उत्तराखंड में हुई बारिश और नदियों में छोड़े गए पानी की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद और मेरठ मंडल के करीब 300 गांवों में बाढ़ का पानी अब भी भरा हुआ है। बाढ़ प्रभावित लोग सुरक्षित स्थानों में शरण लिए हुए हैं। राहत की बात ये है कि बाढ़ का असर अब कम होने लगा है। रामपुर जिले में केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का हेलीकॉप्टर से सर्वेक्षण किया। रामगंगा, कोसी नदियों ने 40 से ज्यादा गांवों में फसल चौपट कर दी है। बरेली जिले में मीरगंज, बहेड़ी क्षेत्र के 30 गांवों में बाढ़ का पानी है। लोगों को स्कूलों और अन्य जगहों पर रखा गया है। बरेली-मुरादाबाद एनएच पानी में कई किलोमीटर तक डूबा हुआ है, जिस पर यातायात रोक दिया गया है। रामपुर मुरादाबाद के बीच भी कई सड़कें डूबी हुई हैं। बरेली मंडल के पीलीभीत जिले में शारदा नदी ने सबसे ज्यादा तबाही मचाई है। 1931 के बाद सबसे ज्यादा पानी इस बार उत्तराखंड के बनबसा डैम से डिस्चार्ज किया गया। हर साल बरसात में अधिकतम ढाई लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है, लेकिन 19 अक्टूबर को 5लाख 43 हजार क्यूसेक पानी के डिस्चार्ज से पीलीभीत लखीमपुर, पलिया और गोंडा जिलों में नुकसान हुआ।
गांवों में दस-दस फीट तक भरा है पानी
पीलीभीत में 49 गांवों में दस-दस फीट तक पानी है, बचाव के लिए 80 नाव और स्टीमर लगे हुए हैं। एनडीआरएफ, एसएसबी और पीएसी के जवानों को आपदा प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के लिए लगाया गया है। जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ने हवाई सर्वेक्षण कर बताया कि कृषि को बहुत नुकसान हुआ है। नुकसान का आंकलन करवाया जा रहा है। मेरठ मंडल में खादर इलाके में पानी खेतों में भरा हुआ है। हापुड़ जिले में गंगा का पानी गढ़मुक्तेश्वर में 198 मीटर पर बह रहा है। बिजनौर जिले में भी गंगा, रामगंगा नदियों ने 56 गांवों को डुबो दिया है। राहत की बात ये है कि 20 और 21 अक्तूबर को बारिश नहीं होने से नदियों का जलस्तर कम होने लगा है। मौसम इसी तरह रहा तो दो दिन में बाढ़ का पानी खेतो से निकल जाएगा। इसके बाद फसलों के नुकसान का पता चल पाएगा।
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