देश की कला प्रतिभाओं को जोड़ने के काम में महती भूमिका का निर्वाह किया। भारतीय कला के प्रचार—प्रसार में उनका विशेष योगदान था। पूर्वोत्तर से उनका विशेष लगाव था और उसी पूर्वोत्तर में संस्कार और संस्कृति के लिए काम करते हुए अपने प्राण त्याग दिए। अमीरचंद जी उन कुछ लोगों में से थे, जिन्होंने कला और संस्कृति को सांस बनाया। उन्होंने कहा कि कला और संस्कृति का यह साधक सदैव हमारे ह्रदय में जीवित रहेगा। श्री होसबाले ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान कलाकारों के जीवन के कष्ट को ध्यान में रखते हुए उन्होंने 'पीर परायी जाणे रे' अभियान द्वारा बड़े कलाकरों को जोड़कर छोटे और मंझोले कलाकारों की सहायता की। उन्होंने कहा कि संगठन के नाते देश की कला और संस्कृति के लिए कण-कण क्षण-क्षण कार्य करते रहना उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, श्री सुरेश सोनी, पद्मश्री बाबा योगेंद्र जी, राज्यसभा सदस्य पद्मविभूषण सोनल मानसिंह, मशहूर निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी, गायक वासिफुद्दीन डागर, मालिनी अवस्थी समेत कई अन्य गणमान्य लोगों ने स्व. अमीर चंद जी को श्रद्धासुमन अर्पित किए। अमीरचंद जी का गत 16 अक्तूबर को अरुणाचल प्रदेश में निधन हो गया था। उस दिन वे संस्कार भारती के कार्यकर्ताओं के साथ सांगठनिक कार्य से पूर्वोत्तर के दौरे पर थे। उनका अंतिम संस्कार 18 अक्तूबर को बलिया में हुआ था।
पूरा जीवन कला और संस्कृति को समर्पित रहा
अमीरचंद जी का पूरा जीवन कला, साहित्य और संस्कृति के संवर्धन के प्रति समर्पित रहा। ‘मौन तपस्वी साधक बनकर, हिमगिरी सा चुपचाप गलें’ का मन्त्र जीवनभर साधने वाले अमीरचंद जी बलिया शहर से लगे गाँव ब्रह्माइन में एक अत्यंत साधारण परिवार में जन्मे थे। वे 1981 में संघ से जुड़े थे। इसके बाद वे आजीवन संघ कार्य में लगे रहे।
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